मां बगलामुखी जयंती पर विशेष: प्रचंड तूफान का क्षण में नाश कर देती हैं मां बगलामुखी

परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद

Uttarakhand

भारतीय तंत्र विज्ञान अपने में अद्भुत एवं विशाल महाशक्तियों से सम्पन्न है, इसमें प्रकृति के वे सभी गूढ़ तत्व निहित हैं, जिनमें मानव जीवन की पूर्णता एवं प्रकृति का रहस्य छिपा हुआ है। महाशक्तियों में कई महाविद्यायें आती हैं, किन्तु उनमें जो विश्व की श्रेष्ठ महाविद्या है, वह भगवती बगलामुखी है। प्राचीन काल से ही जो भी महापुरूष हुये हैं या राजाओं ने निष्कंटक राज्य किया है, उनके जीवन में विजय एवं सफलता का रहस्य ही भगवती बगलामुखी उपासना रही है।

विष्णु पुराण में वर्णन आया है, कि एक बार सृष्टि में तपस्याहीनता से महाप्रलय की स्थिति आ गई और स्वयं विष्णु विचार करने लगे, कि मैं इस भगत का पालनकर्ता हूं और अभी महाप्रलय नहीं होना चाहिये, जगत की  रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। ऐसा विचार कर भगवान विष्णु स्वयं सौराष्ट्र देश के हरिद्रा तट पर गये और वहां कठोर साधना तपस्या प्रारम्भ की। तपस्या की पूर्णता के पश्चात् बुधवार अष्टमी के दिन एक देवी की उत्पत्ति हुई जो स्वर्णासीन थी, पीत वस्त्र और माला धारण किये हुये थी, हाथ में मुद्गर था और दूसरे हाथ में देवी ने शत्रु की जीभ पकड़ी थी। यह देवी वल्गा देवी थीं, जिसके प्रभाव से सृष्टि में प्रलय रूक गई।

इस वल्गामुखी शक्ति का नाम बगलामुखी बन गया। वल्गा शक्ति का मूल सूत्र प्राण चेतना है। ये प्राण चेतना प्रत्येक प्राणी में सुप्त अवस्था में होता है और साधना द्वारा इसे जाग्रत व चैतन्य किया जा सकता है। बगलामुखी की साधना द्वारा ही इस प्राण चेतना को जाग्रत किया जा सकता है।

इस तरह करें पूजा

देवी बगलामुखी को पीला रंग प्रिय है। इसलिए इनका एक नाम पितांबरा भी है। ये रंग पवित्रता, आरोग्य और उत्साह का रंग माना जाता है। इनकी पूजा में पीले रंग के कपड़े, फूल, आसन, माला, मिठाई और अन्य सामग्रियों का रंग भी पीला ही होता है। रोग से बचने के लिए हल्दी और केसर से देवी बगलामुखी की विशेष पूजा करनी चाहिए। देवी दुर्गा की दश महाविद्याओं में ये आठवीं हैं। खासतौर से इनकी पूजा से रोग और कर्ज से परेशान लोगों को लाभ मिलता है।

व्रत और पूजा की विधि

  • सुबह जल्दी उठकर नहाएं और पीले रंग के कपड़े पहनें।
  • पूर्व दिशा में उस स्थान पर गंगाजल छीड़के जहां पर पूजा करना है।
  • उस जगह पर एक चौकी रख कर उस पर माता बगलामुखी की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं और पानी छींटकर आसन पवित्र करें।
  • हाथ में पीले चावल, हल्दी, पीले फूल और दक्षिणा लेकर माता बगलामुखी व्रत का संकल्प करें। माता की पूजा खासतौर से पीले फल और पीले फूल से करें।
  • धूप, दीप लगाएं। फिर पीली मिठाई का प्रसाद चढ़ाएं।
  • व्रत के दिन निराहार रहना चाहिए। रात्रि में फलाहार कर सकते हैं। अगले दिन पूजा करने के बाद ही भोजन करें।

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