काका हरिओम्
उपनिषद के ऋषि कहते हैं कि जो ब्रह्म को जान लेता है, वह ब्रह्म ही हो जाता है। इसलिए उन्होंने यह भी कहा कि जो किसी कारण से ब्रह्मवेत्ता के दर्शन करता है, उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं। और जो निष्काम भाव से उनके सन्निकट जाता है, उसका अंतःकरण शुद्ध होता है, वह तत्त्वज्ञान का अधिकारी हो जाता है। ऐसा भी संभव है कि वह परम ज्ञान को उपलब्ध भी हो जाए।
अक्सर लोगों का प्रश्न होता है कि जिन महापुरुषों ने अपने पार्थिव शरीर को छोड़ दिया है, क्या वह भी जिज्ञासु साधकों के लिए सहायक सिद्ध हो सकते हैं। महापुरुष इसे स्वीकार करते हैं कि तत्वज्ञाता अपने शरीर को छोड़ने के बाद भी मरते नहीं हैं, वह सूक्ष्म रूप से जीवित रहकर अपने शिष्यों, अपने प्रति श्रद्धा रखने वालों को सही राह दिखाते हैं।
शरीर छूटने के बाद संन्यासियों (गैरिक वस्त्रधारियों) की अक्सर तीन गतियां होती हैं। अग्नि में जलाना-यह आमतौर पर वैष्णव परंपरा से जुड़े हुए महापुरुषों के शरीर के साथ होता है। विधान है कि शिखा सूत्र हो, तो अग्नि संस्कार ही होना चाहिए। अन्यथा-या तो जल समाधि होती है या फिर भू समाधि। जल समाधि में शरीर को किसी भी पवित्र नदी की धारा में समर्पित कर दिया जाता है। इसका लक्ष्य है कि शरीर भी जलचरों का भोजन हो जाए-जीवित रहते हुए भी जल कल्याण के लिए शरीर का समर्पण और मृत्यु के बाद भी ‘शरीर किसी के काम आए’, यह भावना।
लेकिन भू-समाधि की स्थिति थोड़ी भिन्न है। इसमें शरीर को भूमि में गड्ढा खोद मां पृथ्वी की गोद में समर्पित कर दिया जाता है। मान्यता है कि भौतिक शरीर के साथ आध्यात्मिक शरीर उसी वातावरण में सदैव विद्यमान रहता है। यह जाग्रत रहता है, यदि वहां पूजा-पाठ आदि अनुष्ठान सदैव होते रहें तो। भूसमाधि का अनुष्ठान-प्रक्रिया भी इस प्रकार की होती है कि उसके बाद उस समाधि स्थल को उस महापुरुष का मूर्तस्वरूप ही समझना चाहिए। उसके समीप बैठकर भी आध्यात्मिक मौन और शांति का अनुभव किया जा सकता है। कभी तो कई भक्तों को, उन्हें भी जो स्थान पर पहली बार आए हैं, उन्हें उस महापुरुष की कोई जानकारी नहीं भी है, संबंधित महापुरुष की स्पष्ट झलक भी वहां देखने को मिल जाती है।
राजपुर स्थित आश्रम के परिसर में दो महापुरुषों की समाधियों की प्रतिष्ठा की गई है। कई भक्तों को वहां ऐसा कुछ मिला है, जो अन्यत्र नहीं मिला। क्योंकि स्वामी रामतीर्थ मिशन, इस प्रकार के चमत्कारों की चर्चा से बचता है। इसलिए यहां से मिलने वाली कृपा को उसने कभी सार्वजनिक नहीं किया लेकिन एक बार आध्यात्मिक अनुभव की दृष्टि से यहां आइए, बैठिए, तो इस पवित्र स्थली का सत्य आपके सामने स्वयं उजागर हो जाएगा।
ऐसा मत कहिए कि वहां किससे मिलने जाएं, वहां तो कोई होता नहीं। सच तो यह है कि वहां अनुभव की आंख होनी चाहिए बस।