नीम करोली बाबा ने पकड़ी खिलौना व्यापारी की चतुराई, फिर दर्शन देने से किया मना

हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

नीम करोली बाबा वृन्दावन आश्रम में आराम कर रहे थे। आनंदमयी माँ ने बाबा से कहा कि इस साल हाथी बाबा का जन्म दिन मनाएंगे। नारायण बाबा बताते हैं कि नीम करोली बाबा हमेशा संतों का जन्म दिन मनाते थे। हर जन्म दिन पर एक भंडारे का आयोजन होता था। नारायण बाबा के मुताबिक नीम करोली बाबा भंडारा बेहद अजीब ढंग से करते थे। वो सबकी ड्यूटी लगा देते थे। हर व्यक्ति को उसके सामर्थ अनुसार काम सौंपा जाता था। जैसे किसी को सिर्फ चीनी लाने का, किसी को सूजी, किसी को रामरस (नमक), किसी को आलू, तो किसी को आटा तो किसी को कुछ। किसी एक पर बोझ नहीं डालते थे बाबा और हर किसी को भंडारे में शामिल होने का सौभाग्य भी प्राप्त होता था।

जब आनंदमयी माँ नीम करोली बाबा से भंडारे के के आयोजन का जिक्र कर ही रही थी कि दिल्ली का एक खिलौना व्यापारी वहां अपनी पत्नी के साथ खड़ा था। अपने घमंड में बोला बाबा भंडारे का सारा घी मैं दूंगा। बाबा हमेशा भंडारा देसी घी में ही किया करते थे। नारायण बाबा ने बताया कि बाबा ने उसकी तरफ देखे बिना उसे मना कर दिया। ये बात लाला के दिल पर चोट कर गयी। भला लखपति लाला को कैसे मना कर दिया बाबा ने । क्या उसकी औकात इतनी भी नहीं कि वो भंडारे में घी दान कर सके। हिम्मत कर फिर बोला बाबा मैं 10 कनस्तर घी दूंगा। बाबा ने फिर मना कर दिया।

पास ही एक छोटा व्यापारी चुपचाप बैठा था। बाबा ने उसे 4 कनस्तर घी लाने को कहा। उस लाला ने बिना कुछ बोले बाबा के पैर छुए और सिर झुका दिया। अब तो इन्तहा गयी। एक छोटा सा दुकानदार 4 कनस्तर घी दे सकता है और मैं खिलौने का इतना बड़ा व्यापारी कुछ नहीं दे सकता। वो बाबा के पीछे पड़ गया। और ज़िद पर अड़ गया कि घी तो मैं लाकर ही रहूँगा। बाबा मुस्कुराए और बोले चल एक कनस्तर देसी घी ले आना और ध्यान रखना सिर्फ एक कनस्तर न ज्यादा न कम।

नीम करोली बाबा ने नारायण बाबा से एक मृदंग लाने को भी कहा। आनंदमयी माँ ने उड़िया बाबा के जन्म दिन पर 108 मृदंग बांटी थीं और आखिरी मृदंग नारायण बाबा को मिली थी। लेकिन नारायण बाबा को वो बजानी नहीं आती थी। आनंदमयी माँ ने नारायण बाबा से कहा था कि तुम सिर्फ हाथ रख देना तो मृदंग खुद ब खुद बजेगी। और हुआ भी वैसा ही।बाबा नीम करोली को वो मृदंग पसंद थी और वो हमेशा नारायण बाबा से उस मृदंग को वृन्दावन लाने को कहते थे।

उस खिलौना व्यापारी से नीम करोली बाबा ने कहा कि जब दिल्ली से आओ तो नारायण बाबा को साथ लेकर आना । क्योंकि नारायण के पास वो मृदंग होगी उसे ठीक से लाना है। और नारायण को भी खाते पिलाते वृन्दावन लाना। ध्यान रखना घी लाने में देरी न हो।

भंडारे का समय आ गया। सुबह सुबह वो व्यापारी एमबस्डर कार में मेहरौली मंदिर आ गया। नारायण बाबा मृदंग के साथ तैयार थे। वो ड्राइवर के साथ आगे बैठ गए, लाला और उसकी पत्नी पीछे बैठ गए। कार वृन्दावन की ओर चल पड़ी। बीच बीच में लाला नारायण बाबा का इंटरव्यू सा ले रहा था। बाबा मन ही मन राम राम राम का जाप कर थे। लाला बोला कि नारायण तुम क्या वो मृदंग लाए हो। नारायण बाबा बोले कि मृदंग तो आनंदमयी माँ के सामने ही बजेगी। सफर धीरे धीरे कट रहा था कि अचानक लाला ने अपनी पत्नी को बताया कि घर में घी ख़त्म हो गया था वो तो समय पर वो कनस्तर ले आया तो घर में घी की कमी पूरी हो गयी।

दरअसल उस लाला ने घी कनस्तर से घर इस्तेमाल के लिए घी निकाला था जो वो वृन्दावन के भंडारे के लिए ले जा रहा था। लाला ने चतुराई दिखा दी और ये बात नीम करोली बाबा पहले से ही जानते थे। व्यापारी की पत्नी ने उन्हें इस बात के लिए टोका और कहा कि आधे कनस्तर को भंडारे के लिए देना उचित नहीं। आप मथुरा या वृन्दावन से पूरा एक कनस्टर घी लेकर ही बाबा के आश्रम में चलें। लेकिन उस व्यापारी ने जैसे बात सुनी अनसुनी कर दी और ड्राइवर से कहा कि जैसे ही आश्रम पहुंचे वो चुपचाप पीछे से जाकर रसोइये को घी का कनस्तर दे दे।

चलो वृन्दावन आ गया और कार बाबा के आश्रम की तरफ बढ़ गयी। कार को थोड़ा पहले रोक कर व्यापारी उत्तर गया और ड्राइवर को तेजी से रसोइये के पास जाने को कहा। ड्राइवर ने भी मालिक का कहना माना और जब उसने देखा कि आश्रम में भीड़ बहुत है तो चुपचाप रसोइये के पास जाने लगा। लेकिन नीम करोली बाबा को जैसे इसी कनस्तर का इंतजार था। इससे पहले कि ड्राइवर रसोइये तक पहुंचता नीम करोली बाबा रास्ते में खड़े थे। व्यापारी स्तब्ध रह गया, ड्राइवर बेबाक रह गया कि बाबा जैसे सब जानते थे। उन्होंने कनस्तर पकड़ने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। ड्राइवर कुछ नहीं कह पाया और उसने घी का कनस्तर बाबा को थमा दिया।

बाबा बोले लाला घी तो अब नाली ही पीयेगी। क्रोध में थे सो सारा घी नाली में बहा दिया। व्यापारी और उसकी पत्नी के पास कोई जवाब था। नीम करोली बाबा ने कहा कि मैंने तुम्हे मना किया था और तुमने ज़िद्द की फिर भी वचन की लाज नहीं रखी। गुरु के भंडारे में भी तुम चालाकी दिखाते हो। आज के बाद लाला हम तुम्हें दर्शन नहीं देंगे। कहकर बाबा वहां से चले गए। व्यापारी की सारी चालाकी धरी की धरी रह गयी – कहते हैं कि इस घटना के बाद व्यापारी की माली हालत बेहद खराब हो गयी और व्यापार डूबने लगा। उस व्यापारी की पत्नी ने नारायण बाबा से कहकर नीम करोली बाबा से मुलाकात की और पांव पकड़कर माफ़ी मांगी। बाबा ने माफ़ कर दिया लेकिन शर्त थी कि उसका पति कभी आश्रम नहीं आएगा।

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