उत्तराखंड: गमछा और खादी वाले आइएएस अब कहलाएंगे भगवाधारी, बोले-गांव में रोजगार तलाशो, मत रहो सरकार के भरोसे

देशभर में अब तक गमछा और खादी वाले आइएएस के रूप में प्रसिद्ध पूर्व आइएएस डा. कमल टावरी ने संन्यास ग्रहण कर लिया है। कमल टावरी फौजी भी रहे हैं, आईएएस ऑफिसर के रूप में कलेक्टर भी रहे, कमिश्नर भी रहे, भारत सरकार में सचिव भी रहे, एक लेखक भी हैं, समाजसेवी और मोटिवेटर भी हैं।


हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

नई टिहरी: भारत सरकार में सचिव रहे पूर्व आइएएस डा. कमल टावरी ने संन्यास ग्रहण कर लिया। नया इतिहास रचते हुए डा. कमल टावरी ने विधिवत् संन्यास की दीक्षा ग्रहण की। संन्यास ग्रहण करने के बाद नए जीवन के लिए डा. कमल टावरी को स्वामी कमलानंद नाम प्रदान किया गया। 

पूर्व आइएएस डा. कमल टावरी ने विधिवत भगवा कपड़े पहनकर जनमुद्दों की लड़ाई जारी रखने का संकल्प लिया। कहा कि अपने मिशन में अब वह गांव से लेकर देश के विकास में अपवाद के रूप में काम करने वालों को तलाशेंगे। इसके बाद गांव के विकास से जुड़ी योजनाओं पर काम करेंगे। संन्यास के बाद अब वह स्वामी कमलानंद के रूप में जाने जाएंगे।

उत्तरप्रदेश कैडर के 1968 बैच के पूर्व आईएएस कमल टावरी उत्तराखंड के विकास को लेकर वर्षों से चिंतित हैं। उत्तराखंड भ्रमण के दौरान वह अक्सर  राजधानी से लेकर जिलों में यहां के विकास के रोडमैप पर अपने विचार व्यक्त करते आ रहे हैं। हाल ही में उन्होंने भगवान बद्रीनाथ के दर्शन कर वहां पर्यावरण सुरक्षा और उद्गम से प्रदूषित होती अलकनंदा के प्रति चिंता जाहिर कर जिम्मेदार लोगों का ध्यान आकर्षित किया।

फोन से बातचीत करते हुए कहा कि आज सरकारी व्यवस्था से हटकर काम करने की जरूरत है। खासकर ऑर्गेनिक खेती, पशुपालन, जड़ीबूटी की खेती, बागवानी, साग-सब्जी वाले काम से गांव में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। कई उत्पाद तो विदेशों में भी मुंह मांगे दाम पर बिकेंगे। डॉ टावरी ने कहा कि अब जरूरत है कि लोगों को लेकर लड़ा जाए। यह काम सिर्फ लोगों के हितों के लिए होगा।

कहा कि सभी को पता है कि हम पर्यावरण को नोच -खसोट रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि इसका नतीजा हमें भुगतना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि इस परेशानी से बचने के लिए प्राकृतिक नियमों का पालन करना होगा और इसमें गाय से गांव की समृद्धि लानी होगी। स्वाबलंबी बनने के लिए युवाओं को स्वरोजगार पर ध्यान देना होगा, रोजगार बढ़ेगा तभी देश उन्नति के रास्ते पर चलते हुए भारत विश्वगुरु बन पाएगा। कृषि उत्पादन में अत्यधिक उर्वरक और दवाओं का उपयोग जीवन के लिए खतरा बनता जा रहा है। तेजी से पनप रहीं बीमारियों पर नियंत्रण के लिए अब जैविक खेती को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है।

पंचगव्य विद्यापीठम विश्वविद्यालय कांचीपुरम के उपकुलपति आईएएस डॉ. कमल टावरी ने बुधवार को कहा कि पंचगव्य का असाधारण रोगों को भी दूर करने में सफल प्रयोग किया जा रहा है। पंचगव्य चिकित्सा तथा आयुर्वेद की विश्व में लगातार मान्यता बढ़ रही है। आयुर्वेद सम्पूर्ण विश्व को भारत की ही देन है।

आईएएस कमल टावरी तामिलनाडु के कांचीपुरम स्थित पंचगव्य विद्यापीठम विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी हैं।  कहा  भारत कृषि प्रधान देश है। यहां की धरती शस्य श्यामला गौधन के कारण ही है। देशी गाय के दूध, गोमूत्र, घी, छाछ, गोबर से पंचगव्य बनता है, जो समस्त रोगों का नाश करता है। इससे हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों का निवारण होता है। उन्होंने कहा कि इस देश को पुनः विश्व गुरू बनाने के लिए भारतीय जीवन मूल्यों को पुनःस्थापित करना होगा। देशी गाय एवं उसके उत्पादों का विस्तार, आयुर्वेद को बढ़ावा, योग प्राणायाम, प्राकृतिक जीवन शैली को अपनाकर ही विश्व में सुख शांति आ सकती है।

संत ही समाज के सच्चे पथ प्रदर्शक हैं। संतों के आशीर्वचन से ही संस्कृति की जीवंतता बनी रहने के साथ सुसंस्कृत समाज की स्थापना हो सकती है।

रिटायर होने के बाद भी देश सेवा का काम रहा बरकरार
2006 तक कई जिलों के कलेक्टर और कई जगहों के कमिश्नर रहने के अलावा राज्य और केन्द्र सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों के सचिव रह चुके हैं। रिटायर होने के बाद भी उन्होंने देश सेवा का काम बरकरार रखा, बस तरीका अलग रहा। वे बेरोजगारी पर प्रहार करने के लिए युवाओं जागरूक कर रहे हैं। वे युवाओं को स्वरोज़गार के लिए प्रेरित करते हैं तथा लोगों को तनाव मुक्त जीवन जीने का हुनर सिखाते हैं।

लिख डालीं हैं 40 पुस्तकें और एलएलबी और अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट
रिटायर्ड आईएएस कमल टावरी ने अभी तक 40 पुस्तकें भी लिखीं हैं। एलएलबी होने के साथ साथ अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की है।

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