हिन्दू धर्म के सोलह संस्कारों में एक है विवाह संस्कार। इस संस्कार का एक नियम यह है कि जब वर-वधू विवाह मंडप में आते हैं तब पुरोहित ईश्वर को साक्षी मानकर वर-वधू का विवाह संपन्न करवाते हैं। लेकिन विवाह तब तक संपन्न नहीं माना जाता है जब तक कि वर-वधू अग्नि के सामने सात फेरे लेकर सात वचन निभाने का वादा न कर लें।
हिमशिखर खबर ब्यूरो
हिन्दू धर्म में विवाह तब तक सम्पन्न नही माना जाता जब तक वर और वधु अग्नि के सामने सात फेरे लेकर सात वचन निभाने का वादा न कर लें। परन्तु क्या आप जानते हैं कि विवाह के समय अग्नि को ही क्यों साक्षी मानकर वर-वधू का विवाह सम्पन्न करवाया जाता है? आइए जानते हैं कि अग्नि के सिवाय किसी और चीज को साक्षी मानकर क्यों फेरे नहीं लिए जाते हैं।
शास्त्रों में अग्नि को देवता कहा गया है। अग्नि को विष्णु का स्वरुप माना गया है। माना जाता है कि अग्नि में सभी देवताओं की आत्मा बसती है, इसलिए हवन के समय अग्नि में डाली गई सामग्रियों का अंश सभी देवताओं तक पहुंच जाता है।
माना जाता है कि अग्नि के चारों तरफ फेरे लेकर सात वचन लेते हुए विवाह सम्पन्न होने का अर्थ है कि वर-वधू ने सभी देवताओं को साक्षी मानकर एक दूसरे को अपना जीवनसाथी स्वीकार किया है और विवाह की जिम्मेरियों को निभाने का वचन लिया है।
अग्नि को बहुत पवित्र और अशुद्धियों को दूर करने वाला माना जाता है। कहा जाता है कि अग्नि के फेरे लेने से वर-वधू ने सभी प्रकार की अशुद्धियों को दूर करके शुद्ध भाव से एक दूसरे को स्वीकार किया है।
अग्नि के समक्ष फेरे लेने का अर्थ होता है कि देवी देवताओं की उपस्थिति में वर वधू ने एक दूसरे को जीवनसाथी स्वीकार किया है। अगर वह अपने वैवाहिक जीवन के धर्म का पालन नहीं करते हैं तो अग्नि ही उन्हें दंड देगी।