गीता श्लोक एवं भावार्थ : गीता प्रथम अध्याय का नवम् श्लोक

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गीता को माँ भी कहा गया है। यह इसलिए कि जिस प्रकार माँ अपने बच्चों को प्यार-दुलार देती और सुधार करते हुए महानता के शिखर पर आरूढ़ होने का रास्ता दिखाती है, उसी तरह गीता भी अपना गान करने वाले भक्तों को सुशीतल शांति प्रदान करती है। यह मनुष्यों को सद्शिक्षा देती और नर से नारायण बनने के राह पर अग्रसर होने की प्रेरणा प्रदान करती है। गीता का गान करते-करते मनुष्य उस भावलोक में प्रवेश कर जाता है, जहाँ उसे अलौकिक ज्ञान-प्रकाश, अपरिमित आनन्द प्राप्त होता है। हो भी न कैसे? एक गीता का गान ही अपने आप में इतना सक्षम है कि इसे पाने के बाद और कुछ पाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। क्योंकि यह स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण के मुख-कमल से ही निःसृत हुई है। कहा भी गया है-

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गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिसृतः॥

अभी तक हमने गीता के अध्याय 1 के सातवें और आठवें श्लोक तक का पठन किया। आज हम नौंवे श्लोक का पठन करेंगे-


हिमशिखर धर्म डेस्क

अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।
नानाशास्त्रप्रहरणः सर्वे युद्धविशारदाः ॥9॥

अन्ये – अन्य ; – और; बहवः – अनेक ; शूरा: – वीर योद्धा ; मदर्थे – मेरे लिये ; त्यक्त-जीविताः – अपने जीवन का बलिदान देने के लिए तैयार; नाना-शास्त्र-प्रहरणाः – विभिन्न प्रकार के हथियारों से सुसज्जित; सर्वे – सब ; युद्ध-विषारदाः – युद्ध कला में कुशल

इसके अलावा, कई अन्य वीर योद्धा भी हैं, जो मेरे लिए अपने प्राण देने को तैयार हैं। वे सभी युद्ध कला में कुशल हैं और विभिन्न प्रकार के हथियारों से सुसज्जित हैं।

स्वामी रामसुखदास जी के अनुसार व्याख्या-‘अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्त-जीविताः‘ – मैंने अभी तक अपनी सेना के जितने शूरवीरों के नाम लिये हैं, उनके अतिरिक्त भी हमारी सेना में बाह्रीक, शल्य, भगदत्त, जयद्रथ आदि बहुत-से शूरवीर महारथी हैं, जो मेरी भलाई के लिये, मेरी ओर से लड़ने के लिये अपने जीने की इच्छा का त्याग करके यहाँ आये हैं। वे मेरी विजय के लिये मर भले ही जायँ, पर युद्ध से हटेंगे नहीं। उनकी मैं आपके सामने क्या कृतज्ञता प्रकट करूँ ?

नानाशास्त्रप्रहरणः सर्वे युद्धविशारदाः– वे सभी लोग हाथ में रखकर प्रहार करने वाले तलवार; गदा, त्रिशूल आदि नाना प्रकार के शस्त्रों की कला में निपुण हैं; और हाथ से फेंककर प्रहार करने वाले बाण, तोमर, शक्ति आदि अस्त्रों की कला में भी निपुण हैं। युद्ध कैसे करना चाहिये; किस तरह से, किस पैंतरे से और किस युक्ति से युद्ध करना चाहिये, सेना को किस तरह खड़ी करनी चाहिये आदि युद्ध की कलाओं में भी ये बड़े निपुण हैं, कुशल हैं।

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