22 सालों में उत्तराखंड ने हासिल किए कई मुकाम तो हुए भी नाकाम

उत्तराखंड का आज स्थापना दिवस है और आज से 22 साल पहले राज्य का देश के 27 वें राज्य के तौर पर आज के दिन ही जन्म हुआ था और आज राज्य 23वें साल में प्रवेश कर रहा है। अगर पीछे मुड़कर देखें तो राज्य ने पिछले 22 सालों में तमाम उतार-चढ़ाव और प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है और उसके बावजूद आज राज्य विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।

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हिमशिखर खबर ब्यूरो

हर्षमणि बहुगुण

आज हमारा उत्तराखण्ड 22 साल का पूरा हो गया है। इस सुअवसर पर सभी उत्तराखण्ड वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। नवोदित राज्य ने इन 22 वर्षों में क्या क्या पाया, पाया कम खोया अधिक है? यही विचारणीय है। इस देवभूमि में इसका हिमाच्छादित क्षेत्र भारत का भाल है, मानव जाति का उत्तुंग अभिमान है, देवताओं की तपोभूमि, तीर्थों का अपार भंडार, पूर्वजों की शौर्य गाथा गाता हुआ प्रत्येक कोना हम सब के मान को बढ़ाता है। पुराण वेत्ता व्यास जी ने तथा कविकुल गुरु कालीदास ने यहां का यशोगान कर अपनी कविता कामिनी को अपनी लेखनी से कृतार्थ किया है।

उत्तराखंड ने इन 22 साल में राज्य ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं तो कई ऐसे पहलू भी हैं जिनकी कसक आज भी दूर नहीं हो पाई है। जहां बुनियादी ढांचे के विकास, सड़क-रेल-एयर नेटवर्क के लिहाज से उत्तराखंड तेजी से छलांग लगा रहा है। वहीं रोजगार, पलायन और जंगली जानवरों से सुरक्षा के क्षेत्र में आज भी राज्य अपेक्षित मुकाम हासिल नहीं कर पाया।

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भारत के प्रसिद्ध चार धामों में एक धाम श्री बद्रीनाथ जी यहां अवस्थित हैं। बारह ज्योतिर्लिंगों में भगवान केदारनाथ का धाम यहीं पर है। गंगा, यमुना, अलकनंदा तथा मन्दाकिनी के उद्गमों में गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ व केदारनाथ के भव्य मंदिर श्रृद्धालुओं को बरवस आकृष्ट करते हैं। हिमश्रृंखलाओं में पल्लवित होती अनेकों जड़ी बूटियों के रसों के फलस्वरूप मां गंगा का अमृत सदृश्य जल अनेकानेक रोगों की रामबाण औषधि है। फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब आदि मन भावन पर्यटक स्थल भारतीय जन मानस को आकर्षित करते हैं। आज भी गंगा यमुना का जल भारत के कोने-कोने में पहुंचता है और यहां के श्रृद्धालु अपने अपने सम्पर्क से गंगा जल को प्राप्त भी कर लेते हैं। औषधियों का भण्डार है यह देवभूमि। इस राज्य में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, सम्पूर्ण भारत में उत्तराखंड के व्यक्तियों की अलग पहचान है। ईमानदारी में, बहादुरी में, नेतृत्व शक्ति में, विश्वसनीयता में हम पूरे भारत में प्रथम स्थान पर हैं। परन्तु इन बीते 22 वर्षों में हमने जो कुछ पाना था नहीं पाया है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं।

एक मुख्य कारण तो यह है कि हमारे नायकों ने विकास की सुन्दर नीति निर्धारित नहीं की, न ही हिमाचल प्रदेश की तरह विकास की चाह रखी। आज यहां का नौजवान परिस्थिति के कारण नौकरी की तलाश में दर-दर भटकने के लिए विवश है। जबकि उसे अपने घर पर ही रोजगार उपलब्ध हो सकता है। पर कतिपय कारणों से समुचित व्यवस्था लागू न होने से या आपसी द्वन्द्व के कारण हाथ में आए हुए अवसरों को हमने खोया है। सरकार कोई भी हो उसे सही जानकारी देने का दायित्व यहां की प्रबुद्ध जनता के हाथ में होना था पर जिस क्षेत्र का जो विशेषज्ञ होता है उससे सलाह न लेकर अन्य अनजान व्यक्ति के भरोसे महकमा / विभाग रहते हैं। कृषि के क्षेत्र में कृषि विशेषज्ञ ही समुचित राय दे सकता है, तो अभियंत्रण के सन्दर्भ में कोई अच्छा अभियन्ता ही सलाहकार बन सकता है। रोग का उपचार सुप्रशिक्षित चिकित्सक ही करेगा, शिक्षा विशेषज्ञ देश की उन्नति में सहायक बन सकता है। यह सत्य है कि ऐसे विशेषज्ञों से सलाह ली जाती होगी परन्तु एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है। क्या क्या उपाय सरकार द्वारा नहीं किए गए, सभी देश वासियों को सुशिक्षित करने के लिए मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना उसी का एक जीता जागता उदाहरण है परन्तु बिचौलियों या यूं कहें कि लक्ष्मी पुत्रों ने अपनी घुस पैठ से उस पवित्र स्थान को भी दूषण से मुक्त नहीं होने दिया। गांव, शहर के विकास में असहायक उसी क्षेत्र के कुछ लोग रहे हैं। राज्य के महकमें निकम्मे हो गए हैं, राज्य कर्मचारी भय मुक्त हैं, सामान्य जनता के पत्रों पर विचार जैसा कि उनकी कार्यशैली में है ही नहीं, कमीशन खोर विभागों में अराजकता, मनमानी यहां तक कि सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत पूछे गए प्रश्नों का समुचित उत्तर तक नहीं दिया जाता है ऐसा प्रतीत होता है कि इस अधिनियम से उन्हें कोई भय नहीं है?

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आज हमें दया आती है स्वयं पर कि लगभग 53204 वर्ग किलोमीटर में फैला उत्तराखण्ड जितना विकास होना चाहिए था उतना नहीं कर पाया है। किसी व्यक्ति विशेष पर आरोप करना समीचीन नहीं होगा, पर मूल्यांकन करने की आवश्यकता तो बनती ही है। ‘यत्ने कृते यदि न सिद्ध्यति कोऽत्र दोष:’ मेहनत करने के बाद भी यदि कार्य सिद्ध नहीं होता है तो कहां कमी रही? यह विचारणीय है। शिक्षा का प्रसार प्रचार विद्यालय खोलने से नहीं बल्कि संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने से होगा और शिक्षा की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। अस्पताल खोलने से रोग नहीं भागेगा, अपितु चिकित्सकों के होने से उपचार सम्भव होगा। अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह समझना चाहिए। तो आईए आज उत्तराखंड के तेईसवें जन्म दिवस पर इस प्रदेश की खुशहाली के लिए कुछ करने का संकल्प लें जिससे इस नवोदित राज्य का भला हो सके। यह संकल्प भी लें कि यदि हम अपने राज्य का हित नहीं कर सकते हैं तो अहित से तो अवश्य ही बचा सकते हैं। सही माने में उत्तराखण्ड दिवस मनाने या खुशियां बांटने का लाभ तभी मिलेगा जब हम उसका हित करेंगे या चाहेंगे। गुरु नानक देव जी ने कहा था कि — ‘मनुष्य को किसी भी लोभ को त्यागकर अपने हाथों से परिश्रम कर एवं न्यायोचित पद्धति से धन एकत्रित करना चाहिए।’ तभी हम अपने देश का हित कर सकते हैैं। अपना हित तो हर मानव करता है पर समाज का हितैषी तो कोई मनीषी ही हो सकता है। पर आज राज्य सरकार में सम्मिलित कुछ राजनेता नेतृत्व का दुरुपयोग कर घुसपैठ की तरह अपने चहेतों को नौकरियां बांट कर/ देकर, सुशिक्षित नव युवकों को बेरोजगारी की पंक्ति में खड़े होने के लिए बिबस कर रहे हैं, यह कुत्सित प्रयास विगत कुछ वर्षों से किया जा रहा है। आज के लिए इतना ही प्रर्याप्त होगा। विचार करें! जय देव भूमि उत्तराखंड, जय हिन्द, वन्देमातरम्।

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