सुप्रभातम् : जीवन पथ पर आगे बढ़ने में अहंकार सबसे बड़ा बाधक

जीवन पथ पर आगे बढ़ने में मनुष्य का अहंकार सबसे बड़ा बाधक है। इसके वशीभूत होकर चलने वाला मनुष्य प्राय पतन की ओर जाता है। श्रेय पथ की यात्रा उसके लिए दुरूह व दुर्गम हो जाती है। अहंकार से भेद बुद्धि उत्पन्न होती है, जो मनुष्य को मनुष्य से ही नहीं, अपितु अपने मूलस्रोत परमात्मा से भी भिन्न कर देती है। परमात्मा से भिन्न होते ही मनुष्य में पाप प्रवृत्तियां प्रबल हो उठती हैं।

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हिमशिखर धर्म डेस्क

दुर्वासा ऋषि स्वर्ग से लौट रहे थे। वे लगातार भ्रमण किया करते थे। सभी जानते थे कि उनका गुस्सा बहुत तेज है। जिन लोगों को बहुत गुस्सा आता है, उनका नाम ही दुर्वासा रख दिया जाता है। दुर्वासा गुस्से में किसी को भी नहीं छोड़ते थे।

एक बार दुर्वासा ऋषि के रास्ते में सामने से देवताओं के राजा देवराज इंद्र चले आ रहे थे। वे ऐरावत हाथी पर बैठे हुए थे। दोनों ने एक-दूसरे को देख लिया। दुर्वासा जी के पास एक माला थी, जिसे भगवान ने उन्हें भेंट में दी थी। दुर्वासा जी ने सोचा कि देवराज इंद्र त्रिलोकपति हैं, ये माला मेरे किस काम की, ये मैं इन्हें दे देता हूं।

दुर्वासा ऋषि ने वो माला इंद्र को दे दी। देवराज ने माला ले तो ली, लेकिन वे राजा थे और हाथी पर बैठे हुए थे। एक राजा की तरह उनमें भी अहंकार था। इंद्र ने सोचा कि इस माला का मैं क्या करूंगा। ऐसा सोचकर इंद्र ने वह माला अपने हाथी के ऊपर डाल दी। जबकि उन्हें एक संत के द्वारा दी गई माला का सम्मान करना था।

हाथी तो पशु था, उसने अपनी सुंड ऊपर की, माला ली और पैरों के नीचे कुचल दी। दुर्वासा ये देखकर गुस्सा हो गए और बोले, ‘इंद्र मैं तुझे अभी श्राप देता हूं कि तेरा राज्य चला जाएगा, तेरा वैभव भी जाएगा और तू श्रीहीन हो जाएगा।’

दुर्वासा जी के श्राप के कारण ऐसा ही हुआ। देवताओं पर असुरों ने आक्रमण कर दिया, जिसमें देवता पराजित हो गए। इसके बाद सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी ने सभी को समझाया कि ये सब दुर्वासा जी के अपमान का परिणाम है।

सीख – इस कथा का संदेश ये है कि हमें कभी भी अपने माता-पिता, साधु-संत और गुरुजनों द्वारा दी गई चीजों का अपमान नहीं करना चाहिए। उनकी चीजों का सम्मान करें और उनकी बातों का भी मान रखें। हम किसी भी पद पर हों, इन लोगों का हमेशा सम्मान करें। हमारा अहंकार हमारे करीबी लोगों का अपमान करवा देता है। जैसे ही हम करीबी लोगों और विद्वानों का अपमान करते हैं, हमारे जीवन में परेशानियां बढ़ने लगती हैं।

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