हिमशिखर धर्म डेस्क
हिंदी संत-साहित्य संतों की कीर्ति गाथा का अनुपम भंडार है। इसकी महिमा चिरन्तन काल से लेकर आज तक हमारे समक्ष साहित्य के रूप में मार्गदर्शन करा रही है। सच कहा जाए तो यह संत-काव्य का कंठहार है। हिंदी के संतों की परम्पराएं बहुत महान, बड़ी उच्च और बड़ी भव्य हैं। इनके साहित्य में लोक-कल्याण की भावना सर्वत्र प्रमुख और सजीव है। समाज की सेवा इन्होंने निष्पक्ष और निःस्वार्थ भावना से की। ‘कबिरा खड़ा बाजार में चाहत सबकी खैर, ना काहू से दौसती ना काहू से बैर।’ इस भावना के ये एक सुंदर उदाहरण हैं।
इसी महान परंपरा में महान संन्यासी और देशभक्त स्वामी रामतीर्थ का जीवन-दर्शन अत्यंत ही प्रेरणादायक है। वे भारत की प्राचीन गौरव गरिमा के जीवित स्मारक के रूप में भगवान शंकराचार्य की ही भांति आए तो थे केवल 33 वर्ष की अल्यपायु लेकर, किंतु इसी अल्पजीवन में वे हमारे अंतस्तल में अपने स्वर्गीय व्यक्तित्व की अमिट छाप अंकित कर गए।
जन्मशती के पावन उपलक्ष्य में भारत सरकार ने उनके सम्मान में उनकी मूर्ति से अंकित विशेष डाक टिकट जारी किया था।
जन्मशती के पावन अवसर अपने उद्घाटन भाषण में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वामी रामतीर्थ की अनुपम देन की चर्चा करते हुए कहा था- ‘जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, तब अनेक महान विभूतियों को इस देश ने जन्म दिया, जिन्होंने धर्म पिपासुओं को मार्ग दिखाया और प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि स्वामी रामतीर्थ रूढ़िवाद के कट्टर विरोधी थे और वैज्ञानिकता और सच्चाई की कसौटी पर नीति, रीतियों को कसते थे-पर वे विज्ञान को आत्मा से ऊपर नहीं मानते थे।’
भारतीय समाज को स्वामी रामतीर्थ की देन बहुत बड़ी है। उन्होंने इस देश के लिए वेदांतिक समाजवाद के रूप में एक अभिनव सामाजिक दर्शन प्रस्तुत किया, जिसके द्वारा इस देश की शोषित और पीड़ित जनता का सच्चे अर्थाें में कल्याण हो सकता है। उन्होंने अपने व्याख्यानों से भारतवासियों की उदासीनता को जड़ से विनष्ट करने के लिए, अपने विचारों और चिंतन द्वारा समाजवाद के सिद्धांत को जन्म दिया।