सुप्रभातम्: वीगन होना-पृथ्वी की सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम

जलवायु संकट इस धरा पर जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा है। शाकाहारी होने से निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिलेगी और हमारे प्राकृतिक पर्यावरण को और नुकसान कम होगा। वीगन होना महज़ एक आहारशैली का पालन करना नहीं है, बल्कि पूरी जीवनशैली है। पश्चिमी देशों ख़ासकर अमेरिका, ब्रिटेन में नॉनवेजिटेरियन के शाकाहारी विकल्पों (वीगन फूड) की संख्या बढ़ रही है। वजह है उनका खानपान, जिसमें ज़्यादातर मांस आधारित खाद्य पदार्थ और हाई प्रोसेस्ड फूड शामिल होते हैं। ये आहार उनके शरीर को नुक़सान पहुंचा रहा है, जिसे देखते हुए लोग वीगन डाइट की तरफ़ आकर्षित हो रहे हैं। दूसरी तरफ़ एशियाई देशों की बात करें तो यहां भारत में वीगन होने का चलन देखने को मिल रहा है।


अरविंद कुमार मिश्रा

सालों टेनिस कोर्ट में अपनी बादशाहत कायम रखे वाली विलियम्स बहनों की हेल्थ का राज क्या था? फॉर्मूला वन चैंपियन लुईस हैमिल्टन से हर कोई उनकी फिटनेस का राज जानना चाहता है। माइक टायसन जैसी फुर्ती हर एथलीट चाहता है। इन सबने अपनी फिटनेस के पीछे नॉनवेजिटेरियन के शाकाहारी विकल्पों (वीगन फूड) को अहम बताया है। गूगल ट्रेंड के मुताबिक कोविड महामारी के बाद वीगन फूड सर्च इंजन में सबसे अधिक खोजे जाने वाला टॉपिक रहा।

फूड सप्लाई चेन में नॉनवेजिटेरियन- वेजिटेरियन दोनों खाद्यान्न की अहमियत है। ये हजारों साल से पोषण और आजीविका के आधार हैं। इधर 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के साथ जलवायु में नकारात्मक बदलाव बढ़े हैं। इसका असर खाद्यान्न उत्पादन और उसकी खपत के तौर तरीकों पर पड़ा है। यूएन लगातार नॉनवेजिटेरियन फूड पर जरूरत से अधिक निर्भरता से इकोसिस्टम पर पड़ रहे गैर जरूरी दबाव पर आगाह कर रहा है।

यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम के मुताबिक नॉनवेजिटेरियन फूड की बढ़ती खपत से घास मैदान, ओजोन परत, जंगल, मिट्टी और समुद्री जल को बेतहाशा नुकसान पहुंचा है। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 14.5% हिस्सेदारी पशुओं से मिलने वाली खाने-पीने की चीजों के उत्पादन से जुड़ी है। दुनिया के कुल चरागाह को 15% मवेशियों द्वारा उपयोग में लाया जाता है। इससे जैव विविधता को खतरा पैदा हो रहा है। यूएन की रिपोर्ट कहती है कि इंसानों में होने वाले 60% संक्रमण पशु जनित हैं।

जलवायु संकट की चुनौती के बीच नॉनवेज के शाकाहारी विकल्पों की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि को अच्छा संकेत माना जा रहा है। वीगन फूड की इस ताकत को उपभोक्ता, बाजार और सरकारें समझ रही हैं। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक वनस्पतियों पर आधारित खाद्य पदार्थों की मांग 20% सालाना की दर से बढ़ रही है। नॉनवेज के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे वीगन फूड का बाजार अकेले भारत में 2030 तक 6,824 करोड़ रुपए का होगा।

देश में 70% लोग नॉन वेजिटेरियन हैं। ऐसे में हमें फूड सस्टेनेबिलिटी के लिए नॉनवेज के वेज विकल्पों को बढ़ाना होगा। यह हमारी फूड सिक्योरिटी के साथ शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों के लिए जरूरी है। वनस्पतियों पर आधारित खाद्य पदार्थ प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, विटामिन डी, ओमेगा-3, फाइबर और एंटी आक्सीडेंट के अच्छे स्रोत हैं।

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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक देश की 75% आबादी प्रोटीन की कमी से जूझ रही है। ऐसे में वनस्पतियों से तैयार फूड से स्मार्ट प्रोटीन हासिल कर हम कुपोषण की जंग आसान बना सकते हैं। वीगन फूड को लेकर भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक अनुकूलता हमारे पक्ष में है।

वहीं फूड सिक्योरिटी का लक्ष्य भी पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली से हासिल होगा। इसके लिए जरूरी है कि फूड प्रोडक्शन और खाने-पीने की आदतें प्रकृति के अनुकूल हों। यदि ऐसा करने में हम सफल हुए तो सेहत के साथ धरती को भी सुंदर बनाएंगे।

फूड सिक्योरिटी अब सिर्फ पेट भरने का मुद्दा नहीं है। अफ्रीका के कई देश हंगर इंडेक्स से बाहर निकलने को बेताब हैं, वहीं अमेरिका से लेकर पूरा यूरोप न्यूट्रिशनल डाइट के ठोस विकल्प तलाश रहा है।

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