श्रीमद्भागवत कथा की सार्थकता जब ही सिध्द होती है जब इसे हम अपने जीवन में व्यवहार में धारण कर निरंतर हरि स्मरण करते हुए अपने जीवन को आनंदमय, मंगलमय बनाकर अपना आत्म कल्याण करें। अन्यथा यह कथा केवल ‘मनोरंजन‘, कानों के रस तक ही सीमित रह जाएगी। भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शांति व मुक्ति मिलती है। श्रीमद भागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है। जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं, कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जाग्रत हो जाता है। कथा कल्पवृक्ष के समान है, जिससे सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है।
स्वामी राम किशोर दास जी महाराज
महामंडलेश्वर, श्री पंच दिगंबर अनि अखाड़ा
आज की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास पूजा पाठ के लिए समय का अभाव हो गया है, जो कि सही नहीं है। मानव जीवन में भागवत कथा का बड़ा ही महत्व है। कथा सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा मन का शुद्धिकरण होता है। प्रत्येक मनुष्य को भागवत की संपूर्ण कथा का श्रवण करना चाहिए।भागवत से भक्ति एवं भक्ति से शक्ति की प्राप्ति होती है तथा जन्म जन्मांतर के सारे विकार नष्ट होते हैं। शुद्धिकरण होता है। प्रतिदिन हमें अपनी व्यस्त दिनचर्या से प्रभु भक्ति के लिए समय अवश्य निकालना चाहिए। भागवत कथा सुनने से जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रृंगी अपने पिता ऋषि शमीक के आश्रम में अन्य ऋषिकुमारों के साथ रहकर अध्ययन कर रहे थे। एक दिन की बात है कि सब विद्यार्थी जंगल गए हुए थे और आश्रम में शमीक ऋषि समाधि में अकेले बैठे हुए थे। तभी अचानक वहां प्यास से व्याकुल राजा परीक्षित पहुंचे। वो प्यास से बहुत व्याकुल थे और आश्रम में पानी खोजने लगे। जब उन्हें कहीं से पानी नहीं मिला तो उन्होंने समाधि में बैठे शमीक ऋषि को प्रणाम कर विनम्रता से कहा- मुझे प्यास लगी है, कृपा मुझे पानी दीजिए। राजा के दो-तीन बार कहने पर भी ऋषि न उन्हें कोई जवाब नहीं दिया, उन्हें बहुत बुरा लगा और तो और उन्हें लगा कि ऋषि ध्यान का ढोंग कर रहे हैं। क्रोध में आकर राजा परीक्षित ने एक मरा सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से चले गए परंतु उन्हें आश्रम से जाते हुए एक ऋषि कुमार ने देख लिया और जाकर श्रृंगी को इसके बारे में खबर दी। सभी राजा के स्वागत के लिए आश्रम पहुंचे। परंतु जब तक सब पहुंचे राजा वहां से जा चुके थे और ध्यान में बैठे शमीक ऋषि के गले में मरा सांप पड़ा था। ये देखकर ऋषि श्रृंगी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने हाथ में पानी लेकर परीक्षित को शाप दे दिया कि मेरे पिता का अपमान करने वाले राजा परीक्षित की मृत्यु आज से सातवें दिन नागराज तक्षक के काटने से होगी। इसके बाद ऋषिकुमारों ने ऋषि शमीक के गले से सांप निकाला जिस बीच शमीक की समाधि टूट गई। शमीक ऋषि ने पूछा, क्या बात है? तब श्रृंगी ने सारी बात बताई।
शमीक बोले, बेटा, राजा परीक्षित के साधारण अपराध के लिए तुमने जो सर्पदंश से मृत्यु का भयंकर शाप दिया है, यह बहुत बुरा है। हमें यह शोभा नहीं देता। इसका मतलब ये है कि अभी तुझे ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ। अब तू भगवान की शरण जा और अपने अपराध की क्षमा मांग। राजा परीक्षित को राजभवन पहुंचते-पहुंचते अपनी गलती का अहसास हो चुका था। थोड़ी देर बाद शमीक ऋषि का एक शिष्य राजा परीक्षित के पास पहुंचा और उसने कहा, राजन, ब्रह्मसमाधि में लीन शमीक ऋषि की ओर से आपका उचित सत्कार नहीं हो पाया, जिसका उन्हें बहुत दुख है। किंतु, आपने बिना सोचे-समझे जो मरे सांप को उनके गले में डाल दिया। इस कारण उनके पुत्र श्रृंगी ने आपको आज से सातवें दिन सांप काटने से मृत्यु का शाप दे दिया है जो असत्य नहीं होगा। इसलिए आप मेरी बात मानें तो सात दिन तक अपना पूरा समय ईश्वर-चिंतन में ताकि आपको मोक्ष मिल सके। ये सुनकर राजा को संतोष हुआ कि मेरे द्वारा हुए अपराध के लिए मुझे उचित दंड मिलेगा। इसके बाद राजा परीक्षित व्यासपुत्र शुकदेव मुनि के पास पहुंचे और उन्हें भागवत कथा सुनाने के लिए कहा। शुकदेवजी ने परीक्षित को सात दिन भागवत-कथा सुनाई। कहा जाता है कि तभी से भागवत सप्ताह सुनने की परंपरा प्रारंभ हुई थी।