बुद्ध पूर्णिमा को वैशाख पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
आज वैशाख महीने की पूर्णिमा है। ये दिन भगवान विष्णु-लक्ष्मी के साथ महाकाल की पूजा करने का भी पर्व है। साथ ही आज गौतम बुद्ध का जन्मोत्सव है।
पुराणों के मुताबिक इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान-दान करने की परंपरा है। इसके बाद भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करें। शाम को प्रदोष काल में शिवजी के महाकाल रूप की पूजा करने का विधान है।
पुराणों के मुताबिक वैशाख पूर्णिमा पर भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस पर्व पर श्रीकृष्ण या शालग्राम रूप में भगवान विष्णु का दूध से अभिषेक किया जाता है। साथ में देवी लक्ष्मी की पूजा भी होती है।
आज गंगाजल और दूध से शिवजी का अभिषेक करने से परेशानियां दूर होती हैं। इस तिथि पर सुबह-शाम शिवलिंग के पास तिल के तेल का दीपक लगाने से दोष खत्म होते हैं।
ऐसे करें भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा
सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। हो सके तो पानी में गंगा जल डालकर स्नान करें। नहाने के बाद घर के मंदिर में दीप जलाएं। अगर आप से संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें। सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से सनान कराए। इस दिन भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है। ऐसा करने से घर में लक्ष्मी मां वास होता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को भी जरूर शामिल करें।
कमल के फूलों से महाकाल पूजा का विधान
स्कंद पुराण के मुताबिक वैशाख महीने की पूर्णिमा पर शिवजी की पूजा करने से दुश्मनों पर जीत होती है और स्वर्ग मिलता है। इस पुराण के नागरखंड की कथा के मुताबिक इक्ष्वाकु कुल के राजा रुद्रसेन अपनी पत्नी पद्मावती के साथ वैशाख पूर्णिमा को महाकाल दर्शन और पूजा करते थे। पूजा में खासतौर से कमल के फूलों का इस्तेमाल करते थे। साथ ही पूरी रात जागरण भी करते थे। इससे उनका प्रभाव बढ़ने लगा और शत्रु खत्म होने लगे।
वहीं, आज गौतम बुद्ध का जन्मोत्सव है। बुद्ध दूसरों की भलाई के लिए लगातार काम करते रहते थे और अपने सभी शिष्यों को भी ऐसा जीवन जीने के लिए प्रेरित करते थे। एक दिन भगवान बुद्ध के एक शिष्य को रास्ते में एक बूढ़ा व्यक्ति बेहोश दिखाई दिया। आसपास कई लोग इकट्ठा हो गए थे। वह बहुत गरीब दिखाई दे रहा था। जब उस व्यक्ति को थोड़ा होश आया तो बुद्ध के शिष्य ने उससे कहा कि तुम्हारा जीवन यहां ऐसे ही खत्म हो जाएगा, अंत समय में कुछ अच्छी बातें सुननी चाहिए, चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें भगवान बुद्ध के पास ले चलता हूं।
वह बूढ़ा बहुत ही कमजोर हो गया था। उसमें उठने की भी शक्ति नहीं थी। शिष्य ने उसे उठाने की कोशिश की, लेकिन वह भी उसे उठा न सका। शिष्य ने कहा कि तुम यहीं रुको, मैं तथागत को आपके बारे में बताता हूं, वह तुम्हारे लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगे।
शिष्य बुद्ध के पास पहुंचा और पूरी बात बता दी। शिष्य ने कहा कि मैंने प्रयास किया कि मैं उसे आपके पास ले आऊं, लेकिन वह लाचार है, यहां आ नहीं सकता। आप ही बताइए, अब क्या करना चाहिए।
बुद्ध ने कहा कि वह नहीं आ सकता है तो हम उसके पास चलते हैं।
बुद्ध उस बूढ़े का पास पहुंच गए। आसपास कई लोग इकट्ठा हो गए थे। सभी सोच रहे थे कि बुद्ध उपदेश देंगे तो हम भी सुन लेंगे। बुद्ध ने कहा कि सबसे पहले इस व्यक्ति के लिए भोजन की व्यवस्था करो।
बुद्ध के कहने के बाद तुरंत ही लोगों ने भोजन की व्यवस्था कर दी। जब उस बूढ़े व्यक्ति का पेट भर गया तो वह गहरी नींद में सो गया।
सभी लोग कहने लगे कि ये तो सो गया है। बुद्ध ने कहा कि अब हमें यहां से चलना चाहिए, हमारा काम हो गया है।
उस शिष्य ने और आसपास खड़े लोगों ने बुद्ध से कहा कि ये व्यक्ति को मूर्ख है, खाना खाकर सो गया। आप यहां थे, इसने उपदेश भी नहीं सुने।
बुद्ध ने कहा कि कोई बात नहीं। दरअसल ये कई दिनों से भूखा-प्यासा था। भूख की वजह से कमजोर हो गया था। इस समय इसके लिए सबसे बड़ा उपदेश यही है कि सबसे पहले पेट भरा जाए।
बुद्ध की सीख
बुद्ध ने सभी को समझाया कि अगर हमारे आसपास कोई व्यक्ति भूखा है तो खाना खिलाएं। भूखा व्यक्ति धर्म नहीं समझेगा। सबसे पहले व्यक्ति की जो आवश्यकताएं हैं, उन्हें पूरा करना चाहिए, उसके बाद ही वह ज्ञान की बातें समझ सकता है। किसी का पेट भरने के बाद ही हम उसे उपदेश दे सकते हैं और वह हमारी बातें भी समझ सकता है।