अन्न के महत्व को समझने की आवश्यकता है: पैन्यूली

सी. ए. राजेश्वर पैन्यूली

Uttarakhand

अन्न सिर्फ हमारी भूख ही नहीं मिटाता, बल्कि अन्न से हमारा मन भी बनता है। जो हमारे जीवन में शांति और अशांति का भी कारण होता है। इस लिहाज से अन्न के प्रति सावधान रहने की जरूरत है। इसीलिए कहा गया है जैसा अन्न, वैसा मन। ऐसे में हमेशा आहार की शुद्धि पर विशेष ध्यान देना ही चाहिए।

श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने इसको आदर्श रूप में अर्जुन के सामने रखा है। वे कहते हैं: युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु। युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा। तात्पर्य यह है कि ‘जिसका खानपान संतुलित हो, जिसका आचार बढ़िया हो, जिसका नियम से सोना एवं उठना हो। ऐसा व्यक्ति जीवन में सुख प्राप्त करता है।’ ऐसे में हर एक को अपनी खुराक, विचार के बारे में सक्रिय रूप से चिंतन और विचार करना चाहिए।

श्री कृष्ण ने आगे इसको विस्तार से बताया है। गीता के अनुसार, ‘बहुत अधिक खाना या बिल्कुल न खाना, बहुत अधिक सोना या निरंतर जागना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।’ ऐसे लोग एकाग्रचित्त नहीं हो सकते अथवा आध्यात्मिक जगत में उन्नति नहीं पा सकते।

भारतीय संस्कृति में आहार की पवित्रता को बहुत महत्व दिया गया है। मानव शरीर की वृद्धि और पोषण का मुख्य आधार अन्न है। आहार की शक्ति से ही हम रोजमर्रा के काम निपटाते हैं। मानव जिस क्षण से पृथ्वी पर आता है तभी से उसे किसी न किसी रूप में आहार की आवश्यकता होती है। तैत्तिरीय उपनिषद के अनुसार ‘अन्नं ही भूतानां ज्येष्ठम्-तत्मात् सर्वोषधमुच्यते।’ अर्थात् भोजन ही प्राणियों की सर्वश्रेष्ठ औषधि है।

कुछ लोग पेट भरने के लिए कुछ भी खा-पी लेते हैं और कुछ समझदार लोग स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए सुपचाच्य पदार्थों का चयन करते हैं। लेकिन इस बात का विचार कम ही लोग करतें होंगे कि अन्न से हमारा पेट ही नहीं भरता बल्कि इसका हमारे मन से भी सीधा संबंध है और उसका प्रभाव बुद्धि तक भी पहुंचता है।

खास बात यह है कि आहार शुद्ध न होने की दिशा में स्वास्थ्य पर जो कुप्रभाव पड़ता है उसका निवारण आगे चलकर संयम, उपवास और औषधि से हो सकता है। मगर हमारा अन्न जिस स्रोत या साधन से हमको उपलब्ध होता है वही यदि अशुद्ध अथवा पापयुक्त है तो उसका जो बुरा प्रभाव मन, बुद्धि और आत्मा पर पड़ेगा उससे छुटकारा पाना सहज नहीं है। उदाहरणार्थ जो धन चोरी या गलत तरीके से कमाया गया हो, उससे शारीरिक पुष्टि भले ही मिले लेकिन मन और आत्मा की तुष्टि उससे कभी भी नहीं हो सकती।

कई लोग समझते हैं कि व्यापार, नौकरी या अन्य आजीविका के साधनों में चालाकी से रुपया कमाने से दोष नहीं हो सकता है। लेकिन बेईमानी और कपट से कमाया गया पैसा सदैव हानिकारक ही होता है। इसलिए अन्न के महत्व को समझने की आवश्यकता है।

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