आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर बन रहे द्वापर युग वाले दुर्लभ योग, 5251 वर्ष पहले भी थे बने…

आज 26 अगस्त सोमवार को कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है। इस बार जन्माष्टमी पर कुछ वही दुर्लभ योग-संयोग बन रहे हैं जोकि 5251 वर्ष पहले श्री कृष्ण के जन्म के समय बने थे। कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में बुधवार के दिन मध्यरात्रि में हुआ था।


हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

आज 26 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व काफी खास होने जा रहा है, क्योंकि इस दिन कुछ वैसे ही दुर्लभ योग बन रहा है जैसा कि 5251 वर्ष पूर्व यानी द्वापर युग में बना था। इस दिन सवार्थ सिद्धि, रोहिणी नक्षत्र के साथ सूर्य सिंह में, चंद्रमा वृषभ राशि में रहेगा। ऐसा दुर्लभ योग बनना काफी शुभ माना जा रहा है। इस योग में पूजा करने से कई गुना अधिक फल मिलेगा।

भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की मध्यरात्रि व्यापनी अष्टमी तिथि, बुधवार और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस वर्ष 26 अगस्त को सवार्थ सिद्धि योग बन रहा है और रोहिणी नक्षत्र होने से एक विशेष योग निर्मित हो रहा है। इसीलिए इस वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी सुख, समृद्धि और मनोवांछित फल देने वाली मानी जा रही है। धूमधाम से पूरे विधि विधान के साथ बाल गोपाल का जन्म उत्सव मनाने की परंपरा है। न सिर्फ भारत बल्कि विदेश में भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम रहती है।

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अधर्म के ऊपर धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है। भगवान कृष्ण के भक्‍त जन्माष्टमी के दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस दिन हर ओर खुशियां होती हैं। भगवान कृष्ण का जन्म मानों भक्तों के जीवन में नया उत्साह भर देता है। इस द‍िन की तैयारी भक्‍त कई दिन पहले से कर देते हैं।

12 बजे जन्म उत्सव मनाते हैं
चूंकि तिथि के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि में हुआ था इसलिए घरों और मंदिरों में मध्यरात्रि 12 बजे कृष्ण भगवान का जन्म उत्सव मनाते हैं। रात में जन्म के बाद दूध से लड्डू गोपाल की मूर्ति को स्नानादि कराने के बाद नए और सुंदर कपड़े और गहने पहनाकर श्रीकृष्ण का श्रृंगार किया जाता है, फिर पालने में रखकर पूजा आदि के बाद चरणामृत, पंजीरी, ताजे फल और पंचमेवा आदि का भोग लगाकर प्रसाद के तौर पर बांटते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व

कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व सनातन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन कृष्ण भगवान के भक्त व्रत रखते हैं तथा उनकी विधिवत तरीके से पूजा करते हैं। कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा-भाव से भगवान श्री कृष्ण की पूजा-आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से कुंडली में चंद्र की स्थिति मजबूत होती है।

सजाई जाती है झांकी

जन्माष्टमी के पावन पर्व को लोग उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं। पूजा और व्रत के साथ इस दिन घरों और मंदिरों में झांंकी भी सजाते हैं। इन झांकियों की श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से लेकर पूरे जीवनकाल के दृष्टांत दिखाए जाते हैं चूंकि भगवान जन्म कारागार में हुआ था इसलिए आज भी कई पुलिस लाइन्स में भगवान की सुंदर झांकियां सजाई जाती है, इसके अलावा लोग अपने घरों में बहुत सुंदर झांकी सजाते हैं।

जन्माष्टमी व्रत की महिमा

1– भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिरजी को कहते हैं : “बीस करोड़ एकादशी व्रतों के समान अकेला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत पुण्य दायक हैं।”

2– धर्मराज सावित्री से कहते हैं : “भारतवर्ष में रहने वाला जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।”

यह चार रात्रियां विशेष पुण्य प्रदान करनेवाली हैं

1-दिवाली की रात 2- महाशिवरात्रि की रात

3- होली की रात 4-कृष्ण जन्माष्टमी की रात। इन विशेष रात्रियों में किया जप, तप , जागरण बहुत पुण्य प्रदायक है। शिवपुराण में वर्णन है कि — श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान,नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत का पालन करना चाहिए।

जन्माष्टमी व्रत की महिमा

जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहिए, बड़ा लाभ होता है। इससे सात जन्मों के पाप-ताप मिटते हैं। जन्माष्टमी एक तो उत्सव है, दूसरा महान पर्व है, तीसरा महान व्रत-उपवास और पावन दिन भी है। ‘वायु पुराण’ में और अन्य पुराणों में जन्माष्टमी के दिन की महिमा लिखी है। ‘जो जन्माष्टमी की रात्रि को उत्सव के पहले अन्न खाता है, भोजन कर लेता है वह नराधम है’ – ऐसा भी लिखा है, और जो उपवास करता है, जप-ध्यान करके उत्सव मना के फिर खाता है, वह अपने कुल की 21 पीढ़ियों का उद्धार कर लेता है और वह मनुष्य परमात्मा को साकार रूप में अथवा निराकार तत्त्व में पाने में सक्षमता की तरफ बहुत आगे बढ़ जाता है । इसका मतलब यह नहीं कि व्रत की महिमा सुनकर मधुमेह वाले या कमजोर लोग भी पूरा व्रत रखें ।

बालक, अति कमजोर तथा बूढ़े लोग या रोग ग्रस्त लोग अनुकूलता के अनुसार थोड़ा फल आदि खायें । जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है। उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्त्व है। जिसको ‘क्लीं कृष्णाय नमः’ मंत्र का और अपने ‘गुरु मंत्र’ का थोड़ा जप करने को भी मिल जाय, उसके त्रिताप नष्ट होने में देर नहीं लगती ।

‘भविष्य पुराण’ के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत संसार में सुख-शांति और प्राणीवर्ग को रोगरहित जीवन देनेवाला, अकाल मृत्यु को टालनेवाला, गर्भपात के कष्टों से बचाने वाला तथा दुर्भाग्य और कलह को दूर भगानेवाला होता है।

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