हिमशिखर ब्यूरो
देहरादून
आखिर पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली. इसके साथ ही उन्होंने अपनी पहली परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली. इससे पहले कहा जा रहा था कि पार्टी के पुराने दिग्गजों ने उनके खिलाफ बगावत का झंडा उठा लिया है और वे बड़ी संख्या में नाराज विधायकों को लेकर दिल्ली कूच कर रहे हैं. लेकिन शाम होते-होते सब कुछ ठीक-ठाक होता नजर आया और न सिर्फ मुख्यमंत्री ने शपथ ली बल्कि पुराने मंत्रियों ने भी उनके साथ शपथ ली. ऐसा लगा कि जो उबाल सुबह दिखाई पड़ रहा था, अब ठंडा हो गया है.
सबसे बड़ी बात यह है कि पहले दिन कुछ लोगों को लगा कि धामी यह सब नहीं संभाल पायेंगे, लेकिन पूरी विनम्रता के साथ वे सुबह से ही पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं के पास स्वयं गए और उनका आशीर्वाद लिया. जो गुस्से में थे, वे शांत हो गए. इस तरह वे नई और पुरानी पीढी के बीच संतुलन बिठाने में कामयाब हुए.
दूसरी बात ये कि पुराने नेता शांत न होते तो और क्या कर लेते. पार्टी इतनी जल्दी अपना फैसला बदलती नहीं, यह कोई नौसिखिया भी कह सकता है. जो बड़े नेता कांग्रेस से आये थे, वे वापस तो कांग्रेस में तो जा नहीं सकते. यहाँ जो मिल रहा है, वहाँ वो भी नहीं मिलता. जहां तक पार्टी तोड़ कर अलग होने का सवाल है, यह भाजपा जैसे काडर आधारित पार्टियों में संभव नहीं होता. इसलिए उनके लिए मान-मनौवल के साथ पार्टी में बने रहना ही उचित था और है. बात रही मुख्यमंत्री पद पाने की तो क्या गारंटी है कि उनके बनने पर इससे ज्यादा हंगामा न हो.
इसलिए इस वक्त, जब भाजपा के लिए सिर्फ सात महीने ही बच गए हैं, पूरी पार्टी और सरकार को एकजुट होकर चुनाव में उतरने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है. निश्चय ही पुष्कर सिंह इस काम में कामयाब होने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति नजर आ रहे हैं.