आंवला नवमी आज: इस दिन शुरू हुआ था सतयुग, आदि शंकराचार्य ने करवाई थी सोने के आंवले की बरसात

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

आज कार्तिक शुक्ल नवमी है. इस खास दिवस को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन महिलाएं व्रत रखते हुए सुख-सौभाग्य व समृद्धि की कामना से आंवले के वृक्ष पूजा करती हैं. आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास माना गया है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन आंवले की पूजा से मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती है और जीवन में खुशहाली आती है.

सतयुग

आज के दिन को सतयुग का प्रारंभ भी माना जाता है. एक कथा के अनुसार मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु और भगवान शिव की एक ही रूप में आंवले के पेड़ की पूजा की थी. दोनों भगवानों को मां लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन कराया था. आज के दिन भगवान विष्णु के दामोदर रूप की पूजा की जाती है.

द्वापर युग

आज ही के दिन भगवान विष्णु ने कूष्माण्ड दैत्य को मारा था. इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा की थी. आंवला नवमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियों को छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था. यही वो दिन था जब उन्होंने अपनी बाल लीलाओं का त्याग कर कर्तव्य के पथ पर कदम रखा था इसीलिए आंवला नवमी के दिन से वृंदावन परिक्रमा भी प्रारंभ होती है. इस दिन से ही द्वापर युग की शुरुआत हुई थी.

कलयुग

आंवला नवमी के दिन आदि गुरु शंकराचार्य ने कनक धारा स्त्रोत की रचना कर मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया. कथा के अनुसार शंकराचार्य ने एक वृद्धा की गरीबी दूर करने के लिए स्वर्ण के आंवला फलों की वर्षा करवाई थी. आयुर्वेद में आंवला को प्राकृति का अमृत कहा जाता है. सैकड़ों बीमारियों को जड़ से खत्म करने वाला है ये वृ़क्ष. प्रकृति को सम्मान देने का दिन है. आज आंवले की पूजा, आंवले के रस के स्नान और आंवले का सेवन शरीर को सालभर निरोग रखता है. संतान प्राप्ति के लिए इस नवमी पर पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. इस व्रत में भगवान श्री हरि का स्मरण करते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए.

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