सनातन धर्म में किसी भी मांगलिक कार्य को करने के लिए शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat) का ध्यान किया जाता है। पंचांग में दिन, तिथि, नक्षत्र, योग, मुहूर्त, राहुकाल (Rahu Kaal), अशुभ समय आदि कई महत्वपूर्ण जानकारी दी जाती है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
पंचांग शब्द का अर्थ है, पाँच अंगो वाला। पंचांग में समय गणना के पाँच अंग हैं : वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण। ये चान्द्र और सौर प्रकृति के होते हैं। सभी हिन्दू पञ्चाङ्ग, कालगणना के एक समान सिद्धांतों और विधियों पर आधारित होते हैं।
पंचांग को पढ़ने से मिलते हैं ये 5 लाभ
प्राचीनकाल में वेदों का अध्ययन होता था। उसमें भी शिक्षा, छंद, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और कल्प। ये छह वेदांग होते हैं और जिसकी जिसमें रुचि होती थी वह उसका पठन करता था। इसमें भी ज्योतिष को वेदों का नेत्र माना गया है। ज्योतिष में ही पंचांग विद्या को जानना भी बहुत कठिन होता है। कहते हैं कि पंचांग के पठन और श्रवण से भी लाभ मिलता है।
वेदों और अन्य ग्रंथों में सूर्य, चंद्र, पृथ्वी और नक्षत्र सभी की स्थिति, दूरी और गति का वर्णन किया गया है। स्थिति, दूरी और गति के मान से ही पृथ्वी पर होने वाले दिन-रात और अन्य संधिकाल को विभाजित कर एक पूर्ण सटीक पंचांग बनाया गया है। पंचांग काल दिन को नामंकित करने की एक प्रणाली है। पंचांग के चक्र को खगोलकीय तत्वों से जोड़ा जाता है। बारह मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है।
पंचांग नाम पांच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है- तिथि (Tithi), वार (Day), नक्षत्र (Nakshatra), योग (Yog) और (Karan) करण। इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है। एक साल में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।
कहते हैं कि पंचांग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है। माना जाता है कि भगवान श्रीराम भी पंचांग का श्रवण करते थे। प्राचीनकाल में इसे मुखाग्र रखने का प्रचलन था। क्योंकि इसी के आधार पर सब कुछ जाना जा सकता था।
1. तिथि के पठन और श्रवण से मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है। तिथि का क्या महत्व है और किस तिथि में कौन से कार्य करान चाहिए या नहीं यह जानने से लाभ मिलता है। तिथि 30 होती है।
2. वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है। वार का क्या महत्व है और किस तिथि में कौन से कार्य कराना चाहिए या नहीं यह जानने से लाभ मिलता है। वार सात होते हैं।
3. नक्षत्र का क्या महत्व है और किस तिथि में कौन से कार्य कराना चाहिए या नहीं यह जानने से लाभ मिलता है। नक्षत्र 27 होते हैं।
5. योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है और उनसे वियोग नहीं होता है। योग (शुभ और अशुभ) का क्या महत्व है और किस तिथि में कौन से कार्य करान चाहिए या नहीं यह जानने से लाभ मिलता है। योग भी 27 होते हैं।
6. करण के पठन श्रवण से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। करण का क्या महत्व है और किस तिथि में कौन से कार्य करान चाहिए या नहीं यह जानने से लाभ मिलता है। करण 11 होते हैं।
चन्द्र माह के नाम
- चैत्र
- वैशाख
- ज्येष्ठ
- आषाढ़
- श्रावण
- भाद्रपद
- आश्विन
- कार्तिक
- मार्गशीर्ष
- पौष
- माघ
- फाल्गुन
नक्षत्र के नाम
- अश्विनी
- भरणी
- कृत्तिका
- रोहिणी
- मॄगशिरा
- आर्द्रा
- पुनर्वसु
- पुष्य
- अश्लेशा
- मघा
- पूर्वाफाल्गुनी
- उत्तराफाल्गुनी
- हस्त
- चित्रा
- स्वाती
- विशाखा
- अनुराधा
- ज्येष्ठा
- मूल
- पूर्वाषाढा
- उत्तराषाढा
- श्रवण
- धनिष्ठा
- शतभिषा
- पूर्व भाद्रपद
- उत्तर भाद्रपद
- रेवती
योग के नाम
- विष्कम्भ
- प्रीति
- आयुष्मान्
- सौभाग्य
- शोभन
- अतिगण्ड
- सुकर्मा
- धृति
- शूल
- गण्ड
- वृद्धि
- ध्रुव
- व्याघात
- हर्षण
- वज्र
- सिद्धि
- व्यतीपात
- वरीयान्
- परिघ
- शिव
- सिद्ध
- साध्य
- शुभ
- शुक्ल
- ब्रह्म
- इन्द्र
- वैधृति
करण के नाम
- किंस्तुघ्न
- बव
- बालव
- कौलव
- तैतिल
- गर
- वणिज
- विष्टि
- शकुनि
- चतुष्पाद
- नाग
तिथि के नाम
- Shukla Pratipadaप्रतिपदा
- Shukla Dwitiyaद्वितीया
- Shukla Tritiyaतृतीया
- Shukla Chaturthiचतुर्थी
- Shukla Panchamiपञ्चमी
- Shukla Shashthiषष्ठी
- Shukla Saptamiसप्तमी
- Shukla Ashtamiअष्टमी
- Shukla Navamiनवमी
- Shukla Dashamiदशमी
- Shukla Ekadashiएकादशी
- Shukla Dwadashiद्वादशी
- Shukla Trayodashiत्रयोदशी
- Shukla Chaturdashiचतुर्दशी
- Shukla Purnimaपूर्णिमा
- Krishna Pratipadaप्रतिपदा
- Krishna Dwitiyaद्वितीया
- Krishna Tritiyaतृतीया
- Krishna Chaturthiचतुर्थी
- Krishna Panchamiपञ्चमी
- Krishna Shashthiषष्ठी
- Krishna Saptamiसप्तमी
- Krishna Ashtamiअष्टमी
- Krishna Navamiनवमी
- Krishna Dashamiदशमी
- Krishna Ekadashiएकादशी
- Krishna Dwadashiद्वादशी
- Krishna Trayodashiत्रयोदशी
- Krishna Chaturdashiचतुर्दशी
- Krishna Amavasyaअमावस्या
राशि के नाम
- मेष
- वृषभ
- मिथुन
- कर्क
- सिंह
- कन्या
- तुला
- वृश्चिक
- धनु
- मकर
- कुम्भ
- मीन
आनन्दादि योग के नाम
- आनन्द
- सिद्ध
- कालदण्ड
- मृत्यु
- धुम्र
- असुख
- धाता/प्रजापति
- सौभाग्य
- सौम्य
- बहुसुख
- ध्वांक्ष
- धनक्षय
- केतु/ध्वज
- सौभाग्य
- श्रीवत्स
- सौख्यसम्पत्ति
- वज्र
- क्षय
- मुद्गर
- लक्ष्मीक्षय
- छत्र
- राजसन्मान
मित्र
पुष्टि
मानस
सौभाग्य
पद्म
धनागम
लुम्बक
धनक्षय
उत्पात
प्राणनाश
मृत्यु
मृत्यु
काण
क्लेश
सिद्धि
कार्यसिद्धि
शुभ
कल्याण
अमृत
राजसन्मान
मुसल
धनक्षय
गद
भय
मातङ्ग
कुलवृद्धि
राक्षस
महाकष्ट
चर
कार्यसिद्धि
स्थिर
गृहारम्भ
वर्धमान
विवाह
सम्वत्सर के नाम
- प्रभव
- विभव
- शुक्ल
- प्रमोद
- प्रजापति
- अङ्गिरा
- श्रीमुख
- भाता
- युवा
- धाता
- ईश्वर
- बहुधान्य
- प्रमाथी
- विक्रम
- वृष
- चित्रभानु
- सुभानु
- तारण
- पार्थिव
- व्यय
- सर्वजित्
- सर्वधारी
- विरोधी
- विकृति
- खर
- नन्दन
- विजय
- जय
- मन्मथ
- दुर्मुख
- हेमलम्बी
- विलम्बी
- विकारी
- शर्वरी
- प्लव
- शुभकृत्
- शोभकृत्
क्रोधी - विश्वावसु
- पराभव
- प्लवङ्ग
- कीलक
- सौम्य
- साधारण
- विरोधकृत्
- परिधावी
- प्रमादी
- आनन्द
- राक्षस
- नल
- पिङ्गल
- कालयुक्त
- सिद्धार्थी
- रौद्र
- दुर्मति
- दुन्दुभी
- रुधिरोद्गारी
- रक्ताक्ष
- क्रोधन
- क्षय