बद्री विशाल के दर्शन करने के बाद मैं बाबा केदार के दर्शन करने निकल गया. रुद्रप्रयाग जिले की शान भगवान केदारनाथ का रास्ता इतना आसान नहीं था. बिलकुल नई जगह पहली बार जा रहा था इसीलिए उत्सुकता और रोचकता भरपूर थी मेरे अंदर. एक आम आदमी की तरह मैं भी माया का शिकार था ये अलग बात थी घुमक्कड़ी सिर पर सवार थी. रात को कहा रूकूंगा, क्या खाऊंगा इत्यादि अगर बगर. खैर ये इसीलिए भी था की मैं यात्रा में अकेला नहीं था.लेकिन एक चीज के साथ में निश्चिंत था की ट्रेकिंग कितनी भी लंबी क्यों न हो मैं नाप लूंगा.ये आत्म विश्वास मेरे भीतर मुझे लगातार आगे बड़ने में मदद कर रहा था. सपने हकीकत में बदलने वाले थे क्योंकि हकीकत से रूबरू होने वाला था. पहले सीतापुर फिर सोनप्रयाग और फिर शटल सेवा से सीधे पैदल रास्ते पर चल निकला. सुबह चार बजे से पहले ही लोगों की लंबी कतार लग गई थीं। बेहद खतरनाक रास्ता , सिंगल रोड, पहाड़ी में उपर से आता झरना प्रातः काल ही दिन का हाल क्या होगा बताने के लिए काफी था.अब पैदल चलने की बारी थी। कहा सुनी में बांस के डंडे खरीद लिए।क्योंकि सबके हाथ में डंडे घूम रहे थे। समूह का प्रभाव होता है ये इस बात को सिद्ध कर रहा था। थोड़ा आगे बड़े ही थे की घोड़ा ले लो, घोड़ा ले लो की आवाज जोर से कान से टकराई. सुना अनसुना कर आगे चल दिया। लोगो में जबरदस्त हुजूम था। चले जा रहे थे भगवान महादेव के दर्शन करने को। आगे आगे घोड़ों को और नजदीक अपने अगल बगल ही पा रहा था। संभल कर चलिए घोड़ों को दौड़ाने वालों की आवाज पहाड़ से टकराकर प्रतिध्वनि उत्पन्न कर रही थी। अब अचेतन मस्तिष्क सतर्क हो गया था. सीढियों को चढ़ते चढ़ते मदाकिनी को स्पर्श करने का सौभाग्य मिला। तुरंत ही दिमाग में खुशी की करंट दौड़ी की चलो आज इस नदीं का उद्गम स्थान यानी ग्लेशियर देखने का मौका मिलेगा। पर इतने में घोड़े ने एक पैदल चलते यात्री को रगड़ा कर नीचे गिरा दिया। वहा पर भीड़ इकट्ठा हो गई। घोड़ों वालों को इससे कोई मतलब नही था। उसे तो सिर्फ इस बेजुवान जानवर की पूछ मरोड़कर तेज भगाना था.पैसे की लिए किसी की जान पर कैसे खेला जा रहा है , देखकर दुःख हुआ.संबंधित से कहा भी लेकिन उनके कान में जूं नहीं रेंगी। खैर चलते चलते आठ घंटे हो गए थे , काफी नए और कड़े अनुभवों से दो चार हो रहा था.
स्मृति में अब शिव नही थे.व्यस्था की व्यथा के प्रति गुस्सा था.इतनी बड़ी यात्रा और पैदल चले वाले यात्रियों का हाल बेहाल. केदारनाथ पहुंच चुका था। रास्ते में देह को खिलाते पिलाते रहना पड़ता हैं। रास्ते भर इसके इंतजामात रहते हैं। लेकिन जेब हल्की होती रहती हैं। सीधे बाबा केदार के दर्शन किए। दूर से ही नाग की छत्र में चलते दिव्य दिए की रोशनी में भगवान शिव के ज्योर्तिमय लिंग के दर्शन हुए. भगवान इस जगत के रखवाले को प्रणाम कर मंदिर प्रांगण में ही ध्यान मुद्रा में बैठ गया. 10800 फिट की ऊंचाई में लंबे समय तक योगमुद्रा में लीन रहना मैने ठीक नही समझा। सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया की भावना के साथ में प्रकृति की गोद में बसे केदार नाथ को निहारने लगा.
गजब का कमाल था प्रकृति का। भगवान
दकशीष के चरणों को स्पर्श करती मंदाकिनी उनका आशीर्वाद लेकर जन कल्याण के प्यास बुझाने, अन्न उगने, धरती को हराभरा रखने को अपनी लंबी यात्रा में निकल जाती है। ऊंचे पहाड़ों में जमी बर्फ बता रही थी की हम ग्लेशियर पर आ चुके हैं. रात टेंट में गुजारने के बाद उन्हीं बांस के डंडे के सहारे घोड़ों से बच बचाकर लौटना था। इसलिए लग गया माठू माठ रास्ता नापने में। रास्ते में चाय पीते समय व्यस्था का दर्द होटल वाला बता रहा था। बिलकुल मेरी ही मन की बात करा रहा था। मुझे अपना आकलन सही लग रहा था.केदारनाथ यात्रा भर आपको अनमोल झरने, पानी के खुले स्रोत, छोटे छोटे उप नदियां बहुतायत में मिल जाएंगी। ये कुछ देर के लिए आपका ध्यान घोड़े से हटा देंगे। लेकिन सावधान अगले ही पल और आप के संग चल रहे लोगो को भी सुरक्षित लेकर चलना होता हैं।
भगवान से यही प्रार्थना हैं की आपकी यात्रा से आपके दर्शनों का लाभ प्राप्त करने वाले सभी भक्त, प्रेमी, सुरक्षित रहें। जमीन के साथ साथ हेली सेवा भी केदारनाथ तक पहुंचती है। दिव्यांग और कमज़ोर लोगों के लिए डोली, डोलिया और बेतरतीब घोड़े रहते हैं।
यात्रा और दर्शन , प्रकृति और साहसिक ट्रेकिंग के लिए केदारनाथ पैदल जान एक बेहतर फैसला हैं। प्रकृति प्रेमी और भगवान शिव के अनन्य भक्त नंगे पांव और तो और कई लोग लेट कर भी महीनों मिलो पैदल चल कर अपने इष्ट महादेव के दिव्य दर्शन प्राप्त करते हैं।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय “नेचुरल ” उत्तराखंड
(लेखक अपनी यात्रा को प्रकृति और आस्था से जोड़कर सांझा कर रहे हैं )