पुण्य स्मरण: स्वामी गोविंद प्रकाश जी महाराज की 45वीं पुण्यतिथि पर किए भाव पुष्प समर्पित

नई दिल्ली/देहरादून

Uttarakhand

अखिल भारतीय स्वामी रामतीर्थ मिशन, देहरादून के प्रथम परमाध्यक्ष स्वामी गोविंद प्रकाश जी महाराज की 45वीं पुण्यतिथि इस वर्ष 19 सितंबर को राजपुर आश्रम, देहरादून और दिल्ली मिशन की रानीबाग शाखा में भाव एवं श्रद्धामय वातावरण में सम्पन्न हुई।

विदित हो कि मिशन के संस्थापक स्वामी हरिॐ जी महाराज के 1955 में ब्रह्मलीन होने के बाद स्वामी गोविंद प्रकाश जी महाराज को परमाध्यक्ष के पद पर प्रतिष्ठित किया गया था।

राजपुर आश्रम में स्वामी जी की समाधि के पूजन के साथ यह कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। हवन आदि धार्मिक कृत्यों के बाद परंपरा के अनुसार प्रार्थना और भावपूर्ण भजनों का गान हुआ। अंत में रामप्रेमियों ने स्वामी जी से जुड़े अपने संस्मरणों के माध्यम से उनका पुण्य स्मरण किया। स्वामी जी अक्सर कहा करते थे –

अपने दिल में डूबकर

पा जा सुरागे ज़िन्दगी

तू अगर मेरा नहीं बनता

न बन,अपना तो बन।

दिल्ली मिशन ने भी पूज्य- चरण स्वामी गोविंद प्रकाश जी महाराज को रानीबाग स्थित गोविंद धाम में अपने भावपुष्प समर्पित किए।

हवन के बाद मातृमंडली ने स्वामी राम की ग़ज़लों का सुमधुर गान किया, गुरु महिमा के भजनों से समूचे वातावरण को श्रद्धा से भरपूर कर दिया।

श्री गुरु गंगेश्वर धाम से पधारे स्वामी आनंद मुनि जी ने अपने प्रवचन में कहा कि महापुरुषों का जीवन उनके उपदेशों का ही मानो साकार रूप होता है। इतना ही नहीं कई बार तो वह बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह जाते हैं।

मुनि जी ने कहा कि यदि घर के बड़े चरित्रवान होंगे तो आने वाली पीढ़ी का जीवन भी मर्यादित होगा।

इस अवसर पर उपस्थित काका हरिओम् का कहना था कि किसी महान संत और व्यक्तित्व में तथा संत में जो भी गुण होने चाहिए वह सभी थे पूज्य स्वामी जी में।

स्वामी जी ने जीवन भर तरह-तरह की चुनौती को स्वीकार किया। उन्होंने हमेशा अपने उन आचार्यों का सम्मान किया, जिनके कारण उन्हें वेदान्ताचार्य की परीक्षा में तीन स्वर्ण पदक प्राप्त हुए थे। किसी सभा में उन्हें यदि 5 मिनट का भी समय दिया जाता तो उसमें वह अपनी बात कह देते थे।

स्वामी जी सबके थे और सब उनके।

काका जी का कहना था कि-मुझे नहीं लगता कि उन्होंने कभी किसी का खंडन किया हो। हमेशा उन्होंने समन्वय को ही अपनाया। इसीलिए वह सच्चे मायने में अजातशत्रु थे। ऐसे महान व्यक्तित्व के श्रीचरणों में कोटिश: नमन। हम सदैव कृतज्ञ हैं उनके प्रति।

इस कार्यक्रम का संचालन किया श्री राम प्रकाश ढींगरा ने।

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