कार्तिक शुक्ल अष्टमी पर आज गोपाष्टमी मनाई जा रही है। देश में गोशालाओं के साथ जगह-जगह गौ पूजन किया जा रहा है। महिलाएं गौ माता का पूजन कर सुख—समृद्धि की कामना कर रही है। गाय के साथ बछड़े का भी पूजन किया जा रहा है।
स्वामी कमलानंद (डा कमल टावरी)
सम्पूर्ण मानवता का कल्याण गाय द्वारा सम्भव है। क्योंकि गाय की पीठ साक्षात ऋग्वेद, धड़ यर्जुवेद, मुख सामवेद, ग्रीवा इष्टापूर्ति सत्कर्म, रोम साधु सूक्त है, इसके मल मूत्र तक में शांति और पुष्टि समाई है। इसलिए जहां गायें रहती हैं, वहां के लोगों के पुण्य कभी क्षीण नहीं होते। गौ भक्त को गाय पुण्यमय जीवन देती है। गौ सेवा को इसीलिए सभी संतों-ऋषियों ने प्रोत्साहित किया है। गौ माता को हरा चारा खिलाने, सेवा करने से देवता सुख, सौभाग्य, यश, कीर्ति, श्रीबृद्धि कर सेवक को मनचाही संतान आदि का आशीर्वाद देते हैं।
दूध, घी, छाछ, गोमूत्र, गोबर करती है दान
गौमाता को साक्षात् यज्ञ स्वरूपा की मान्यता है। वह सदैव अपने उत्पादों के दान से यज्ञ ही तो करती है। वह दूध, घी, छाछ, गोमूत्र, गोबर आदि देकर जीवन से लेकर प्रकृति तक सबका पोषण करती है। जबकि अपने पोषण के लिए लेती तो मात्र कुछ अंश है।
अपनी असीम संवेदनशीलता के कारण यह धरा पर चलती फिरती माँ स्वरूप भी मानी जाती है। पवित्रता के कारण इसके सानिध्य में निवास करने वाले लोगों का आध्यात्मिक विकास होते देखा जाता है। इसीलिए भारतीय संस्कृति में नित्य प्रातः व सायंकाल इन्हें प्रणाम करने, इन्हें सेवा से संतुष्ट रखने का विधान है।
गौ माता त्याग-पवित्रता की प्रतिमूर्ति
गौ माता त्याग-पवित्रता की प्रतिमूर्ति है, इसके बछडे़, बैल आदि गर्मी-सर्दी भूख प्यास सहते हुए भी सबके लिए अन्न उत्पादन करते हैं। सम्पूर्ण गौवंश मानव के लिए विश्वास का प्रमाण है। यह जहां भी रहती है, वह परिवार कभी भूखों नहीं मर सकता। हमारी देशी गायों के दुग्ध में मनुष्य के शरीर बल, मानसिक बल एवं आत्मिक बल की पुष्टि की सर्वाधिक शक्ति होती है। देशी गाय का गोबर, गौमूत्र जिस परिवार में उपयोग होता है और गाय की सेवा होती है, वहां निर्धनता एवं दरिद्रता सहज में मिट जाती है। इसीलिए किसी भी परिस्थिति में गौ सेवा की मान्यता है। भय से घिरी, कींचड़ व जल में फंसी, गाय को बचाने की मान्यता हमारी ग्रामीण परम्परा में आज भी है। अनेक समुदायों में गाय की रक्षा, पूजा और सेवा आदि आज भी अपनी सगी माता के समान ही की जाती है।