सुप्रभातम्: मृत्यु हमारी शत्रु नहीं, मित्र है

शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है। मृत्यु के बाद शरीर को मुर्दा कहा जाता है लेकिन आत्मा कभी मरती नहीं है। वह अमर है। शरीर को इंसान सजाता है फिर भी उसका अस्तित्व नहीं रहता जबकि आत्मा अमर है फिर भी इंसान उसके प्रति गंभीर नहीं रहता। 

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

प्रत्येक मनुष्य समयानुसार अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है क्योंकि जीवन नश्वर है। इसलिए मृत्यु से डरना नहीं चाहिए बल्कि जीवन में ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे उसे बाद में भी याद रखा जाए। उसकी मृत्यु व्यर्थ न जाए।

वास्तव में मृत्यु एक निद्रा है-एक गहन चिर निद्रा। इस रूप में वह हमारी सच्ची मित्र है। यह नए जीवन को प्राप्त करने के लिए उसी प्रकार आवश्यक है, जिस प्रकार दिन भर की थकान के बाद रात्रि में सोना। यदि रात्रि में हम न सोएं तो दूसरे दिन नयी ताज़गी, नयी स्फूर्ति, और नयी प्रफुल्लता प्राप्त नहीं होगी। जिस प्रकार से दिनभर के मानसिक और शारीरिक श्रम के बाद रात्रि में नींद आवश्यक है, उसी प्रकार जीवनभर मानसिक, शारीरिक श्रम और संघर्ष से जूझने के बाद मृत्युरूपी महानिद्रा आवश्यक है। महानिद्रा से जागने के बाद मानव को अपना पुराना शरीर और पुराना जीवन छूटने के बाद नया शरीर और नया जीवन उपलव्ध हो चुका रहता है।

इस ब्रह्माण्ड की दृष्टि से अति मूल्यवान है मानव शरीर और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है अच्छे कुल और आभिजात्य वर्ग में जन्म लेना और स्वस्थ, सुन्दर और आकर्षक व्यक्तित्व का शरीर प्राप्त करना। हमारा शरीर भौतिक है और एक प्रकार से यह एक प्राकृतिक यंत्र है। जब तक है, तब तक है। एक- न-एक दिन प्रकृति में लीन होना ही है उसको। शरीर के अस्तित्व के साथ संसार का अस्तित्व जुड़ा हुआ है। दोनों के अस्तित्वों को एक दूसरे से मृत्यु अलग करती है। जैसे एक डॉक्टर शरीर के किसी अंग विशेष को जो रोगग्रस्त है, शरीर के अस्तित्व को बचाने के लिए शरीर से अपरिहार्य रूप से अलग कर देता है, उसी प्रकार मृत्यु भी एक प्रकार से मानव शरीर के लिए शल्य चिकित्सा है। मृत्यु संसार की सर्वश्रेष्ठ शल्यक्रिया है। मृत्यु का नाम सुनकर मानव तो क्या संसार का प्रत्येक जीव-जन्तु घबरा जाता है। परन्तु वास्तव में यदि देखा जाय तो मृत्यु हमारी शत्रु नहीं, मित्र है। मृत्यु से हमें घबराना नहीं चाहिए।

अपरिहार्य है मृत्यु
भला उससे क्या डरना
हर हाल में हों अच्छे कर्म
शुभ कर्मों से क्यों बचना
बचना है तो बचो बुराई से
उसे ग्रहण क्या करना।

इस पथ के कंटक हैं
विश्वासघात और धोखा
फिर भी श्रेष्ठ का चयन करें हम
हमको किसने रोका।

बहता पानी रुकता नहीं
शुद्ध भी है कहलाता
ऐसे ही पवित्र बनें हम
हो मानवता से नाता।

मरने पर भी याद करे दुनिया
कुछ ऐसा कर जाएं
हमें याद कर रोएं सब
सबकी आंखें नम कर जाएं।

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