हिमशिखर खबर ब्यूरो
पृथ्वी पर जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित होती है क्योंकि यही भगवान की बनाई सृष्टि का विधान है। जन्म के बाद मृत्यु से क्या आम आदमी, स्वयं भगवान तक नहीं बच पाए। उन्हें भी किसी न किसी बहाने से अपना शरीर त्याग कर परलोक जाना पड़ा है। निश्चित समय पर पृथ्वी पर अपने शरीर को छोड़ना पड़ा है। मान्यता है कि प्राणी की जब जीवनलीला समाप्त हो जाती है तो यमलोक जाने पर भगवान चित्रगुप्त उसके कर्मों का लेखा-जोखा उसके सामने रखते हैं और उसी के अनुसार उसे आगे स्वर्ग या नर्क लोक की अगली यात्रा तय होती है । मान्यता है कि भगवान चित्रगुप्त किसी भी प्राणी के पृथ्वी पर जन्म लेने से लेकर मृत्यु तक उसके कर्मों को अपने पुस्तक में लिखते रहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद जब जीवात्मा यम लोक पहुंचती है, तब वहां कर्मों का बही-खाता लेकर चित्रगुप्त विराजित होते हैं, जो हमारे अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब-किताब रखते हैं। लेकिन, वो चित्रगुप्त किसी दूसरे लोक में नहीं बल्कि हमारे ही साथ होते हैं। ऐसा योगियों का कहना है।
हमारे द्वारा किए अच्छे-बुरे कर्म दिखाकर किए हों या छिपाकर, अंधेरें में किए हों या अकेले में! सभी कर्मों का चित्र बड़े गुप्त तरीके से हमारे चित्त में खिंचता रहता है, गुप्त तरीके से खींचे गए चित्र के कारण इस प्रक्रिया को चित्रगुप्त कहते हैं। भले वो पुण्य कर्म हों या पाप कर्म! ये कार्य बड़े गुप्त तरीके से होता है, जिसका हमें पता ही नहीं लगता। चित्रगुप्त कोई अलग से एक व्यक्ति नहीं, बल्कि सबके साथ एक-एक चित्रगुप्त होता है।
हमारे कर्मों का लेखा-जोखा हमारे चित्त में ऊर्जा के रूप में जमा हो जाता है, जैसे कम्पूटर की छोटी सी चिप में अनंत रिकॉर्ड आ जाते है, जिसमें इस जन्म के साथ-साथ पिछले जन्मों के संस्कार भी इकट्ठा हैं। मृत्यु के समय ये सभी संस्कार उभर कर आ जाते हैं और आने वाले जन्म में योनि, भोग और आयु तय करते हैं। कर्मों के आधार पर चित्रगुप्त नई योनि प्रदान करते हैं।
चित्रगुप्त का उल्लेख गरुड़ पुराण और कई अन्य पौराणिक कथाओं में मिलता है। चित्रगुप्त भगवान को न्याय का देवता माना जाता है क्योंकि वो सभी मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं और मृत्यु के बाद आत्मा के साथ सही न्याय हो, उसके कर्मों के अनुसार उसकी आगे की यात्रा हो, वो इस बात ख्याल रखते हैं। कहते हैं कि जब सृष्टि का निर्माण हुआ, तो भगवान ब्रह्मा ने सभी जीवों की रचना की लेकिन उन जीवों की मृत्यु भी तय थी। इसलिए, जीवित रहते हुए जीव के कर्मों का हिसाब-किताब रखना जरूरी था, ताकि उस आधार पर मृत्यु के बाद की उसकी यात्रा या उसकी सजा तय की जा सके। इसलिए, इस काम के लिए चित्रगुप्त को नियुक्त किया गया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने अपनी योग शक्ति से 12,000 वर्षों तक ध्यान किया। इस ध्यान के फलस्वरूप उनकी काया से एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए, जो चित्रगुप्त थे। चित्रगुप्त का कार्य प्रत्येक जीव के गुप्त और प्रकट कर्मों को दर्ज करना है। चित्रगुप्त प्रत्येक जीव के अच्छे और बुरे कर्मों को लिखते हैं। मरने के बाद यमलोक में, जब कोई जीव पहुंचता है, तो चित्रगुप्त का लेखा-जोखा यमराज को प्रस्तुत किया जाता है। इस आधार पर, यमराज जीव को स्वर्ग, नरक, या पुनर्जन्म में भेजने का निर्णय लेते हैं। चित्रगुप्त को निष्पक्ष और अचूक न्याय का प्रतीक माना जाता है। वे कर्मों का लेखा-जोखा निष्पक्षता से करते हैं। वे कर्म के सिद्धांत के आधार पर निर्णय करते हैं, जो यह सिखाता है कि आपके हर कर्मों का फल आपको अवश्य मिलता है।
चित्रगुप्त और यमराज
यमराज मृत्यु के देवता के साथ-साथ दंड और न्याय के देवता भी हैं, जो कर्मों के आधार अपना निर्णय सुनाते हैं। चित्रगुप्त इस कार्य में एक मुनीम या कहें वकील की भूमिका निभाते हैं। मृत्यु के देवता यमराज को ब्रह्मा जी ने यह दायित्व सौंपा कि वे जीवों के मृत्यु के बाद उनके कर्मों के अनुसार न्याय करें। लेकिन यह कार्य अकेले यमराज के लिए कठिन था, क्योंकि सृष्टि में अनगिनत जीवों के कर्मों का लेखा-जोखा रखना मुश्किल कार्य था। इसलिए, ब्रह्मा ने चित्रगुप्त को यह जिम्मेदारी सौंपी कि वे प्रत्येक प्राणी के जन्म से मृत्यु तक किए गए कर्मों का लेखा-जोखा रखें और यमराज को न्याय करने में सहयोग करें। यमराज और चित्रगुप्त का काम एक-दुसरे के बिना अधूरा है। यह जोड़ी सृष्टि में कर्म और धर्म के नियमों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।