हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

देवी भागवत पुराण के अनुसार पूरे वर्ष में चार नवरात्रि मनाई जाती हैं जिनमें दो गुप्त नवरात्रि सहित शारदीय नवरात्रि और बासंती नवरात्रि जिसे चैत्र नवरात्रि कहते हैं शामिल हैं। दरअसल ये चारों नवरात्रि ऋतु चक्र पर आधारित हैं और सभी ऋतुओं के संधिकाल में मनाई जाती हैं। शारदीय नवरात्रि वैभव और भोग प्रदान करने वाली है। गुप्त नवरात्रि तंत्र सिद्धि के लिए विशेष है जबकि चैत्र नवरात्रि आत्मशुद्धि और मुक्ति के लिए। वैसे सभी नवरात्रि का आध्यात्मिक दृष्टि से अपना महत्व है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो यह प्रकृति और पुरुष के संयोग का भी समय होता है। प्रकृति मातृशक्ति है इसलिए इस दौरान देवी की पूजा होती है।

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि संपूर्ण सृष्टि प्रकृतिमय है और वह सिर्फ पुरुष हैं। यानी हम जिसे पुरुष रूप में देखते हैं वह भी आध्यात्मिक दृष्टि से प्रकृति यानी स्त्री रूप है। स्त्री से यहां मतलब यह है कि जो पाने की इच्छा रखने वाला है वह स्त्री है और जो इच्छा की पूर्ति करता है वह पुरुष है। ज्योतिष की दृष्टि से चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है क्योंकि इस नवरात्रि के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्रि तत्व वाले हैं इसलिए इनके संयोग में गर्मी की शुरूआत होती है।

चैत्र नवरात्रि से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। इसी दिन से वर्ष के राजा, मंत्री, सेनापति, वर्ष कृषि के स्वामी ग्रह का निर्धारण होता है और वर्ष में अन्न, धन, व्यापार और सुख शांति का आकलन किया जाता है। नवरात्रि में देवी और नवग्रहों की पूजा का कारण यह भी है कि ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में खुशहाली बनी रहे। धार्मिक दृष्टि से नवरात्रि का अपना अलग ही महत्व है क्योंकि इस समय आदिशक्ति जिन्होंने इस पूरी सृष्टि को अपनी माया से ढका हुआ है जिनकी शक्ति से सृष्टि का संचालन हो रहा है जो भोग और मोक्ष देने वाली देवी हैं वह पृथ्वी पर होती हैं। इसलिए इनकी पूजा और आराधना से इच्छित फल की प्राप्ति अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी होती है।

चैत्र नवरात्रि का धार्मिक दृष्टि से खास महत्व है क्योंकि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थीं और देवी के कहने पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का काम शुरू किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष शुरू होता है। चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार जो भगवान राम का है वह भी चैत्र नवरात्रि में हुआ था।

नवरात्रि का महत्व सिर्फ धर्म, अध्यात्म और ज्योतिष की दृष्टि से ही नहीं है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी नवरात्रि का अपना महत्व है। ऋतु बदलने के लिए समय रोग जिन्हें आसुरी शक्ति कहते हैं उनका अंत करने के लिए हवन, पूजन किया जाता है जिसमें कई तरह की जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है। हमारे ऋषि मुनियों ने न सिर्फ धार्मिक दृष्टि को ध्यान में रख कर नवरात्रि में व्रत और हवन पूजन करने के लिए कहा है बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है। नवरात्रि के दौरान व्रत और हवन पूजन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही बढिय़ा है। इसका कारण यह है कि चारों नवरात्रि ऋतुओं के संधिकाल में होते हैं यानी इस समय मौसम में बदलाव होता है जिससे शारीरिक और मानसिक बल की कमी आती है। शरीर और मन को पुष्ट और स्वस्थ बनाकर नए मौसम के लिए तैयार करने के लिए व्रत किया जाता है।

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