पुण्यतिथि पर विशेष:हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा के इरादे हिमालय जैसे अटूट थे

देश को स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष से लेकर नवराष्ट्र निर्माण में पूर्ण मनोयोग से जुटे रहे हेमवती नंदन बहुगुणा करीब पांच दशकों तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे। इस राजनीतिक दिग्गज ने पौड़ी गढ़वाल के बुधाणी गांव में जन्म लिया और अमेरिका के क्लीवलैंड में अंतिम सांस ली। वह नेताओं की उस पांत के प्रतिनिधि थे, जिन्होंने स्थानीय से लेकर राज्य और राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। नई पीढ़ी भले ही हिमपुत्र से उतनी परिचित न हो, लेकिन उन्हें जानने वालों के जेहन में जब चूड़ीदार पायजामा, कुर्ता, कुर्ते पर जवाहर बंडी, सिर पर गांधी टोपी, टोपी से बाहर झांकते घुंघराले बाल, चेहरे पर तेज और संकल्प के ओज से ओतप्रोत एक व्यक्ति की छवि उभरती है तो बहुगुणा उनकी स्मृतियों में कौंधने लगते हैं।

Uttarakhand

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

आज ही के दिन 17 मार्च सन् 1989 को हिमालय पुत्र हेमवती नन्दन बहुगुणा ने संयुक्त राज्य अमेरिका के क्लीवलैण्ड अस्पताल में कोरोनरी बाईपास सर्जरी के सफल आपरेशन न होने से अन्तिम श्वास ली। राजनीति के इस महान व्यक्तित्व का जन्म 25 अप्रैल सन् 1919 को पौड़ी गढ़वाल के बुधाणी गांव में रेवती नन्दन बहुगुणा एवं दीपा देवी बहुगुणा के घर में हुआ था। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गांव में व फिर देहरादून के बाद उच्च शिक्षा इलाहाबाद से पूर्ण कर विशिष्ट राजनीति में कदम रखा, यद्यपि शिक्षा अर्जन के साथ ही आप छात्र राजनीति में सक्रिय रहे और फिर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो कर अपना राजनैतिक सफर प्रारम्भ किया। वैवाहिक सूत्र में पहले धनेश्वरी चन्दोला से बन्धे व फिर कमला त्रिपाठी से विवाह किया जो बाद में सांसद भी रही। आपके दो सुपुत्र विजय बहुगुणा व शेखर बहुगुणा तथा एक सुुुुुपुत्री रीता (बहुगुणा) जोशी हैं, जो भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। आप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व केन्द्र सरकार में संचार व वित्त मंत्री रहे। अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में आपने पर्वतीय मंत्रालय बनाकर देव भूमि के विकास के लिए बहुत अच्छा व हितकर प्रयास किया जिसके फल स्वरूप आज उत्तराखंड प्रथक राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ, उसी समय पन्त नगर विश्वविद्यालय का पर्वतीय परिसर रानीचौरी की स्थापना का विधेयक बना व मार्च 1976 में नारायण दत्त तिवारी ने उद्घाटन कर टिहरी गढ़वाल की पहचान भारत के मानचित्र में अंकित की। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय आप पर अंग्रेजी हुकूमत ने पांच हजार का ईनाम भी रखा था, आपको राजनीति का चाणक्य भी कहा जाता था, परन्तु विधि का विधान कौन टाल सकता है। सन् 1988 में अस्वस्थ हो गए व बीमारी से उभर न पाए और अपनी जन्म भूमि को ‘अलविदा’ कह कर इस पञ्च भौतिक शरीर को पञ्च तत्वों में विलीन कर सदा सदा के लिए चिर निद्रा में विलीन हो गए।

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