दादी मां मंथा सुब्बालक्ष्मी ने लाखों बार लिखा राम नाम, नाम लेखन के महत्वों को गिनाया

राम से बड़ा राम का नाम। हमारे ऋषि, मुनि, विद्वान श्रीराम का नाम जपने का परामर्श देते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ओंकार रूप राम नाम की वंदना करते हैं, जो वेद का प्राण है। राम नाम की भरपूर प्रशंसा उन्होंने की है।

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हिमशिखर खबर ब्यूरो

देहरादून: कलयुग में रामनाम का जाप ही बेड़ापार कर देता है। देहरादून प्रेमनगर में विजयमिलन मठ में आश्रमवास कर रही 94 वर्षीय मंथा सुब्बालक्ष्मी ने रामनाम की भक्ति में ऐसा कुछ कर दिया है कि चहुंओर उनके इस कार्य की भूरि भूरि प्रशंसा हो रही है। उन्होंने बचपन से अभी तक लाखों बार राम नाम लेखन पूरा कर दिया है। उम्मीद है कि जल्द ही वह 1 करोड़ से अधिक बार राम नाम का लेखन पूूूरा कर देंगी। उनका संकल्प है कि जीवन के अंतिम क्षण तक राम नाम का लेखन क्रम लगातार चलता रहे।

दादी मां मंथा सुब्बालक्ष्मी का जन्म उड़ीसा में एक विद्वान परिवार में हुआ। आध्यात्मिक और धार्मिक परिवार में पली-बढ़ी मंथा सुब्बालक्ष्मी को बचपन में आंध्र प्रदेश में लगने वाले आध्यात्मिक शिविर में राम नाम लेखन की प्रेरणा मिली। दादी माँ के पति स्वगीय श्री सर्वेश्वर शास्त्री भी भगवन्नाम जपते थे। 94 साल की उम्र में भी दादी मां का राम नाम लेखन आज भी रोजाना चलता रहता है। दादी मां नाम लेखन के महत्व को बताते हुए कहती हैं कि-

कलियुग केवल नाम अधारा। सुमिर सुमिर नर उतरही पारा।

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सतयुग में तप-त्रेतायुग में यज्ञ, योग और द्वापर में जो फल पूजा पाठ और कर्मकांड से मिलता था वही फल कलियुग में मात्र हरि नाम जप या नाम लेखन से मिल जाता है। नाम लेखन में मन बहुत जल्दी एकाग्र होता ह। नाम जप से नाम लेखन को कई गुना अधिक श्रेष्ठ माना गया है। भगवान के नाम पावन नाम जप से लौकिक कामनाएं पूरी हो जाती हैं और यदि कोई कामना न हो तो भगवान के चरण कमलों में प्रेम की प्राप्ति हो जाती है।

दादी मां आगे राम नाम लेखन का महत्व बखान करते हुए कहती हैं कि राम नाम की महिमा निराली है। भवसागर से पार जाने के लिए राम नाम के सिवाए कोई और उपाय नहीं है। मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह निरंतर राम नाम का जप करे। हर किसी को श्रीराम नाम का लेखन करना चाहिए। इससे प्रभु श्रीराम के प्रति प्रीति बढ़ती है और उनकी कृपा प्राप्त होती है। उन्होंने अधिक से अधिक लोगों से राम लेखन करने का आग्रह किया है।

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संसार में ‘राम’ नाम से बढ़कर कुछ भी नहीं है। जिस प्रकार पत्थर पर राम नाम लिखने से पत्थर नहीं डूबते ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी इस भवसागर से पार हो जाता है।

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