स्वामी कमलानंद (डा. कमल टावरी) ने वर्धा प्रेमियों को लिखा खुला पत्र

स्वामी कमलानंद (डा. कमल टावरी)

Uttarakhand

पूर्व आईएएस, चिंतक एवं सामाजिक कार्यकर्ता


सेवा में,

समस्त वर्धा प्रेमियों को खुला पत्र।

साथियों,

मेरा जन्म वर्धा में 1 अगस्त 1946 को हुआ। वर्धा में छटवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान शिक्षक से ट्यूशन न लेने के कारण परीक्षा में फेल कर दिया गया। बावजूद इसके राजकीय विद्यालय वर्धा से 1962 में हाईस्कूल फस्र्ट क्लास और दो विषयों में डिस्टींक्शन से पास हुआ। यह केवल शिक्षकों का मार्गदर्शन, प्रेरणा तथा अनुकूल वातावरण के कारण ही संभव हो पाया।

मेरे वक्त के दोस्तों में अब केवल रामनगर निवासी कर्नल चितरंजन चावड़े जीवित हैं। अन्य जो आर्मी में साथ रहे, वे अब नहीं हैं। उसके बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा में उत्तर प्रदेश, भारत सरकार तथा उत्तराखण्ड के विभिन्न पदों पर रहते हुए मुझे पूर्ण भारत, विश्व तथा वर्धा की सब तरह की समस्याओं, विभागों तथा परिवर्तनों को देखने-समझने एवं इन 77 वर्षों के दौरान में कई आयामों से परखने का मौका भी मिला। भारत सरकार में तो नीतियों के साथ प्रशिक्षण, अनुसरण तथा असर के साथ भ्रष्टाचार, अनाचार एवं सुविचारों का स्थायी, गहरा सर्वस्तरीय असर किया या करने दिया।

अब 77 वर्ष का होने पर सर्वांगीण विश्लेषण से जड़ से जुडना, संतों से समृद्धि, चलो गांव की ओर, गुरुकुल खोलो, शुभ-लाभी स्वार्थी बनो, पत्रकार प्रेरित पर्यावरणीय परिवर्तन, करने वालों से सीखो, अ-सरकारी एवं असर-कारी स्वाभिमानी सलाहकार सेवा, पारदर्शिता, लोकल, स्वरोजगार, जीवन शैली परिवर्तन, सब की अनिवार्य भागीदारी आदि-आदि में Small is beautiful जैसे शब्द प्रभावी लगते हैं।

जीवन के इस पड़ाव पर अब ‘जिला अंगीकार अभियान’ ‘जि +अ+अ’ के साथ स्वमूल्यांकन, एक जिले तथा विकासखंड के साथ ग्राम स्वराज, स्वाभिमान, स्वमूल्यांकन एवं विकास या विनाश, आदि के परिपेक्ष्य में ‘‘वर्धा मेरे स्वप्नों का’’ को ध्यान में रखकर निम्न प्रश्न उभरते हैं।

प्रश्न – वर्धा में 50 वर्षों से चली आ रही शराब बंदी जो गांधी जी के नाम पर चलाई गई थी, का क्या असर पड़ रहा है?

यह तो स्पष्ट है कि शराब से लगभग 8 से 10 हजार लोग आज रोजगार पा रहे हैं। मगर इसका असर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, शारीरिक, चारित्रिक, न्यायायिक, प्रशासनिक, शैक्षणिक व्यवस्थाओं पर तत्काल एवं दूरगामी क्या असर हो रहा है? व्यवस्थाएं चरमरा गई हैं। 60 प्रतिशत न्यायालयों में वाद, मुकदमें, शराब एवं इससे जुड़े विषयों पर हैं। सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार, अनाचार एवं राष्ट्रपिता गांधी जी के नाम पर कुशासन सर्वव्यापी है। मानव स्वभाव कानूनों से नहीं नियंत्रित किया जा सकता है। संस्कार, शिक्षण, अनुकूल, वातावरण, पर्यावरण, नेतृत्व, सुरक्षा जीवन शैली के निर्णायक हैं। 50 वर्षों से गांधीजी के नाम पर चल रही शराबंदी को हटाकर ‘ग्राम आधारित नीति’ बनाने का यह समय है। प्रजातंत्र में स्वराज एवं स्थायी, संतुलित प्रभावों पर स्थानीय भागीदारी के फैसले अनिवार्य एवं लाभदायक रहेंगे। घिसी-पिटी मूर्खतापूर्ण, अव्यावहारिक मानव स्वभाव के विपरीत गांधी जी के नाम पर चलाई गई तथाकथित शराबबंदी सभी मापदंडों पर फेल है। अतः स्वरोजगार के पर्यावरणीय विकेन्द्रित, शुभलाभी, धंधे बढ़ाकर ‘‘इस भयंकर नीति’’ की भूल को ठीक करना समय की सर्वांगीण अनिवार्यता है।

प्रश्न 2 – वर्धा में विकास के नाम पर कई संस्थाएं, योजनाएं विभाग विचार आए। मगर वे मुख्य उद्देश्यों से क्यों भटक गए?

स्पष्ट है गत 50 वर्षों में ‘‘वर्धा एक गांधी मिला’’ बनाने के लिए सरकारी एवं अ-सरकारी प्रयास हुए। इनमें धन या संसाधन या सोच की कमी नहीं थी। लोगों ने, उद्योगपतियों ने, सरकारों ने, बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार, मार्केट, अनुसंधान, तकनीक आदि भी दी। मगर ‘‘समय के मूल्यांकन’’ के मापदंड पर विकास नहीं बल्कि विनाश, भागीदारी नहीं बल्कि पारिवारिक, घटिया स्तर की राजनीति, क्रूर प्रवृत्ति, स्पष्ट दिख रही है। ग्रांट रिबेट, अनुदान, झूठे आश्वासन, अध्यात्मिक विकास के बजाए फुहड़पन, असांस्कृतिक जीवन शैली फैली। अतः अब समय है कि राष्ट्रीय लोक आंदोलन चले, जिससे जनता अपनी जिम्मेवारी, जीवनशैली तथा आत्मनिर्भरता की अनिवार्यता समझे। स्वमूल्यांकन के साथ विकल्प, प्रेरणा के साथ स्थायित्व, निराशा के बजाए अपवादों से पाठ एवं मूल उद्देश्यों की पूर्ति वास्ते स्थानीय लोगों से सक्रिय योगदान पर विचार नीति परिवर्तन अभियान में अत्यावश्यक है।

प्रश्न 3 – क्या उत्तम खेती, मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान वर्धा वास्ते अनिवार्य है?

विकास के वैश्विक पाठ, करुणा एवं कोरोना के आयाम, प्रवृत्ति का बलात्कार, मानव चरित्र, धर्म का विकासात्मक या विध्वंसात्मक स्वरूप, इतिहास के पाठ, नेताओं की या विध्वंसात्मक स्वरूप, इतिहास के पाठ, नेताओं की अदूरदर्शिता, उद्योग से शोषण, आदि देखे तो उत्तम खेती, अतुलनीय है। रसायनिक दवाओं से हटकर उत्तम खेती के लिए देशी गाये, देशी बीज एवं स्थानीय संसाधन अनिवार्य है।

यह भी सत्य है कि सरकार प्रेरित सारी संस्थाओं ने जनता के स्वाभिमान, स्वरोजगार, स्वतंत्रीय, संतुलित, पर्यावरणपूरक व्यवस्थाओं को तोड मरोड कर डाला है। कोरोना के बाद स्वास्थ्य, शास्त्र, शस्त्र, समृद्धि एवं आनंद के लिए नई नीतियां, जो सबको जड़ों से जोड़े अनिवार्य है। बडे उद्योगों के नाम पर बर्बादी सर्वव्यापी रही है। अब समय है ग्राम सभाएं अपने संवैधानिक अधिकार, जिम्मेवारी समझे एवं वार्डों को स्थानीय विकास की आधारशिला बनाए। कंप्यूटर एवं सार्वजनिक जागरूकता के युग में प्रगतिशील नेतृत्व शाखा उत्तम खेती एवं भीख दिान कर सकती है। इसके लिए कम व्यय में प्रभावी सलाहकार सेवाएं हमारा लक्ष्य है। अपवादों से पाठ लेकर, उन्हें प्रेरणाश्रोत बनाने के लिए हमे गर्व है कि श्रृंखला से अ-सरकारी असर-कारी विकास को गति मिलेगी। वर्धा की संतों की परंपरा, भुले बिसरे स्वप्न, सामाजिक उद्यमिता तथा अनुभवों का आदान प्रदान (मागदर्शन नहीं) एक आशावादी, प्रेरणादायक, सर्वोदयी, आरण्यक व्यवस्था को गति देगा। इसके लिए जाबवंत मिशन से दमदारों, असरदारों जानदारो, शानदारो को जड़ से जुडकर उंगलियों की मुटठी बनाने के लिए सतत, संतुलित, समग्र विकास वास्ते परिश्रम करना पड़ेगा।

निष्कर्ष-वर्धावासी हृदया जागे, समझे, प्रश्न करे एवं विश्व, भविष्य, वास्ते अपनी समग्रवादी जिम्मेवारी समझे। मार्गदर्शक के बजाए अनुभवकदर्शक ढूंढे। स्पष्ट वक्ताओं को संघर्षकारियों को जोड़ें एवं स्फूर्ति, उत्साह, नवजीवन मांगें।

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