पंडित हर्षमणि बहुगुणा
जिसके अन्त:करण में जैसा भाव होता है, वह अन्य व्यक्तियों, वस्तुओं और परिस्थितियों को भी मन रूपी दर्पण में वैसा ही देखता है। इस भाव को समझने के लिए रामचरितमानस में प्रतीकात्मक बोध कथा से समझा जा सकता है।
एक बार प्रभु राम ने उदित होते चन्द्रमा को देख कर सब से पूछा कि चन्द्रमा में जो कालापन है, वह क्या है? सुग्रीव ने कहा– चांद पर पृथ्वी की छाया दिखाई दे रही है। विभीषण ने कहा — चन्द्रमा को राहु ने मारा, उस चोट का काला दाग है। अंगद ने कहा– ब्रह्मा ने रति को बनाते समय चन्द्रमा का सार निकाला वही छेद चन्द्रमा के हृदय में दिखाई दे रहा है।
भगवान श्री राम ने भी कहा– कि विष चन्द्रमा का प्रिय भाई है और विष को चन्द्रमा ने अपने साथ हृदय में रखा है अतः वही काली छाया है। अन्त में श्री हनुमान जी ने कहा– कि प्रभु चन्दा आपका प्रिय दास है और आपकी सुन्दर श्याम मूर्ति चन्द्रमा के हृदय में है, वही श्यामता की झलक दिखाई दे रही है।
कह हनुमंत सुनहु प्रभु ,ससि तुम्हार प्रिय दास।
तव मूरति विधु उर बसति सोइ श्यामता अभास।।
श्री हनुमानजी प्रभु श्रीराम के भक्त हैं, उनके हृदय में श्रीराम जी सदैव विराजमान हैं, अतः उन्हें चन्द्रमा में भी प्रभु श्रीराम की मूर्ति ही दिखाई देती है। यह बोध कथा है, चन्द्रमा मन का प्रतीक है अतः प्रभु श्रीराम सबके मन को परख रहे हैं।
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
सभी अपने अपने अनुसार चन्द्रमा के हृदय के दाग को देखते हैं।