भविष्य पुराण में गाय को कहा गया है माता यानी लक्ष्मी का रूप, सभी देवी-देवताओं का वास होने से पूजनीय है गाय
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
गायों की सेवा करने से तथा उनकी चरण रज को मस्तक पर धारण करने से मानव के सौभाग्य की वृद्धि होती है, गौमाता के पूजन करने से उन्हें अलंकृत करने से तथा उन्हें ग्रास देने से कुछ दूर उनके साथ जाकर सब प्रकार की सुख-समृद्धि व अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है।
आज के दिन भगवान श्री कृष्ण ने सात दिनों तक कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक ब्रज के गोप, गोपियों तथा समस्त गो वंश की रक्षा व सुरक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया था। तभी देवराज इन्द्र का अभिमान समाप्त हुआ और अहंकार रहित होकर वे भगवान श्री कृष्ण की शरण में आए। कामधेनु ने स्वयं श्री कृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान श्री कृष्ण का एक नाम ‘ गोविन्द ‘ पड़ा। वह आज का दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी का था।
आज के दिन ही नहीं अपितु सदैव सभी मनुष्यों को गाय की सेवा अर्चना करते हुए व अर्घ्य, ग्रास देते हुए यह प्रार्थना करनी चाहिए-
गवामाधार गोविन्द रुक्मिणीवल्लभ: प्रभो ।
गोपगोपीसमोपेत गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ।।
सुरभी वैष्णवी माता नित्यं विष्णुपदे स्थिता।
प्रतिगृह्णन्तु मे ग्रासं सुरभी मे प्रसीदतु ।।
भारत वर्ष में प्राय: सब जगह गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाता है, विशेष कर गोशालाओं में तो एक मेला जैसा लग जाता है, पर आज यह प्रतीत नहीं होता है कि हम गौमाता की सेवा सुश्रुषा करते होंगे, शायद हमने गायों को सड़कों पर तड़पने के लिए अनाथ की तरह छोड़ रखा है। जिसके परिणाम हम देख रहे हैं सम्भवतः भुगत भी रहे हैं, किन्तु सजग नहीं हो रहे हैं। यही कारण है कि असामयिक आपदाएं हम पर आ रही हैं।
हम सभी लावारिस उन गो वंश को देख कर अशान्त तो होते हैं पर विवश कुछ नहीं कर सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम केवल उत्सव तक ही सीमित न रहें अपितु अखिल भारत वर्षीय गो सुरक्षा हेतु भी इस दिन को गो दिवस का रूप धारण करवाने में सफल प्रयास करवायेंगे। ऐसा करने से गोवंश की सच्ची उन्नति हो सकेगी, और इसी के फलस्वरूप हमारी शत-प्रतिशत उन्नति सम्भव है या इस पर निर्भर है। तो आइए आज हम एक संकल्प लें कि हम अपनी उन्नति के लिए गायों की रक्षा व सुरक्षा अवश्य करेंगे।