भाई कमलानंद
पूर्व सचिव भारत सरकार
ग्लोबल वार्मिंग के चलते दुनियाभर में मौसम का मिजाज किस कदर बदल रहा है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले वर्षों में उत्तरी ध्रुव के तापमान में कई डिग्री की बढ़ोतरी देखी गई है। ग्लोबल वार्मिंग तमाम तरह की सुख-सुविधाएं व संसाधन जुटाने के लिए किए जाने वाले मानवीय क्रियाकलापों की ही देन है। धरती का तापमान यदि इसी प्रकार साल दर साल बढ़ता रहा तो आने वाले वर्षों में हमें इसके बेहद गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहना होगा क्योंकि हमें यह बखूबी समझ लेना होगा कि जो प्रकृति हमें उपहार स्वरुप शुद्ध हवा, शुद्ध पानी, शुद्ध मिट्टी तथा ढ़ेरों जनोपयोगी चीजें दे रही है, अगर मानवीय क्रियाकलापों द्वारा पैदा किए जा रहे पर्यावरण संकट के चलते प्रकृति कुपित होती है तो उसे सब कुछ नष्ट कर डालने में पल भर की भी देर नहीं लगेगी। पैट्रोल, डीजल से उत्पन्न होने वाले धुएं ने वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड तथा ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा को खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है।
कुछ साल पहले तक जहां फरवरी माह में देश के ज्यादातर हिस्सों में हल्की ठंड का अनुभव किया जाता था, वहीं अब फरवरी-मार्च के महीने में ही गर्मी का अनुभव होने लगता है और अक्सर अब मार्च में ही गर्मी के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त होने लगते हैं। निश्चित रूप से यह जलवायु परिवर्तन का ही स्पष्ट संकेत है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विगत वर्षों में दुनियाभर में दोहा, कोपेनहेगन, कानकुन इत्यादि बड़े-बड़े अंतरर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन होते रहे हैं और वर्ष 2015 में पेरिस सम्मेलन में 197 देशों ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए अपने-अपने देश में कार्बन उत्सर्जन कम करने और 2030 तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री तक सीमित करने का संकल्प लिया था किन्तु उसके बावजूद इस दिशा में कोई ठोस कदम उठते नहीं देखे गए हैं। दरअसल वास्तविकता यही है कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रकृति के बिगड़ते मिजाज को लेकर चर्चाएं और चिंताएं तो बहुत होती हैं, लेकिन धरातल पर सच्चाई किसी से छिपी नहीं है।
प्रकृति कभी समुद्री तूफान तो कभी सूखा तो कभी अकाल के रूप में अपना विकराल रूप दिखाकर हमें बारम्बार चेतावनियां देती रही है किन्तु जलवायु परिवर्तन से निपटने के नाम पर वैश्विक चिंता व्यक्त करने से आगे हम शायद कुछ करना ही नहीं चाहते। प्रकृति से खिलवाड़ कर पर्यावरण को क्षति पहुंचाकर यदि हम स्वयं इन समस्याओं का कारण बने हैं और गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं को लेकर वाकई चिंतित हैं तो इन समस्याओं का निवारण भी हमें ही करना होगा ताकि हम प्रकृपि के प्रकोप का भाजन होने से बच सकें अन्यथा प्रकृति से जिस बड़े पैमाने पर खिलवाड़ हो रहा है, उसका खामियाजा समस्त मानव जाति को अपने विनाश से चुकाना पड़ेगा। लोगों को पर्यावरण एवं पृथ्वी संरक्षण के लिए जागरुक करने के लिए साल में केवल एक दिन अर्थात् 22 अप्रैल को ‘पृथ्वी दिवस’ मनाने की औपचारिकता निभाने से कुछ हासिल नहीं होगा। यदि हम वास्तव में पृथ्वी को खुशहाल देखना चाहते हैं तो ‘पृथ्वी दिवस’ प्रतिदिन मनाए जाने की आवश्यकता है। यदि हम चाहते हैं कि हम धरती मां के कर्ज को थोड़ा भी उतार सकें तो यह केवल तभी संभव है, जब वह पेड़- पौधों से आच्छादित, जैव विविधता से भरपूर तथा प्रदूषण से सर्वथा मुक्त हो और हम चाहें तो सामूहिक रूप से यह सब करना इतना मुश्किल भी नहीं है। बहरहाल, यह अब हमें ही तय करना है कि हम किस युग में जीना चाहते हैं? एक ऐसे युग में, जहां सांस लेने के लिए प्रदूषित वायु होगी और पीने के लिए प्रदूषित और रसायनयुक्त पानी तथा ढ़ेर सारी खतरनाक बीमारियों की सौगात या फिर एक ऐसे युग में, जहां हम स्वच्छंद रुप से शुद्ध हवा और शुद्ध पानी का आनंद लेकर एक स्वस्थ एवं सुखी जीवन का आनंद ले सकें। इसके लिए हमें आज संकल्प लेना होगा कि –
1- प्रत्येक मंदिर में पीपल, वटवृक्ष, नीम, बिल्व, गुलर (पंचवृक्ष) के पेड लगाएं। जिस मंदिर में यह वृक्ष लगे हो, वह स्थान सिध्दभूमि बनेगा।
2- नदी का प्रदूषण दूर करने के लिए हर सप्ताह भक्त परिवार समाज के प्रत्येक वर्ग को साथ लेकर स्वच्छता अभियान चलाएं।
3- घर में, पार्क में, खुली जगह पर, खेत के बार्डर पर, सडक किनारे वर्षा ऋतु में वृक्ष बीज फेंके।
4- फलदार वृक्षों के बाग लगाने के व्यवसाय पर जोर दिया जाय।
5- प्रत्येक विद्यार्थी को प्रत्येक वर्ष 10 वृक्ष लगाने का लक्ष्य दें।
वृक्ष बचेगा, तो पृथ्वी बचेगी। जल की कमी नही होगी।
अन्यथा ग्लोबल वार्मिंग ही अगला प्रलय बन सकता है।
आज का परिश्रम..!
कल का उज्ज्वल भविष्य..!