सुप्रभातम्:धर्म और सत्य की हमेशा विजय होती है

हिमशिखर खबर

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ज्ञान, जानकारी और समझ, तीनों ठीक से मिल जाएं तब सीखना आरंभ होता है। और, यदि सीखना न हुआ तो ये तीनों बातें जीवन को सिर्फ बाहर से ही समृद्ध, सुविधाजनक बना सकेंगी। भीतर का रूपांतरण सीखने से ही होगा। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं हनुमानजी, जो सदैव सीखने को तैयार रहते थे। लंका जाते समय उन्होंने एक बात सीख ली थी कि वहां सब बड़े-बड़े अपराधी मिलेंगे। सबसे बड़ा दुराचारी तो रावण है ही।

तो विचार किया था कि छोटे अपराधियों पर हाथ नहीं डालूंगा। सीधे रावण को ही पकडूंगा। हनुमानजी की शैली कुछ अलग थी। उनका काम सीताजी को सूचना देने के बाद पूरा हो गया था, लेकिन उनको तो सबसे बड़े अपराधी तक पहुंचना था।

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इसीलिए अशोक वाटिका उजाड़ी, रावण के बेटे को मारा और फिर बंधकर उस तक पहुंचे। ध्यान रखिए, वे ले जाए नहीं, बल्कि स्वेच्छा से गए थे, क्योंकि बताना चाहते थे कि यदि बड़ों पर हाथ नहीं डालोगे, तो जीवनभर छोटे अपराधियों से खेलते रहना पड़ेगा। बड़े और पनपते रहेंगे। इसीलिए रावण के सामने उसकी लंका जलाई और हमें संदेश दिया कि सत्य की विजय बड़ी करना हो तो शिकंजा बड़े अपराधियों पर भी कसना पड़ेगा।

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