सुप्रभातम्: बंदर बने देवर्षि नारद ने क्रोध में श्री विष्णु को दिया था यह श्राप, पढ़ें कथा

हिमशिखर धर्म डेस्क
एक बार की बात है जब देवर्षि नारद को अपनी तपस्या पर घमंड हो गया था। कथा के अनुसार, कहा जाता है कि जब नारद जी तपस्या कर रहे थे तो कोई भी उनकी तपस्या भंग नहीं कर पाया तो उन्होंने सबसे पहले अपने पिता ब्रह्मा जी के पास गए और तपस्या सफल होने की जानकारी दी। उसके बाद नारद जी भगवान शंकर के पास गए और उन्हें भी तपस्या पूर्ण होने की जानकारी दी।

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इसके बाद भगवान शंकर को लग गया कि नारद जी को अपनी तपस्या का घमंड हो गया है। तब उन्होंने कहा कि देवर्षि नारद इस बात की जानकारी भगवान विष्णु को मत देना। लेकिन मना करने के बावजूद नारद जी भगवान विष्णु के पास गए तपस्या के बारे में जानकारी दी। इसके बाद भगवान विष्णु को लग गया कि नारद जी को कामदेव को जीतने का घमंड हो गया है। इसके बाद उन्होंने सोचा कि अब नारद जी का घमंड तोड़ना ही होगा।
इसके बाद भगवान विष्णु ने माया रची और माता लक्ष्मी को विश्वमोहिनी का रूप धारण करने को कहा। जब नारदी जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में एक बड़ा राज्य दिखाई दिया। जहां पर उन्होंने देखा कि धूम-धाम से समारोह मनाया जा रहा है। वहां के राजा शीलनिधि ने अपनी पुत्री विश्वमोहिनी का स्वयंवर रचाया था। सब कुछ जान कर नारद जी भी वहां पहुंचे। वहां नारद जी आदर- सत्कार हुआ। उसके बाद राजा ने अपनी पुत्री का भविष्य पूछा। इस पर देवर्षि ने कहा कि विश्वमोहिनी का पति काफी भाग्यशाली और त्रिलोक का स्वामी होगा।

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