पंडित उदय शंकर भट्ट
फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान नृसिंह की पूजा करने की परंपरा है। विष्णु जी के 12 अवतारों में से सबसे अद्भुत अवतार भगवान नृसिंह का माना गया है। अद्भुत इसलिए की इस अवतार में भगवान का आधा रुप मानव और आधा शेर का था। एक तो नरसिंह भगवान का ये रुप बहुत रुद्र था दूसरी तरफ उनका ये अवतार अत्यधिक वात्सल्य को भी दर्शता है। आज का दिन भगवान विष्णु के अवतार नृसिंह भगवान को समर्पित होता है। नृसिंह द्वादशी का वर्णन वेदों और पुराणों में भी किया गया है
नृसिंह भगवान, विष्णु जी के 12 अवतारों में से एक हैं। मान्यताओं के अनुसार, नृसिंह द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतार भगवान नरसिंह खंभे को चीर कर प्रकट हुए थे। इनका आधा शरीर मनुष्य और आधार शेर का था। इन्होंने असुरों के राजा हिरण्यकश्यप का संघार किया था। भगवान विष्णु का ये अवतार भक्ति की पराकाष्ठा को सिद्ध करता है। अपने भक्त के लिए प्रभु खंभे में से भी प्रगट हो जाते हैं। इनके प्रकट होने के चलते ही इस दिन नृसिंह द्वादशी मनाई जाती है। भगवान नृसिंह की पूजा से कुंडली में हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं। दुश्मनों पर जीत मिलती है और बीमारियां दूर होती हैं। होलिका दहन से तीन दिन पहले नृसिंह भगवान की पूजा की जाती है।
नृसिंह द्वादशी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को नृसिंह द्वादशी मनाई जाती है। इसका जिक्र विष्णु पुराण में आता है। भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य और आधा शेर के शरीर में नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिप का वध किया था। उसी दिन से इस पर्व की शुरुआत मानी जाती है। भगवान विष्णु के इस स्वरूप ने प्रहलाद को भी वरदान दिया कि, जो कोई इस दिन भगवान नृसिंह का स्मरण करते हुए, श्रद्धा से उनका व्रत और पूजन करेगा उसकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इसके साथ ही उसके रोग, शोक और दोष भी खत्म हो जाएंगे।
नृसिंह पूजन विधि
नृसिंह पूजा के लिए भी सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और पीले कपड़े पहनें। पीले चंदन या केसर का तिलक लगाएं। शुद्ध जल के बाद दूध में हल्दी या केसर मिलाकर अभिषेक करें। इसके बाद भगवान को पीला चंदन लगाएं। फिर केसर, अक्षत, पीले फूल, अबीर, गुलाल और पीला कपड़ा चढ़ाएं। इसके बाद पंचमेवा और फलों का नैवेद्य लगाकर नारियल चढ़ाएं और धूप, दीप का दर्शन करवाकर आरती करें।
नृसिंह भगवान की पूजा का मंत्र
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥