राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द का 73वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश

नई दिल्ली

Uttarakhand

73वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश को संबोधित किया। राष्ट्र के नाम संबोधन में रामनाथ कोविंद ने देशवासियों को गणतंत्र दिवस की बधाई दी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा हम सबको एक सूत्र में बांधने वाली भारतीयता के गौरव का यह उत्सव है। सन 1950 में आज ही के दिन हम सब की इस गौरवशाली पहचान को औपचारिक स्वरूप प्राप्त हुआ था। उस दिन, भारत विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र के रूप में स्थापित हुआ और हम, भारत के लोगों ने एक ऐसा संविधान लागू किया जो हमारी सामूहिक चेतना का जीवंत दस्तावेज है। हमारे विविधतापूर्ण और सफल लोकतंत्र की सराहना पूरी दुनिया में की जाती है। हर साल गणतंत्र दिवस के दिन हम अपने गतिशील लोकतन्त्र तथा राष्ट्रीय एकता की भावना का उत्सव मनाते हैं। महामारी के कारण इस वर्ष के उत्सव में धूम-धाम भले ही कुछ कम हो परंतु हमारी भावना हमेशा की तरह सशक्त है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा गणतन्त्र दिवस का यह दिन उन महानायकों को याद करने का अवसर भी है, जिन्होंने स्वराज के सपने को साकार करने के लिए अतुलनीय साहस का परिचय दिया तथा उसके लिए देशवासियों में संघर्ष करने का उत्साह जगाया। दो दिन पहले, 23 जनवरी को हम सभी देशवासियों ने ‘जय-हिन्द’ का उद्घोष करने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती पर उनका पुण्य स्मरण किया है। स्वाधीनता के लिए उनकी ललक और भारत को गौरवशाली बनाने की उनकी महत्वाकांक्षा हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा हम अत्यंत सौभाग्यशाली हैं कि हमारे संविधान का निर्माण करने वाली सभा में उस दौर की सर्वश्रेष्ठ विभूतियों का प्रतिनिधित्व था। वे लोग हमारे महान स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख ध्वज-वाहक थे। लंबे अंतराल के बाद, भारत की राष्ट्रीय चेतना का पुनर्जागरण हो रहा था। इस प्रकार, वे असाधारण महिलाएं और पुरुष एक नई जागृति के अग्रदूत की भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने संविधान के प्रारूप के प्रत्येक अनुच्छेद, वाक्य और शब्द पर, सामान्य जन-मानस के हित में, विस्तृत चर्चा की। वह विचार-मंथन लगभग तीन वर्ष तक चला। अंततः, डॉक्टर बाबासाहब आम्बेडकर ने प्रारूप समिति के अध्यक्ष की हैसियत से, संविधान को आधिकारिक स्वरूप प्रदान किया। और वह हमारा आधारभूत ग्रंथ बन गया।

यद्यपि हमारे संविधान का कलेवर विस्तृत है क्योंकि उसमें, राज्य के काम-काज की व्यवस्था का भी विवरण है। लेकिन संविधान की संक्षिप्त प्रस्तावना में लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मार्गदर्शक सिद्धांत, सार-गर्भित रूप से उल्लिखित हैं। इन आदर्शों से उस ठोस आधारशिला का निर्माण हुआ है जिस पर हमारा भव्य गणतंत्र मजबूती से खड़ा है। इन्हीं जीवन-मूल्यों में हमारी सामूहिक विरासत भी परिलक्षित होती है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा भारत का संविधान 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया। उस दिन को हम संविधान दिवस के रूप में मनाते हैं। उसके दो महीने बाद 26 जनवरी, 1950 से हमारा संविधान पूर्णतः प्रभावी हुआ। ऐसा सन 1930 के उस दिन को यादगार बनाने के लिए किया गया था जिस दिन भारतवासियों ने पूरी आजादी हासिल करने का संकल्प लिया था। सन 1930 से 1947 तक, हर साल 26 जनवरी को ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ के रूप में मनाया जाता था, अतः यह तय किया गया कि उसी दिन से संविधान को पूर्णत: प्रभावी बनाया जाए।

सन 1930 में महात्मा गांधी ने देशवासियों को ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ मनाने का तरीका समझाया था। उन्होंने कहा था :“… चूंकि हम अपने ध्येय को अहिंसात्मक और सच्चे उपायों से ही प्राप्त करना चाहते हैं, और यह काम हम केवल आत्म-शुद्धि के द्वारा ही कर सकते हैं, इसलिए हमें चाहिए कि उस दिन हम अपना सारा समय यथाशक्ति कोई रचनात्मक कार्य करने में बिताएं।”

यथाशक्ति रचनात्मक कार्य करने का गांधीजी का यह उपदेश सदैव प्रासंगिक रहेगा। उनकी इच्छा के अनुसार गणतंत्र दिवस का उत्सव मनाने के दिन और उसके बाद भी, हम सब की सोच और कार्यों में रचनात्मकता होनी चाहिए। गांधीजी चाहते थे कि हम अपने भीतर झांक कर देखें, आत्म-निरीक्षण करें और बेहतर इंसान बनने का प्रयास करें, और उसके बाद बाहर भी देखें, लोगों के साथ सहयोग करें और एक बेहतर भारत तथा बेहतर विश्व के निर्माण में अपना योगदान करें।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा महामारी का प्रभाव अभी भी व्यापक स्तर पर बना हुआ है, अतः हमें सतर्क रहना चाहिए और अपने बचाव में तनिक भी ढील नहीं देनी चाहिए। हमने अब तक जो सावधानियां बरती हैं, उन्हें जारी रखना है। मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना कोविड-अनुरूप व्यवहार के अनिवार्य अंग रहे हैं। कोविड महामारी के खिलाफ लड़ाई में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा बताई गई सावधानियों का पालन करना आज हर देशवासी का राष्ट्र-धर्म बन गया है। यह राष्ट्र-धर्म हमें तब तक निभाना ही है, जब तक यह संकट दूर नहीं हो जाता।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा हाल के महीनों में, हमारे देशवासियों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिबद्धता और कर्मठता से राष्ट्र और समाज को मजबूती प्रदान करने वाले अनेक उल्लेखनीय उदाहरण मुझे देखने को मिले हैं। उनमें से मैं केवल दो उदाहरणों का उल्लेख करूंगा। भारतीय नौसेना और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड की समर्पित टीमों ने स्वदेशी व अति-आधुनिक विमानवाहक पोत ‘आई.ए.सी.-विक्रांत’ का निर्माण किया है जिसे हमारी नौसेना में शामिल किया जाना है। ऐसी आधुनिक सैन्य क्षमताओं के बल पर, अब भारत की गणना विश्व के प्रमुख नौसेना-शक्ति-सम्पन्न देशों में की जाती है। यह रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होने का एक प्रभावशाली उदाहरण है। इससे हटकर एक विशेष अनुभव मुझे बहुत हृदय-स्पर्शी लगा। हरियाणा के भिवानी जिले के सुई नामक गांव में उस गांव से निकले कुछ प्रबुद्ध नागरिकों ने संवेदनशीलता और कर्मठता का परिचय देते हुए ‘स्व-प्रेरित आदर्श ग्राम योजना’ के तहत अपने गांव का कायाकल्प कर दिया है। अपने गांव यानि अपनी मातृभूमि के प्रति लगाव और कृतज्ञता का यह एक अनुकरणीय उदाहरण है। कृतज्ञ लोगों के हृदय में अपनी जन्मभूमि के प्रति आजीवन ममता और श्रद्धा बनी रहती है। ऐसे उदाहरण से मेरा यह विश्वास दृढ़ होता है कि एक नया भारत उभर रहा है – सशक्त भारत और संवेदनशील भारत। मुझे विश्वास है कि इस उदाहरण से प्रेरणा लेकर अन्य सक्षम देशवासी भी अपने-अपने गांव एवं नगर के विकास के लिए योगदान देंगे।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा इस संदर्भ में आप सभी देशवासियों के साथ मैं एक निजी अनुभव साझा करना चाहूंगा। मुझे पिछले वर्ष जून के महीने में कानपुर देहात जिले में स्थित अपनी जन्म-भूमि अर्थात अपने गांव परौंख जाने का सौभाग्य मिला था। वहां पहुंचकर, अपने आप ही, मुझमें अपने गांव की माटी को माथे पर लगाने की भावना जाग उठी क्योंकि मेरी मान्यता है कि अपने गांव की धरती के आशीर्वाद के बल पर ही मैं राष्ट्रपति भवन तक पहुंच सका हूं। मैं विश्व में जहां भी जाता हूं, मेरा गांव और मेरा भारत मेरे हृदय में विद्यमान रहते हैं। भारत के जो लोग अपने परिश्रम और प्रतिभा से जीवन की दौड़ में आगे निकल सके हैं उनसे मेरा अनुरोध है कि अपनी जड़ों को, अपने गांव-कस्बे-शहर को और अपनी माटी को हमेशा याद रखिए। साथ ही, आप सब अपने जन्म-स्थान और देश की जो भी सेवा कर सकते हैं, अवश्य कीजिए। भारत के सभी सफल व्यक्ति यदि अपने-अपने जन्म-स्थान के विकास के लिए निष्ठापूर्वक कार्य करें तो स्थानीय-विकास के आधार पर पूरा देश विकसित हो जाएगा।

सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर के रूप में, मुझे यह उल्लेख करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि यह वर्ष सशस्त्र बलों में महिला सशक्तीकरण की दृष्टि से विशेष  महत्वपूर्ण रहा है। हमारी बेटियों ने परंपरागत सीमाओं को पार किया है, और अब नए क्षेत्रों में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन की सुविधा आरंभ हो गई है। साथ ही, सैनिक स्कूलों तथा सुप्रतिष्ठित नेशनल डिफेंस एकेडमी से महिलाओं के आने का मार्ग प्रशस्त होने से सेनाओं की टैलेंट-पाइपलाइन तो समृद्ध होगी ही, हमारे सशस्त्र बलों को बेहतर जेन्डर बैलेंस का लाभ भी मिलेगा।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा मुझे विश्वास है कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत आज बेहतर स्थिति में है। इक्कीसवीं सदी को जलवायु परिवर्तन के युग के रूप में देखा जा रहा है और भारत ने अक्षय ऊर्जा के लिए अपने साहसिक और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ विश्व-मंच पर नेतृत्व की स्थिति बनाई है। निजी स्तर पर, हम में से प्रत्येक व्यक्ति गांधीजी की सलाह के अनुरूप अपने आसपास के परिवेश को सुधारने में अपना योगदान कर सकता है। भारत ने सदैव समस्त विश्व को एक परिवार ही समझा है। मुझे विश्वास है कि विश्व बंधुत्व की इसी भावना के साथ हमारा देश और समस्त विश्व समुदाय और भी अधिक समरस तथा समृद्ध भविष्य की ओर आगे बढ़ेंगे।

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