सुप्रभातम्: प्रभु श्री राम ने बताया भिक्षा का मर्म…

हिमशिखर खबर ब्यूरो

Uttarakhand

सुबह मेघनाथ से लक्ष्मण का अंतिम युद्ध होने वाला था। वह मेघनाथ जो अब तक अविजित था, जिसकी भुजाओं के बल पर रावण युद्ध कर रहा था, अप्रितम योद्धा ! जिसके पास सभी दिव्यास्त्र थे।

सुबह लक्ष्मण जी, भगवान राम से आशीर्वाद लेने गए, उस समय भगवान राम पूजा कर रहे थे।

पूजा समाप्ति के पश्चात प्रभु श्री राम ने हनुमान जी से पूछा अभी कितना समय है युद्ध होने में।

हनुमान जी ने कहा… प्रभु, अभी कुछ समय है। यह तो प्रातःकाल है।

भगवान राम ने लक्ष्मण जी से कहा…..यह पात्र लो और भिक्षा मांगकर लाओ, जो पहला व्यक्ति मिले उसी से कुछ अन्न माँग लेना।

सभी बड़े आश्चर्य में पड़ गए, आशीर्वाद की जगह भिक्षा। लेकिन लक्ष्मण जी को जाना ही था।

लक्ष्मण जी जब भिक्षा मांगने के लिए निकले तो उन्हें सबसे पहले रावण का एक सैनिक मिल गया। आज्ञा अनुसार मांगना ही था। यदि भगवान की आज्ञा न होती तो उस सैनिक को लक्ष्मण जी वहीं मार देते, परंतु वे उससे भिक्षा मांगते हैं।

सैनिक ने अपनी रसद से लक्ष्मण जी को कुछ अन्न दे दिए।

लक्ष्मण जी ने वह अन्न लेकर भगवान राम को अर्पित कर दिए।

तत्पश्चात भगवान राम ने उन्हें आशीर्वाद दिया…विजयी भवः।

Uttarakhand

भिक्षा का मर्म किसी की समझ नहीं आया। कोई पूछ भी नहीं सकता था, फिर भी यह प्रश्न तो रह ही गया।

फ़िर भीषण युद्ध हुआ।

अंत मे मेघनाथ ने त्रिलोक की अंतिम शक्तियों को लक्ष्मण जी पर चलाया, ब्रह्मास्त्र, पशुपात्र, सुदर्शन चक्र। इन अस्त्रों कि कोई काट न थी।

लक्ष्मण जी ने सिर झुकाकर इन अस्त्रों को प्रणाम किया, सभी अस्त्र उनको आशीर्वाद देकर वापस चले गए।

उसके बाद राम का ध्यान करके लक्ष्मण जी ने मेघनाथ पर बाण चलाया। वह हंसने लगा और उसका सिर कटकर जमीन पर गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई।

उसी दिन सन्ध्याकालीन समय भगवान राम पूजा कर रहे थे, वह प्रश्न तो अब तक रह ही गया था। हनुमान जी ने पूछ लिया। प्रभु वह भिक्षा का मर्म क्या है।

भगवान मुस्कराने लगे, बोले…. मैं लक्ष्मण को जानता हूँ। वह अत्यंत क्रोधी है। लेकिन युद्ध में बहुत ही विन्रमता कि आवश्यकता पड़ती है। विजयी तो वही होता है जो विन्रम हो। मैं जानता था मेघनाथ, ब्रह्मांड की चिंता नहीं करेगा। वह युद्ध जीतने के लिये दिव्यास्त्रों का प्रयोग करेगा।

इन अमोघ शक्तियों के सामने विन्रमता ही काम कर सकती थी। इसलिए मैंने लक्ष्मण को सुबह झुकना बताया! एक वीर शक्तिशाली व्यक्ति जब भिक्षा मांगेगा तो विन्रमता स्वयं प्रवाहित होगी। लक्ष्मण ने मेरे नाम से बाण छोड़ा था। यदि मेघनाथ उस बाण के सामने विन्रमता दिखाता तो मैं भी उसे क्षमा कर देता।

Uttarakhand

भगवान श्रीरामचन्द्र जी एक महान राजा के साथ अद्वितीय सेनापति भी थे। युद्धकाल में विन्रमता शक्ति संचय का भी मार्ग है! वीर पुरुष को शोभा भी देता है।इसलिए किसी भी बड़े धर्म युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए विनम्रता औऱ धैर्य का होना अत्यंत आवश्यक है।

Uttarakhand

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *