सनातन धर्म में शरीर के दाहिने हिस्से को काफी शुभ माना गया है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करने से पहले दाहिने हाथ से ही परंपराओं को निभाने की सलाह दी जाती है। पूजा-पाठ में भी शरीर के दाएं अंग का ही सर्वप्रथम इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही आरती व हवन के लिए भी दाहिने हाथ का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा हमें सदैव अपने सीधे हाथ(दाहिना) से भोजन करने के लिए कहा जाता है। क्या आप जानते हैं कि ये सब क्यों है? हिंदू धर्म में शरीर के दाहिने अंगों को इतना शुभ क्यों माना गया है? यदि नहीं तो हम आपको इस बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
हिमशिखर धर्म डेस्क
शास्त्र व्यक्ति को जीवन जीना सिखाता हैं। साथ ही शस्त्र हमें जीवन की रक्षा करना भी सीखातें है। शास्त्रों में भी जीवन जीने के कई तरीके बताए गए हैं जिन्हें अपनाया जाए तो व्यक्ति का जीवन बहुत ही आनंद से बीतता है। ऐसा ही एक नियम है सदैव सीधे हाथ यानी दाहिने हाथ से भोजन करने का नियम। क्या आप इसका कारण जानते हैं कि शास्त्रों में बाएं हाथ से खाना खाने की मनाही है। चलिए इसका कारण जानते हैं।
भारतीय संस्कृति में हाथ से खाने की परम्परा है और इसके पीछे यह कारण है कि आपके हाथ की पाँचों अँगुलियाँ पांच तत्वों से जुड़ी हैं, जिसका लाभ आपको खाने के दौरान मिलता है। हाथ से खाने से ये पांच तत्व आपके शरीर में प्रवेश करते हैं और आपको पाचन में भी मदद करते हैं। लेकिन हाथ से खाने में भी एक और नियम है और वह है कि आपको दायें हाथ से ही खाना चाहिए। शास्त्रों में उल्टे हाथ यानि बाएं हाथ से भोजन करना अशुभ और अनुचित माना गया है। इसके पीछे धार्मिक कारण के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ भी जुड़ी हुई हैं।
दाहिना हाथ सूर्य नाड़ी का काम करता है। यही कारण है कि हर एक काम जिसमें ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है उसमें दाहिने हाथ का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं हमारा बायां हाथ चंद्र नाड़ी का प्रतीक होता है। जिसके लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि बाएं हाथ से हमेशा वही काम करने चाहिए जिसमें कम ऊर्जा लगती है। भोजन करना एक शुभ कार्य माना जाता है और भोजन पचाने में भी अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यही वजह है कि भोजन हमेशा दाहिने हाथ से करने की सलाह दी जाती है, जिससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर सके। बाएं हाथ से भोजन करना यानि नकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करना माना गया है।