कहते हैं भगवान श्री राम का नाम हमेशा माता सीता के साथ ही लेना चाहिए और उसमें भी माता सीता का नाम पहले आना चाहिए। लेकिन जब हम जय श्री राम बोलते हैं, तो क्या उसमें माता सीता का नाम आता है?सनातन धर्म में जीवन की शुरुआत से लेकर जीवन के अंत तक जुड़े रहने वाले राम नाम जयकारे में ‘श्री’ और ‘सिया’ शब्द जुड़ने का क्या होता है महत्व, जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख
- कलियुग में केवल ‘राम नाम’ ही लेना आपका उद्धार कर सकता है
- ‘श्री’ और ‘सिया’ का फर्क
- श्री’ शब्द स्त्रीवाची है और सनातन पंरपरा में पुरूषों से पहले स्त्री को ही स्थान दिया गया है
हिमशिखर धर्म डेस्क
कहते हैं कलियुग में केवल ‘राम’ नाम ही आपका उद्धार कर सकता है। सनातन धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम को तारक मंत्र के नाम से जाना जाता है, जो किसी भी सनातनी व्यक्ति के साथ जन्म से लेकर मृत्यु तक जुड़ा रहता है। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहा जाता है। यानि एक ऐसा सर्वोच्च व्यक्ति जिसने अपने भीतर तमाम तरह की शक्ति और दैवीय गुण मौजूद होने के बाद भी कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नही किया। जिनके राज्य में कभी कोई भी दुखी नहीं रहता था। कई लोग अभिवादन में ‘जय श्री राम’ अथवा ‘जय सियाराम’ कहते हैं। कई लोग ‘सियावर रामचंद्र की जय’ का उदघोष भी करते हैं। लेकिन आजकल कई लोग इस बात की सलाह भी दे रहे को आप जय श्री राम कहने के बजाय जय सिया राम कहें। आखिर ऐसी सलाह देने के पीछे उनका तर्क क्या है और जय श्री राम अथवा जय सिया राम में ‘श्री’ और ‘सिया’ का फर्क क्या है, चलिए जानते हैं।
जिस राम नाम के सुमिरन और जप करने पर जन्म-मरण से मुक्ति या फिर कहें मोक्ष की मान्यता जुड़ी हो, उसे अक्सर वैष्णव परंपरा समेत तमाम सनातनी लोग एक दूसरे का अभिवादन करने के लिए प्रयोग में लाते हैं। राम नाम का पुण्य कमाने के लिए लोग अरसे से नमस्ते या गुड मार्निंग की जगह ‘जय सिया राम’ या फिर ‘राम-राम’ कहते चले आ रहे हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि जिस प्रकार राधा का नाम भगवान श्रीकृष्ण से पहले लिया जाता है अर्थात् ‘राधेकृष्ण’ कहा जाता है, ठीक उसी प्रकार भगवान राम का नाम भी सीता माता के साथ ही लिया जाना सही है और इसलिए वे लोगों को जय सियाराम कहने की सलाह देते हैं क्योंकि उसमें सिया माता सीता को कहा गया है। लेकिन जय श्री राम में भी माता सीता का नाम आता है। ‘श्री’ शब्द माता सीता का ही नाम है। भगवान विष्णु को श्रीपति कहा गया है अर्थात् देवी लक्ष्मी के पति और माता सीता, देवी लक्ष्मी का ही अवतार थीं। इसलिए जय श्रीराम में ‘श्री’ माता सीता के ही संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें ‘श्री का अर्थ ‘श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च’ यानि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी या फिर कहें भगवान राम की पत्नी सीता। वैसे, आपको बता दें कि भारत में किसी भी व्यक्ति के नाम से पहले श्री शब्द का इस्तेमाल उन्हें सम्मान देने के लिए भी किया जाता है। ‘श्री’ शब्द का है अर्थ लक्ष्मी, शक्ति, यश इत्यादि। श्री’ शब्द स्त्रीवाची है और सनातन पंरपरा में पुरूषों से पहले स्त्री को ही स्थान दिया गया है। इसलिये उनके नाम से पहले श्री लगाया जाता है।
नाम के साथ क्यों लगाया जाता है श्री
श्री शब्द का अर्थ यश, लक्ष्मी, कांति, शक्ति होता है। सनातन परंपरा में किसी भी देवी या देवता या फिर व्यक्ति विशेष के नाम के आगे ‘श्री’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसके पीछे उसका आदर, सम्मान, महिमा का गुणगान का भाव निहित है। ‘श्री’ शब्द स्त्रीवाची है और सनातन पंरपरा में पुरूषों से पहले स्त्री को ही स्थान दिया गया है। यही कारण है कि ‘जय सिया राम’, ‘जय श्री राम’ , ‘सियावर राम चंद्र की जय’, ‘पार्वतीपतये नमः’, ‘उमामहेश्वराभ्यां नम:’, कहा जाता है। श्री के साथ भगवान विष्णु के रहने के कारण ही उन्हें श्रीमान या श्रीपति कहा जाता है।
जय सियाराम भक्ति, जाप, भजन के रूप में प्रयुक्त होता है
वैसे कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ‘जय श्री राम’ विजय के संदर्भ में उदघोष किया जाता है। जब भगवान राम, रावण से युद्ध लड़ने जा रहे थे, तो युद्ध के मैदान में जय श्री राम के नारे लगे थे। हीं थीं, इसलिए केवल भगवान राम के नाम पर नारे लगाये गये। जय श्री राम, विजय वाला भाव देता है। वहीं, जय सियाराम में एक प्रकार की सौम्य और सर्वहितकारी भाव है। इसलिए जय सियाराम भक्ति, जाप, भजन के रूप में प्रयुक्त होता है। उनका मानना है कि ‘जय सियाराम’ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के सौम्य व्यक्तित्व और कोमलता का ज्यादा बेहतर तरीके से प्रतिनिधित्वत करता है।