एक लोक कथा है। कथा एक ऐसे राजा की है, जिसके पास धन-दौलत, बड़े-बड़े महल, शाही खाना, बड़ा राज्य, सुख-सुविधा, सेवक और सब कुछ था, लेकिन नहीं थी तो बस शांति। शांति पाने के लिए राजा कुछ न कुछ कोशिश करते रहता था, लेकिन अशांति दूर नहीं हो रही है।
एक दिन राजा मानसिक तनाव की वजह से दुखी होकर अपने घोड़े पर चढ़ा और जंगल की ओर निकल गया। राजा अकेला ही था, उसके साथ कोई सैनिक या सेवक नहीं थे। जंगल बहुत ही घना था। ऊंचे-ऊंचे पेड़ थे, पेड़ इतने ऊंचे-ऊंचे थे कि सूर्य की रोशनी भी ठीक से नीचे नहीं पहुंच रही थी।
जंगल में भटकते-भटकते राजा को बांसुरी की मधुर आवाज सुनाई देने लगी। राजा आवाज सुनकर हैरान था कि घने जंगल में इतनी मधुर बांसुरी की आवाज कहां से आ रही है।
कौन है जो इतना शांत है और इतनी मधुर बांसुरी बजा रहा है। राजा बांसुरी की आवाज की दिशा में आगे बढ़ने लगा। थोड़ी ही दूर जाकर राजा ने देखा कि एक ग्वाला पेड़ के नीचे बैठा है और बांसुरी बजा है। ग्वाले के कपड़े भी फटे-पुराने थे, माथे पर गमछा लपेट रखा था, उसके चेहरे पर मुस्कान और शांति दिखाई दे रही थी।
राजा सोचने लगा कि मैं इतना धनवान हूं, सेवक हैं, मुझे सुख-सुविधा की कोई कमी नहीं है, फिर मेरे चेहरे पर ऐसी शांति नहीं रहती है, जैसी इस गरीब ग्वाले के चेहरे पर है।
ग्वाले के आसपास उसकी गायें घास चर रही थीं। राजा ने उस ग्वाले के पास पहुंचा। ग्वाले ने राजा को देखा तो वह खड़ा हो गया और प्रणाम करने लगा।
राजा ने ग्वाले से पूछा कि भई एक बात बताओ, तुम तो इतने शांत हो जैसे तुम्हारे जीवन में कोई दुख ही नहीं है, इतनी मधुर बांसुरी बजा रहे हो, जबकि तुम्हारे कपड़े देखकर लगता है कि तुम काफी निर्धन हो।
ग्वाले ने कहा कि राजन् मैं बहुत ही सीधा-साधा ग्वाला हूं। मेरे पास कोई धन-दौलत नहीं है और मैं धनवान बनना भी नहीं चाहता, मैं राजा बनना नहीं चाहता। कहने के लिए तो व्यक्ति राजा बन जाता है, लेकिन असल में वह सेवक होता है। पूरे राज्य का और प्रजा का भार उसके ऊपर होता है। गलत इच्छाएं नहीं हैं तो मैं शांत हूं। राजा से अच्छा तो मैं गरीब ग्वाला ही बेहतर हूं, कम से कम मेरे जीवन में शांति तो है।
ये बातें सुनकर राजा सोच में पड़ गया, एक ग्वाला इतनी अच्छी बातें कह रहा था। राजा को समझ आ गया कि मेरे पास धन-संपत्ति भले ही है, मैं राज्य को और बढ़ाने की कोशिश करते रहता हूं, प्रजा से नए-नए कर के रूप में धन लेने की योजना बनाता हूं, ऐसी ही गलत इच्छाओं की वजह से मेरा मन अशांत है।
ग्वाले ने कहा कि राजन् सच्ची शांति इच्छाओं का त्याग करने के बाद ही मिल सकती है। जब तक मन में विचार चलते रहेंगे, मन अशांत रहेगा। तरह-तरह के विचार चलते रहेंगे तो तनाव कभी खत्म नहीं होगा।
ग्वाले की बातें सुनकर राजा को शांति पाने का रास्ता मिल गया था। अब राजा ने व्यर्थ इच्छाएं छोड़ दीं। अपने राज्य में ही संतुष्ट रहने लगा तो बहुत ही जल्द उसका मन भी शांत हो गया।
अगर हम तनाव दूर करना चाहते हैं तो हमें भी गलत इच्छाओं को छोड़ना पड़ेगा। वर्ना हमें शांति नहीं मिल पाएगी। शांति पाने के लिए गलत इच्छाएं छोड़ें और ध्यान करें।