कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत
समय-समय पर मैं अपनी कहानियों, संस्करणों, कविताओं के द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों की लोक कला और लोक संस्कृति और वैज्ञानिक शोध को उद्धरित करता रहता हूं। घराट (घट्ट) के बारे में घट्वाला़, भग्वा़ला आदि पर मेरी कई कहानियां गढ़वाली में सामुदायिक रेडियो के द्वारा प्रसारित हैं।
बच्चों की उत्सुकता के लिए आज घट्ट की संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूं। टेहरी हाइड्रो बहुउद्देशीय जल विद्युत परियोजना से शायद ही कोई अनविज्ञ होगा।
घराट(घट्ट) उस परियोजना का जनक है। जेम्स वाट के अविष्कार के द्वारा आज विश्व में रेलवे का जाल बिछा है। उसके पीछे ‘भाप में शक्ति है’ या उसकी ‘केतली का ढक्कन’ संपूर्ण रेलवे जगत का जनक है। ठीक इसी तरह बहुउद्देशीय जल विद्युत परियोजनाओं का जनक भी घराट या घट्ट है।
वर्षों पहले उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों के लोग एक वैज्ञानिक सोच का विकास हुआ। एक बहुत बड़ा आविष्कार हुया और ‘जांद्रा’ के स्थान पर घराट या घट्ट का आविष्कार किया।
मेरी उम्र के अधिकांश लोगों ने घट्ट जाकर घट्ट में अवश्य अनाज (आटा) पिसवाया होगा। मेरी पीढ़ी के सब लोग आज भी घट्ट, घट्वाला, भग्वाल़ा, पंडाल़ा, जलदोड़ा, पौंल़ा, भेरनी,उचंणकट्या, कूल, रियूड़ा, लोखर, अखल्यार,भग्वाल़ी आदि के बारे में खूब जानते हैं लेकिन आज के बच्चों के लिए या रामबोला है।
मेरी दादी बताती है कि हमने जान्द्रे का प्रयोग कर अनाज पीस कर आटा बनाया था। लेकिन जब घट्ट बन गए तो तो फिर जान्द्रा दूर हो गया। ठीक उसी तरह जैसे अब गांव -गांव या शहर में आटा पीसने की चक्कियां लग गई हैं या शहरों में फ्लोर मिल्स का प्रचलन है। अब घट्ट आकर अनाज पीसना (घटवाड़ी) इतिहास की वस्तु गए हैं।
हमें इस वैज्ञानिक आधार को संजो कर रखना है। क्योंकि इसी घराट या घट्ट के पीछे आज विश्वव्यापी बहुउद्देशीय जल विद्युत परियोजनाओं का आविष्कार किया गया है।
‘जल की शक्ति का विकास’ के लिए इससे पूर्व भी कई आविष्कार हुये होंगे लेकिन घराट का आविष्कार, आग या पहिए के अविष्कार से कम नहीं है।
इसमें हमारे पूर्वजों द्वारा दी गई एक वैज्ञानिक सोच और शोध है जो हमें विकास का आधार प्रदान करता है।आज हमें सुविधाएं प्राप्त हो रही हैं। घराट के निर्माण के लिए अथक परिश्रम करना पड़ता है। हर समय देख-रेख करनी लाजमी है। यदि अनजान आदमी कभी आटा पीसने लग जाए और ठेंटा लग जाए मतलब भेरनी पर कुछ फंस जाए, तो पानी घट्ट के अंदर आ जाता है और सब आटा खराब हो जाता है। यह हमने प्रत्यक्ष देखा है।
घराट निर्माण में पंडाले जिसको कि हम टनल कह सकते हैं, सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है। इसको बनाने और लाने में जनशक्ति का इस्तेमाल होता है। पत्थर का घट्ट और तली़ के लिए भी पर्याप्त जनशक्ति का होना आवश्यक है। भेरनी और उसके पौंलौं को बनाना, जिसे हम टरबाइन कह सकते हैं, कुशल कारीगर की जरूरत होती है। जो कि हमारे पूर्वज बहुत आसानी से बना देते थे। पानी की निकासी के लिए जलदोड़े का निर्माण, घट की चाल बढ़ाने- घटाने के लिए उचणकटि्या और मजबूत लोहे के बने हुए लोखर का इस्तेमाल भी अत्यंत आवश्यक है।
घराट में कुलतोड़े का भी स्थान है। कूल लगाने के लिए और कूल तोड़ने के लिए यह लकड़ी के फट्टों का बना होता है। साथ ही उसके पीछे घांगे लगे होते हैं जो कि गाच्चे लगने से भेरनी या टरबाइन को बचाते हैं। घटृ निर्माण एक अकेले कमरे में किया जाता है। सिंगल रूम। केवल एक दरवाजा। और बाहर देखने के लिए ठीक जलदोड़े के ऊपर एक खिड़की होती है। घटृ के मालिक भग्वाल़ा को अनाज पिसाई के रूप में आटा दिया जाता था। कभी-कभी तो उतना आटा भी नहीं दिया जाता था, जितना कि भूख से तड़पते हुई है घटवाले़ को भग्वाला रोटी खिला देता था। लहसुन और धनिए की हरी पत्तियों से बनी हुई चटनी और मंडवे की रोटी, अक्सर भग्वाले अपने ग्राहक घटवालो़ं को मानव धर्म के नाते प्रदान करते थे।
घटृ हमेशा गहरी घाटियों में बने होते हैं। जहां जल स्रोत होते हैं तथा भेरनी/ टरबाइन को चलाने के लिए पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है। 6-6 / 7-7 किलोमीटर दूर से लोक अनाज पिसवाने के लिए घटृ में आते थे। कभी-कभी तो 12 से 14 घंटे का समय लग जाता था।
यद्यपि जीवन के लिए हुए वह अत्यंत कठिनसमय था लेकिन यदि पूर्वजों के कार्यों को न समझें होते तो आज हम विकास के आविष्कारों से दूर होते। वही पाषाण युग में जीवन जीते।
इसलिए अपने पूर्वजों की सोच को नमन करते हुए, उनके द्वारा किए गए छोटे -छोटे महत्वपूर्ण आविष्कारों को विकास कार्यों में लगाना है ताकि रोजगार के साथ- साथ हम सुखी जीवन भी जीत सकें। पलायन रूपी भटकाव से हमें निजात मिल सके। नये-नये वैज्ञानिक शोधों का अविष्कार हो। पुरानी चीजों पर शोध हो और विकास के नए मार्ग खुलें। इसी प्रक्रिया में घराट या घटृ जैसी महत्वपूर्ण उपलब्धि का योगदान सदैव रहेगा।