हिमशिखर धर्म डेस्क
संकल्प को कर्म में और कर्म के परिणाम को भाग्य-दुर्भाग्य से जोड़ना मनुष्य का सहज स्वभाव है। अधिकांश लोग इसी क्रम से चलते हैं, लेकिन जो आध्यात्मिक होते हैं, वे संकल्प में समर्पण लेकर चलते हैं। उनके लिए कर्म पूजा समान है और वे परिणाम को केवल भाग्य से नहीं जोड़ते। ऐसे लोग भाग्य से एक कदम आगे उठाते हैं और उसे सौभाग्य कहते हैं।
मनुष्य का शरीर मिला है, यह हमारा भाग्य है, लेकिन हम भारत में पैदा हुए, यह सौभाग्य है। भाग्य में तैयारी लगती है, प्रयास करना पड़ते हैं, लेकिन सौभाग्य एक अवसर होता है। कभी-कभी बड़े-बूढ़ों के आशीर्वाद से भी भाग्य सौभाग्य में बदल जाता है। वनवास स्वीकार कर जंगल में जाना राम का भाग्य था, लेकिन जंगल की कठिन यात्रा को उन्होंने इस तरह से अवसर में बदला कि लोकनायक बन गए। यह सौभाग्य था।
आध्यात्मिक व्यक्ति अधिकांश मौकों पर सौभाग्य में जीता है। जैसे ऑपरेशन से पहले मरीज को एनेस्थेसिया दिया जाता है ताकि बेहोशी आ जाए और उसे पीड़ा न हो। ऐसे ही मेडिटेशन यानी ध्यान से मन निष्क्रिय हो जाता है और उसके बाद हम अपने अस्तित्व और व्यक्तित्व के साथ वह कर सकते हैं, जो करना चाहते हैं। यही सौभाग्य होगा। इस दौर में जब हम सब एक कठिन समय से गुजर रहे हैं, अपने भाग्य को सौभाग्य में बदलने की तैयारी रखिए।