सुप्रभातम्: एवरेस्ट से कम ऊंचाई, फिर भी आज तक कोई क्यों न चढ़ सका कैलाश पर्वत?

कैलाश पर्वत, इस एतिहासिक पर्वत को हम सनातनी और भारतीय लोग शिव का वास स्थान मानते हैं। नासा जैसी सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक संस्था के लिए कैलाश एक रहस्यमयी जगह है। नासा के साथ-साथ कई रूसी वैज्ञानिकों ने कैलाश पर्वत पर अपनी रिपोर्ट पेश की है। सभी का मानना है कि कैलाश वाकई कई अलौकिक शक्तियों का केंद्र है। विज्ञान यह दावा तो नहीं करता है कि यहाँ शिव देखे गये हैं किन्तु यह सभी मानते हैं कि यहाँ कई पवित्र शक्तियां जरुर काम कर रही हैं। यहां कुछ तो है जो विज्ञान से परे है।

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

8848 मीटर की ऊंचाई वाली दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अब तक करीब 7 हजार से अधिक पर्वतारोही फतह कर चुके हैं। पर एवरेस्ट से लगभग 2 हजार मीटर कम ऊंचे 6638 मीटर के कैलास पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ सका। हां, कुछ लोग इसकी 52 किमी की परिक्रमा करने में सफल रहे है। वहीँ 11वीं सदी में तिब्बत के योगी मिलारेपा के यहाँ जाने का दावा किया जाता है। किन्तु इस योगी के पास इस बात के सबूत नहीं थे या फिर वह खुद सबूत पेश नहीं करना चाहता था इसलिए यह भी रहस्य है कि इन्होनें यहाँ कदम रखा या फिर वह कुछ बताना नहीं चाहते थे।

दरअसल, कैलाश पर्वत का कोण 65 डिग्री से ज्यादा है। वहीं, माउंट एवरेस्ट का कोण 40 -50 डिग्री का है। इसलिए कैलाश की चढ़ाई कठिन है। इस पर चढ़ाई की कई कोशिशें हो चुकी हैं। आखिरी कोशिश 2001 में हुई थी। हालांकि अब कैलाश पर चढ़ाई पूरी तरह से प्रतिबंधित है। कैलाश पर्वत सृष्टि के निर्माण के समय से ही अडिग है। इस पर्वत के लिए हर धर्म की अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन हिंदू शास्त्र के अनुसार यह पर्वत भगवान शिव और पार्वती का निवास स्थान है।

कैलाश पर्वत क्षेत्र को हिंदू मानसखंड कहते हैं। देवाधिदेव महादेव की स्थली होने के नाते हिंदुओं की आस्था का केंद्र तो है ही साथ ही जैन तीर्थांकर ऋषभनाथ को यहीं पर तत्व ज्ञान प्राप्त हुआ, तिब्बत के डाओ अनुयायी इसे अध्यात्म का केंद्र मानते हैं। इस तरह से यह कई धर्माें की धुरी है। शायद इसीलिए यह पर्वतारोहियों के लिए अजेय है। मान्‍यता है कि यहां केवल पुण्‍यात्‍माएं ही निवास करती हैं। कैलाश पर्वत और उसके आस-पास के वातावरण पर अध्‍ययन कर चुके वैज्ञानिकों का का मानना है कि यहां चारों ओर एक प्रकार की अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें आज भी कई तपस्‍वी गुरु अपनी साधना करते हैं और ईश्‍वर से संबंध स्‍थापित करते हैं।

इस पर्वत की आकृति एक पिरामिड के समान है और वैज्ञानिक इसे धरती का केंद्र बताते हैं। धरती के इस केंद्र को एक्सिस मुंडी माना जाता है। जिसका वर्णन दुनिया की नाभि या दुनिया के केंद्र बिंदु के रूप में किया जाता है। इसे आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र माना जाता है। माना जाता है कि यही वह बिंदु है जहां आकाश धरती से आकर मिलता है। यहीं पर आकर दसों दिशाओं का मिलन होता है। एक्सिस मुंडी वह स्‍थान माना जाता है कि जहां अलौकिक शक्तियों का प्रवाह होता है और यहां आकर आप उन शक्तियों से संपर्क कर सकते

जानकर कहते हैं कि कैलास तकनीकी व भौगोलिक लिहाज से बहुत जटिल पर्वत श्रंखला है। जबर्दस्त चुंबकीय क्षेत्र को खुद में समेटे इस अलौकिक पर्वत की सतह से कुछ ही ऊंचाई तक चढ़ाने पर कुशलतम पर्वतारोही भी थकान से टूट जाता है। कई पर्वतारोही व शोधकर्ता बताते हैं कि धार्मिक आस्था के केंद्र कैलास पर्वत पर चढ़ना असंभव है। वहां शरीर के बाल व नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं।

पर्वत के चारों ओर अलौकिक शक्ति की धारा
हिंदू, बौद्ध और जैन तीनों ही धर्म कैलाश को पवित्र और रहस्यमयी मानते हैं। तिब्बती मठों के गुरुओं का मानना ​​है कि कैलाश पर्वत के चारों ओर अलौकिक शक्ति की धारा बहती रहती है। इसके पास पहुंचते ही मस्तिष्क में अलौकिक प्रवाह का अनुभव होने लगता है।

अलौकिक मानसिक बल के कारण कैलाश की चोटी पर पहुंचना संभव नहीं होता है। दूसरा कारण पर्वत का 65 डिग्री कोण और तीसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि पर्वत के आसपास तो बर्फ जमती और पिघलती रहती है, लेकिन चोटी पर साल भर बर्फ जमी रहती है। यह भी यह एक अनसुलझा रहस्य ही है।

कैलाश की परिक्रमा 52 किमी
कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है। इसमें ल्हा चू और झोंग चू के बीच यह पर्वत स्थित है। यहां दो जुड़े हुए शिखर हैं। इसमें से उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है। इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग जैसा है। हिंदू धर्म में इसकी परिक्रमा का बड़ा महत्व है। परिक्रमा 52 किमी की होती है।

कैलास के अजेय होने के कारण

  • यह धरती का केंद्र माना जाता है। पूरी धरती पर यही एक जगह है जहां चारों दिशाएं आकर मिलती हैं। आपको यकीन नहीं होगा कि दुनिया की अन्य जगहों के मुकाबले कैलाश पर आकर समय तेजी से बीतने लगता है।
  • समय तेजी के बीतने का प्रमाण यह है कि इस क्षेत्र में लोगों ने पाया कि शरीर के बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए। शरीर की त्वचा सामान्य से अधिक तेजी से बूढ़ी नजर आने लगती है।
  •  इसके अलावा कैलास पर्वत बहुत ज्यादा रेडियोएक्टिव भी है। माना जाता है कि कैलास पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। यहां कोई कंपास काम नहीं करता। बिना दिशा के ज्ञान के पर्वत या जंगल में जाना मौत को दावत देने के समान है।

इस स्थान का पौराणिक महत्व तो गजब का है

प्राचीन काल में सप्तर्षियों और सनकादिकों ने यहां तपस्या की थी। सतयुग में भगवान दत्तात्रेय ने यहां तपस्या की। त्रेता युग में रावण तो द्वापर में पांडव यहां पहुंचे थे। सनातन हिंदू धर्म कैलाश को शिव का रूप मानता है। बौद्ध धर्म में कैलाश को शाक्यमुनि बुद्ध का स्वरूप माना गया है। भगवान बुद्ध यहां पांच सौ बोधिसत्वों के साथ निवास करते हैं। जैन धर्म में भी इस स्थान का विशेष महत्व है। जैन धर्म में कैलाश के पास के पर्वत को अष्टापद कहते हैं। यह भी कहा जाता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था।

डमरू और ओम की आवाज 

कैलाश मानसरोवर के पास हमेशा एक ध्वनि की आवाज आती है जो किसी जहाज की आवाज जैसी लगती है लेकिन यदि इस आवाज को गौर से सुना जाये तो ये आवाज ओम और डमरू की प्रतीत होती है। कुछ वैज्ञानिक इस आवाज को हिम के पिघलने की मानते हैं जबकि कुछ इस आवाज को प्रकाश और ध्वनि के समागम की ध्वनि मानते हैं लेकिन इन बातों का अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिला है।

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