पंडित उदय शंकर भट्ट
अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा मनायी जाती है। इस साल पूर्णिमा तिथि 19 और 20 अक्टूबर को दो दिन आ रही है। पंचांग भेद होने से लोगों में त्योहार की तारीख को लेकर मतभेद है। इस स्थिति में ज्योतिषीयों का मत है कि आज 19 को चंद्रमा की रोशनी में खीर रखें और कल 20 को सुबह स्नान-दान करें।
धर्म ग्रंथों में शरद ऋतु में आने वाली पूर्णिमा बहुत खास मानी गई है। इस तिथि पर चंद्रमा की रोशनी में औषधीय गुण आ जाते हैं। इसलिए इस दिन चंद्रमा की चांदनी में खीर रखने और उसे अगले दिन प्रसाद के तौर पर खाने की परंपरा है। इस बार पंचांग भेद होने से शरद पूर्णिमा की तारीख को लेकर मतभेद है। कुछ कैलेंडर में 19 और कुछ पंचांग के मुताबिक 20 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा पर्व है।
दरअसल, इस साल पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर, मंगलवार को शाम 6.45 से शुरू होगी और बुधवार की शाम 8.25 तक रहेगी। आज रात को चंद्रमा की रोशनी में खीर रखी जाएगी। जबकि कल सुबह स्नान-दान और पूजा-पाठ किया जाएगा।
शरद पूर्णिमा पर दीपदान की परंपरा
शरद पूर्णिमा के दिन ऐरावत पर बैठे इंद्र और महालक्ष्मी की पूजा करने से हर तरह का सुख और समृद्धि मिलती है। इस दिन व्रत या उपवास भी करना चाहिए और कांसे के बर्तन में घी भरकर दान करने से कई गुना पुण्य फल मिलता है। इस पर्व पर दीपदान करने की परंपरा भी है। रात में घी के दीपक जलाकर मन्दिरों, बगीचों और घर में रखें। साथ ही तुलसी और पीपल के पेड़ के नीचे भी रखें। ऐसा करने से जाने-अनजाने में हुए पापों का दोष कम हो जाता है।
जानें क्यों बनाते हैं खीर?
शरद पूर्णिमा की रात्रि को खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चन्द्रमा की किरणें अमृत वर्षा करती हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। दूध में लैक्टिक एसिड होता है। ये चंद्रमा की तेज प्रकाश में दूध में पहले से मौजूद बैक्टिरिया को बढ़ाता है और चांदी के बर्तन में रोग-प्रतिरोधक बढ़ाने की क्षमता होती है। इसलिए खीर को चांदी के बर्तन में रखें। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी सबसे तेज होती है। इस कारण खुले आसमान में खीर रखना फायदेमंद होता है।