पंडित उदय शंकर भट्ट
बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार होली इस बार 17 और 18 मार्च को मनाया जाएगा। बृहस्पतिवार 17 मार्च को होलिका दहन और शुक्रवार 18 मार्च को रंगों की होली खेली जाएगी, लेकिन इस साल 17 मार्च को होलिका दहन के समय भद्रा का साया रहेगा। ऐसे में शास्त्रानुसार रात नौ बजकर पांच मिनट से 10.15 मिनट तक भद्रा पुच्छ काल के मुहूर्त में होलिका दहन किया जा सकता है। माना जाता है कि पुच्छ काल में भद्रा का प्रभाव कम हो जाता है।
रंगों का त्योहार होली हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन बाद मनाया जाता है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार होली को साल की शुरुआत के बाद पड़ने वाला पहला बड़ा त्योहार कहा जाता है। होली का त्योहार होलिका दहन के साथ शुरू होता है, फिर इसके अगले दिन रंग-गुलाल के साथ होली खेली जाती है। इस बार होलिका दहन 17 मार्च 2022 को है फिर उसके एक दिन बाद 18 मार्च को होली खेली जाएगी। लेकिन 17 मार्च को होलिका दहन पर भद्रा का साया रहेगा। दरअसल, भद्रा को विघ्नकारक और शुभ कार्य में निषेध माना जाता है। होलिका दहन के समय को लेकर दुविधा है। ऐसे में शास्त्रानुसार रात को नौ बजे के बाद भद्रा काल के बाद ही होलिका दहन किया जाना मंगलकारी होगा। वहीं 18 मार्च को रंगों की होली का शुभ पर्व मनाया जाएगा। भद्रा काल में शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं।
रात 9.5 मिनट से 10.15 मिनट तक भद्रा पुच्छ काल में रहेगी। माना जाता है कि पुच्छ काल में भद्रा का प्रभाव कम हो जाता है। ऐसे में इस दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। होलिका की अग्नि में गाय का गोबर, गाय का घी और अन्य हवन सामग्री का दहन किया जाना चाहिए।
होलिका दहन का पौराणिक महत्व
वर्षों पूर्व पृथ्वी पर हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्याचारी राजा था। उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया कि ईश्वर की आराधना न करके उसकी पूजा की जाए। वहीं उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को सबक सिखाने के लिए अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त कर चुकी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठाकर अग्नि के हवाले कर दिया। इसमें होलिका भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद की रक्षा हुई। तभी से हम बुराइयों और पाप के अंत के रूप में होलिका का दहन करते हैं।
क्या कहता है शास्त्र
जिस दिन प्रदोष काल में पूर्णिमा होती है उसी दिन होलिका दहन किया जाता है। भद्रा आधी रात के बाद भी है इस कारण भद्रा के पुच्छ काल में होलिका दहन किया जाना उपयुक्त है। धर्म सिन्धु के अनुसार —
सा प्रदोषव्यापिनी भद्रारहित ग्राह्या ।
भले ही प्रदोष काल भद्रामुख से युक्त है, परन्तु पुच्छ काल में होलिका दहन करना उचित है, कतिपय मनीषी प्रदोषकाल में भी होलिका दहन करवा सकते हैं परन्तु संदिग्ध पर्वो पर विशेष लोकाचार का ध्यान रखना भी जरूरी है और निशीथ काल में भद्रा का मुख काल है। (भद्रायां द्वे न कत्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा) इस स्थिति मैं भद्रापुच्छ में (होलिकादहन)को शुभ मानते हैं। धर्मशास्त्रीयों ने निर्देश भी दिया है भद्रापुच्छे जयः।भद्रापुच्छकाल इस दिन (17मार्च2022को) 9 बजकर 5 मिनट से 10 बजकर 13 मिनट के मध्य रहैगा। इसी काल (भद्रापुच्छकाल ) के मध्य आप सभी को होलिका दहन सम्पन्न करना चाहिए।
इसलिए माना जाता है भद्रा को अशुभ
पुराणों में वर्णन मिलता है कि भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन है। भद्रा का स्वभाव शनिदेव की तरह ही है. ये भी कोध्री स्वभाव की हैं। इसलिए इन्हें नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने काल गणना में एक प्रमुख अंग में विष्टि करण को जगह दी है। ऐसा माना जाता है कि भद्रा हर समय तीनों लोक का भ्रमण करती रहती हैं। इसलिए जब वे पृथ्वी पर होती हैं, तो किसी भी तरह का शुभ कार्य करने की मनाही होती है।