सुप्रभातम्:नाड़ियों में बहते कर्म के संकेत

हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

स्वयंभू, परमेष्ठी, सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी इन पांच पर्वों की प्रतिकृति यह मानव शरीर है। चरक सूत्र है-यथापिण्डे तथा ब्रह्माण्डे। पांच पर्वों में तीन पर्व सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी प्रत्यक्ष दिखते हैं। स्वयंभू एवं परमेष्ठी अदृष्ट रहते हैं। मानव शरीर में अदृष्ट तत्त्व आत्मा इन्हीं पर्वों से आता है। सूर्य बुद्धि का प्रदाता, चन्द्रमा मन का कारक तथा पृथ्वी शरीर की निर्मात्री है।

जगत् में दिखने वाले ऐसे सभी कार्यकलाप जो इस शरीर के माध्यम से होते हैं, उन सभी कर्मों का आधार ये ही पांच पर्व हैं। अध्यात्म में कर्म का स्वरूप यद्यपि गुण, वर्ण आदि से निर्धारित होता है किन्तु उनका संचालन पंचभूतों के आधार पर शरीर के व्यापक तंत्र के माध्यम से ही होता है। यह शरीर तंत्र विभिन्न अवयवों के अलावा विविध नाडिय़ों के संजाल से संचालित होता है। ये ही नाडिय़ां इन्द्रियों के माध्यम से शरीर के विभिन्न कार्यों को सम्पन्न कराने में मुख्य भूमिका निभाती हैं। एक तरह से हमारे सभी कर्म, मन-बुद्धि और इन्द्रियों के निर्देशन में इन नाडिय़ों से सम्पन्न होते हैं।

पंचभौतिक शरीर में पाई जाने वाली विविध नलिकाओं को नाड़ी कहा जाता है। प्राणधारियों के शरीर में बहत्तर हजार नाडिय़ां होती हैं। ये नाभिमूल से जुड़ी हुई हैं। ये नाडिय़ां पांचों इन्द्रियों के गुणों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाती हैं। अर्थात् इन्हीं के द्वारा इन्द्रियां अपने-अपने शब्द, गंध, रस, स्पर्श आदि गुणों को ग्रहण करती हैं।

इन नाडिय़ों में से कुछ नाडिय़ां अन्न रस को बहाकर शरीर को निरन्तर सींचती हुई तृप्त एवं जीवित रखती हैं। मस्तक से लेकर पैर तक फैले हुए शरीर के अवयव इन नाडिय़ों की सहायता से ही यथास्थान स्थित होकर अपने-अपने काम करने में समर्थ होते हैं। नाड़ी से वात, पित्त, कफ, द्वन्द्व तथा सन्निपात के रोगों का पता चलता है। ये नाडिय़ां ही बताती हैं कि किस रोग से रोगी पीडि़त है।

मानव शरीर में बायोप्लाजमिक ऊर्जा (प्राण) यात्र के असंख्य गलियारे हैं, जिन्हें नाड़ी कहा जाता है। प्राचीन योगियों ने भौतिक शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियां बताई हैं, कुछ लोग यह संख्या तीन सौ बीस हजार बताते हैं। इन सभी नाड़ियों में तीन प्रमुख हैं, जिन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना के नाम से जाना जाता है। इनमें भी सबसे प्रमुख सुषुम्ना है, जो रीढ़ की हड्डी के भीतर स्थित है।

रीढ़ का अर्थ

यहां रीढ़ का अर्थ शारीरिक रीढ़ नहीं है, बल्कि यह भी शरीर स्थित विशेष मानस मार्ग है। यह नाड़ी

मूलाधार से चलकर प्रत्येक चक्र से गुजरते हुए आज्ञा चक्र से जोड़ती है। आज्ञा चक्र शिखर का चक्र है। ये भी चक्र शरीर में स्थित बायोप्लाज्मिक ऊर्जा के हिस्से हैं। इड़ा नाड़ी मूलाधार चक्र की बाईं तरफ से निकलते हुए, एक घुमावदार पथ में बारी-बारी बीच के चक्रों के मध्य से गुजरती है। जो अंत में आज्ञा चक्र के बाईं ओर जाकर समाप्त होती है। इसी तरह मूलाधार चक्र के दाहिनी ओर से उभरते हुए, इड़ा नाड़ी के विपरीत आज्ञा के दाईं ओर तक पिंगला नाड़ी जाती है।

इड़ा और पिंगला

इड़ा और पिंगला प्राण के दो अलग-अलग पहलुओं के रूप में काम करते हैं। वे एक ही ऊर्जा के दो अलग-अलग ध्रुवों को दर्शाते हैं। इड़ा को ऊर्जा का नकारात्मक पक्ष माना जाता है, जिसे चन्द्र नाड़ी भी कहा जाता है। जबकि, पिंगला उसी ऊर्जा का सकारात्मक पक्ष है, जिसे सूर्य ऊर्जा भी कहा जाता हैं।

दाईं नाड़ी वह पिंगला है और बाईं ओर इड़ा

दाईं नाड़ी वह पिंगला है और बाईं ओर इड़ा। प्राचीन योगियों ने पाया कि प्रत्येक नथुने के माध्यम से श्वास का प्रवाह समान रूप से नहीं होता है। अपितु जिस नथुने का प्रवाह प्रमुख होता है, तो उसी नाड़ी का प्रवाह भी प्रमुख रहता है। तत्पश्चात् इसके विपरीत क्रम में वे चलती हैं। जबकि परिवर्तन के दौरान दोनों नथुनों में प्रवाह सामान्य हो जाता है। वहीं मूल प्राण सुषुम्ना नाड़ी के मध्य से बहता है, यह सम्पूर्ण क्रम केवल कुछ मिनट तक रहता है। नाड़ी प्रवाह व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार बदला जा सकता है। इस श्वास का अध्ययन, अर्थ और प्रभाव स्वर योग विज्ञान का विषय हैं।

जीवन शैली

हममें से प्रत्येक व्यक्ति की एक अलग जीवन शैली है। कुछ लोगों को अपने दैनिक जीवन में अधिक शारीरिक काम पड़ता है, कई अन्य के लिये अधिक मानसिक काम पड़ता है। हममें से कुछ अंतर्मुखी हैं, कुछ बहिर्मुखी हैं। कुछ शारीरिक काम पसंद करते हैं, तो दूसरों को मानसिक काम पंसद है, अर्थात् सभी के पास अपनी ताकत और कमजोरियां हैं। प्रत्येक व्यक्ति में श्वास उतार-चढ़ाव की जीवन शैली व अवधि भिन्न है। योगीजन बताते हैं कि किस प्रकार का काम किसके लिये उपयुक्त है, उसके लिये व्यक्ति की नाक में हवा का प्रवाह प्रमुख रहता है। यदि दाएं नथुने का प्रवाह अधिक है, तो उस मनुष्य का झुकाव शारीरिक काम की ओर है, और उसका मस्तिष्क बहिर्मुखी होगा और वह अधिक गर्मी पैदा करेगा। यदि प्रवाह बाएं नथुने से अधिक होता है, तो वह मानसिक कार्य की दिशा में बहुत अधिक इच्छुक होगा और मन अंतर्मुखी काम करेगा। इसीलिए जब आप नींद में होते हैं, तो इड़ा नाड़ी प्रभावी होती है, यदि ऐसा नहीं हैं, तो समुचित नींद लेना भी एक विशेष कार्य बन जाता है। इसी प्रकार खाने के दौरान पिंगला नाड़ी सक्रिय रहनी चाहिए, अन्यथा पाचन भी एक कार्य बन जाएगा।

श्वास प्रवाह और प्राण प्रवाह

प्राण के ये दोनों पहलू जो विशेष रूप से इड़ा और पिंगला नाड़ी में प्रवाहित होते हैं, प्रत्येक मानव के दो सबसे स्पष्ट लक्षणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अर्थात् सोचने और कार्य करने की क्षमता को यह अत्यधिक प्रभावित करते हैं। नथुनों के माध्यम से श्वास प्रवाह और प्राण प्रवाह जाना जाता है। आम तौर पर यह प्रवाह अनैच्छिक होता है, लेकिन इच्छा शक्ति और विभिन्न यौगिक तकनीकों का उपयोग करके प्राण प्रवाह में हेरफेर करना संभव है। अगर किसी को नींद नहीं आ रही है, तो दाएं नथुने से बायीं तरफ या विपरीत क्रम में प्रवाह को बदलकर नींद संभव किया जा सकता है। हालांकि दिनभर में प्रत्येक नथुने में एक सा प्रवाह लगभग 12 घंटे तक रहता है, दोनों मिलकर कुल चौबीस घंटे तक चलता है। योग का सामान्य उद्देश्य है प्रत्येक नथुने में प्राण प्रवाह को समान रूप से बनाना।

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