आज का पंचांग: शरीर एक मंदिर

पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज सावन की 28 गते है।

आज का पंचांग

मंगलवार, अगस्त 13, 2024
सूर्योदय: 05:49 ए एम
सूर्यास्त: 07:02 पी एम
तिथि: अष्टमी – 09:31 ए एम तक
नक्षत्र: विशाखा – 10:44 ए एम तक
योग: ब्रह्म – 04:34 पी एम तक
करण: बव – 09:31 ए एम तक
द्वितीय करण: बालव – 10:03 पी एम तक
पक्ष: शुक्ल पक्ष
वार: मंगलवार
अमान्त महीना: श्रावण
पूर्णिमान्त महीना: श्रावण
चन्द्र राशि: वृश्चिक
सूर्य राशि: कर्क

आज का विचार

परिवार संगीत की तरह है, जिसमें कुछ स्वर ऊँचे हैं और कुछ नीचे। लेकिन जब सब मिलते हैं, तब एक खूबसूरत संगीत बनता है, और एक खुशहाल परिवार बनता है।

शरीर एक मंदिर

मनुष्य शरीर देवालय है। मनुष्य का जन्म केवल माता पिता के ही संयोग से संभव नहीं हो सकता इसके लिए देवी- देवताओं का भी सहयोग होता है। 33 प्रकार के देवी – देवता यथा सूर्य, पृथ्वी, वायु, जल, आकाश, अश्विनीकुमार, चन्द्र, आदि हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। हमारे माता के गर्भ में ये देव अपने एक- एक अंश से सहयोग करते हैं जरा कल्पना करें अगर वायु देव माँ के गर्भ में नहीं पहुँचे तो क्या गर्भ में जीवन संभव हो सकता है यही बात जल पृथ्वी , अग्नि, आदि देवों के बारे में भी लागू होता है।

अर्थवेद के 5 वें कांड में लिखा है- सूर्य मेरा चक्षु है, वायु प्राण है , अन्तरिक्ष आत्मा है और पृथ्वी मेरा शरीर है…… इस तरह द्युलोक का सूर्य, अंतरिक्ष लोक का वायु और पृथ्वी लोक के पदार्थ क्रमशः मेरे आँख प्राण और स्थूल शरीर में आ कर रह रहे है और हाथ तीनों लोकों का सूक्ष्म अंश हमारे शरीर में अवतरित हुआ है | इसीलिए ज्ञानी इस पुरुष को ब्रह्म मानता है क्योंकि सब देवता इसमें वैसे ही रहते हैं जैसे गोशाला में गायें रहती हैं। माँ के गर्भ में 33 देवता अपने – अपने सूक्ष्म अंशों से रहते है परन्तु यह गर्भ तभी स्थिर (ठोस) होने लगता है जब परमात्मा एक अंश से गर्भ में (जीवात्मा) अवतरित होते हैं। उस समय सभी देव गर्भ में उस परमात्मा की स्तुति करते हैं और उसकी रक्षा व् वृद्धि करते है। सभी देव प्रार्थना करते हैं की – हे जीव ! आप अपने साथ अन्य जीवों का भी कल्याण करना। परन्तु इन बातों का स्मरण जन्म के समय के कठिन कष्ट के कारण भूल जाता है।

वेद का यह मंत्र हमें यह स्मरण दिलाता है – अयं अहं अस्त्रितः नाम अस्मि। अर्थात यह मैं अमर अथवा अदम्य शक्ति से युक्त हूँ। ऐसा दिव्य और मनोहारी हमारा मनुष्य शरीर होता है तभी उपनिषदों में ऋषियों का अमर संदेश गूंजता है – अहं ब्रह्मास्मि, तत्वमसि। इसी तरह सभी जीवों की उत्पत्ति होती है। अतः देव यह घोषणा करता है – सृष्टि का हर प्राणी परमात्मा का ही अंश है। हम सभी को इसी भगवन्मय दृष्टि से एक दुसरे को देखना चाहिए। कल्याणम अस्तु।

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