सुप्रभातम्: भगवान विष्णु के परमभक्त शेषनाग जी के रहस्य

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

सेष सहस्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन॥
सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिन्धु सौमित्रि गुनाकर॥

भावार्थ:-जो हजार सिर वाले और जगत के कारण (हजार सिरों पर जगत को धारण कर रखने वाले) शेषजी हैं, जिन्होंने पृथ्वी का भय दूर करने के लिए अवतार लिया, वे गुणों की खान कृपासिन्धु सुमित्रानंदन श्री लक्ष्मणजी मुझ पर सदा प्रसन्न रहें॥

हमारे सनातन धर्म में भगवान विष्णु को पालनकर्ता कहा गया है, जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु के दो रूप कहे गए है एक तो उनका सहज एवं सरल स्वभाव है तथा अपने दूसरे रूप में भगवान विष्णु कालस्वरूप शेषनाग के ऊपर बैठे है।

भगवान विष्णु का यह स्वरूप थोड़ा भयावह अवश्य है परन्तु भगवान विष्णु की लीलाएं अपरम्पार है। भगवान विष्णु अनेक शक्तिशाली शक्तियों के स्वामी है उनके इन्ही में से एक अत्यधिक शक्तिशाली शक्ति है शेषनाग।

आज हम आपको शेषनाग और नागो से जुड़े अनेक ऐसे रहस्यों के बारे में बताने जा रहे है जो सायद ही अपने पहले कभी सुने हो।

नागराज अनन्त को ही शेषनाग कहा गया है। शेषनाग भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय है तथा उन्हें उनका भगवत्स्वरूप कहा जाता है. प्रलयकाल के दौरान जब नई सृष्टि का निर्माण होता है तो उसमे जो शेष अवक्त शेष रह जाता है, हिंदू धर्मकोश के अनुसार वे उसी के प्रतीक माने गए हैं।

भविष्य पुराण में इनका वर्णन एक हजार फन वाले सर्प के रूप में किया गया है। ये जीव तत्व के अधिष्ठाता हैं और ज्ञान व बल नाम के गुणों की इनमें प्रधानता होती है।

इनका आवास पाताल लोक के मूल में माना गया है, प्रलयकाल में इन्हीं के मुखों से भयंकर अग्नि प्रकट होकर पूरे संसार को भस्म करती है।

ये भगवान विष्णु के पलंग के रूप में क्षीर सागर में रहते हैं और अपने हजार मुखों से भगवान का गुणानुवाद करते हैं। भक्तों के सहायक और जीव को भगवान की शरण में ले जाने वाले भी शेष ही हैं।

क्योंकि इनके बल, पराक्रम और प्रभाव को गंधर्व, अप्सरा, सिद्ध, किन्नर, नाग आदि भी नही जान पाते, इसलिए इन्हें अनंत भी कहा गया है।

शेषनाग विष्णु भगवान के परम भक्त हैं और उनको शैया के रूप में आराम देते हैं। वह भगवान विष्णु के साथ क्षीरसागर में ही रहते हैं मान्यताओं के अनुसार उनके हजार फन हैं। इसलिए ही उन्हें अनंतनाग भी कहा जाता है। वह सारे ग्रहों को अपनी कुंडली पर धरे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि जब शेषनाथ सीधे चलते हैं तब ब्रह्मांड में समय रहता है और जब शेषनाग कुंडली के आकार में आ जाते हैं तो प्रलय आती है। वह भगवान विष्णु के भक्त होने के साथ-साथ उनके अवतारों में भी उनका सहयोग करते हैं। जैसे कि त्रेता युग के राम अवतार में शेषनाग ने लक्ष्मण भगवान का रूप धरा था।

ये पंचविष ज्योति सिद्धांत के प्रवर्तक माने गए हैं। भगवान के निवास शैया, आसन, पादुका, वस्त्र, पाद पीठ, तकिया और छत्र के रूप में शेष यानी अंगीभूत होने के कारण् इन्हें शेष कहा गया है। लक्ष्मण और बलराम इन्हीं के अवतार हैं जो राम व कृष्ण लीला में भगवान के परम सहायक बने।

हमारे जीवन का हर क्षण अनेको जिम्मेदारियों एवं कर्तव्यों को अपने अंदर समेटे हुए है, तथा सबसे अत्यधिक एवं महत्वपूर्ण दायित्व जो मनुष्य का होता है वह है अपने परिवार तथा समाज के प्रति। एक वास्तविकता यह भी है की इन जिम्मेदारियों को पूरा करने में हमें अनेको परशानियों का सामना करना पड़ता है और शेषनाग रूपी परेशानियों को अपने कैद में कर भगवान सम्पूर्ण समाज को यही संदेश देना चाहते है की चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो परन्तु हमें सदैव अपने परेशनियों को वश में कर सरल एवं प्रसन्न रहना चाहिए।

ये शेषनाग रूप में स्वयं पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते हैंहैं। वैदिक ज्योतिष में राहु को काल और केतु को सर्प माना गया है।

अतः नागों की पूजा करने से मनुष्य की जन्म कुंडली में राहु-केतु जन्य सभी दोष तो शांत होते ही हैं, इनकी पूजा से कालसर्प दोष और विषधारी जीवो के दंश का भय नहीं रहता।

परिवार में वंश वृद्धि, सुख-शांति के लिए नए घर का निर्माण करते समय नींव में चांदी का बना नाग-नागिन का जोड़ा रखा जाता है

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