हिमशिखर धर्म डेस्क
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरु: साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम: ।।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है। इस बार गुरु पूर्णिमा आज 3 जुलाई यानी सोमवार को मनाई जाएगी। बता दें कि इस दिन वेदव्यास का जन्म हुआ था, इसलिए गुरु पूर्णिमा के अलावा व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
इस पूर्णिमा को व्यास जी का प्रादुर्भाव हुआ, अतः इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा कहते हैं। सद्गुरु के पूजन का पर्व, गुरु वशिष्ठ के पौत्र पाराशर ऋषि के पुत्र वेदव्यास जी ने जन्म के कुछ ही समय बाद अपनी मां से आज्ञा ली कि ‘मैं तपस्या के लिए जा रहा हूं’। मां ने कहा कि बेटा ! पुत्र तो माता पिता की सेवा के लिए होता है, तो व्यासजी ने कहा मां जब तुम याद करोगी और आवश्यक कार्य होगा तब मैं तुम्हारे पास होउंगा। फिर व्यासजी बद्रिकाश्रम में एकान्त में चले गए और बेर के फल पर जीवन यापन करने लगे इस कारण उनका नाम ‘बादरायण’ हुआ।
द्वीप में जन्म लेने से द्वैपायन, काले रंग होने से कृष्ण द्वैपायन, वेदों का विभाजन करने से वेदव्यास नाम पड़ा। ब्रह्म सूत्र की रचना, अठ्ठारह पुराणों, पंचम वेद महाभारत, भक्ति ग्रन्थ श्रीमद्भागवत महापुराण व्यासजी की रचनाएं हैं। यह नि: संकोच कहा जा सकता है कि संसार में जितने भी धर्म ग्रन्थ है उनकी जितनी भी कल्याणकारी बातें हैं सभी व्यासजी की रचनाओं से ली गई हैं। तभी तो कहा गया है कि ‘व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वम्’ कृतज्ञता व्यक्त करने का और तप व्रत में निरन्तर आगे बढ़ने का यह दिन है। आस्था बढ़ाने का, श्रद्धा पूर्वक रहने का और समर्पण करने का आज के दिन से बढ़ कर कोई और दिवस नहीं है। तभी तो बाबा तुलसीदास जी ने कहा –
बंदउं गुरु पद पदम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ।।