काल भैरव अष्टमी आज:शिव जी का स्वरूप हैं काल भैरव; शिव-पार्वती के साथ करें भैरव पूजा

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

आज बुधवार, 16 नवंबर को शिव जी के अवतार काल भैरव का प्रकट उत्सव है। भगवान शिव ने मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर काल भैरव के रूप में अवतार लिया था।

भैरव अवतार में हैं तीनों गुण

शास्त्रों में कुल तीन तरह के गुण बताए गए हैं- सत्व, रज और तम। इन तीन गुणों से मिलकर ही सृष्टि की रचना हुई है। शिव पुराण में लिखा है कि शिव जी कण-कण में विराजित हैं, इस कारण शिव जी इन तीनों गुणों के नियंत्रक हैं। शिव जी को आनंद स्वरूप में शंभू, विकराल स्वरूप में उग्र और सत्व स्वरूप में सात्विक कहा जाता है। शिव जी के ये तीनों गुण भैरव के अलग-अलग स्वरूपों में बताए गए हैं।

जानिए भैरव के तीन स्वरूप और उनकी खास बातें

शास्त्रों में भैरव के 64 स्वरूप तक बताए गए हैं। इन स्वरूपों में बटुक भैरव, काल भैरव और आनंद भैरव खास हैं।

बटुक भैरव – बटुक भैरव को भैरव महाराज का सात्विक और बाल स्वरूप माना जाता है। इनकी पूजा से भक्त को सभी तरह के सुख, लंबी आयु, अच्छी सेहत, मान-सम्मान और ऊंचा पद मिल सकता है।

काल भैरव – ये स्वरूप भैरव का तामस गुण को समर्पित है। ये स्वरूप भक्तों के लिए कल्याणकारी है, इनकी कृपा से भक्त का अनजाना भय दूर होता है। काल भैरव को काल का नियंत्रक माना गया है। इनकी पूजा से भक्त के सभी दुख दूर होते हैं, शत्रुओं का प्रभाव खत्म होता है।

आनंद भैरव – ये भैरव का राजस स्वरूप है। देवी मां की दस महाविद्याएं हैं और हर एक महाविद्या के साथ भैरव की भी पूजा होती है। इनकी पूजा से धन, धर्म की सिद्धियां मिलती हैं।

नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। इस दिन व्रती को फलाहार ही करना चाहिए। इस दिन कुत्ते को खाना खिलाना शुभ माना जाता है।

कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के कष्ट मिट जाते हैं और काल उससे दूर हो जाता है।

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