सुप्रभातम्: जैसा कर्म वैसा फल

हिमशिखर धर्म डेस्क

Uttarakhand

कर्म का सिद्धांत अकाट्य है। जो जैसा करता है वैसा ही फल पाता है चाहे राजा हो या रंक, सेठ हो या नौकर। अरे ! स्वयं भगवान भी अवतार लेकर क्यों न आयें? कर्म का अकाट्य सिद्धांत उनको भी स्वीकार करना पड़ता है।

जो बीत गयी सो बीत गयी, तकदीर का शिकवा कौन करे?

जो तीर कमान से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे?

पहले जो कर्म किये हैं, उनका फल मिल रहा है तो उसे बीतने दो। उसमें सत्यबुद्धि न करो। जैसे गंगा का पानी निरंतर बह रहा है, वैसे ही सारी परिस्थितियाँ बहती चली जा रही हैं। जो सदा-सर्वदा रहता है, उस परमात्मा में प्रीति करो और जो बह रहा है उसका उपयोग करो।”

कर्म का नियम सभी को समान रूप से देखता है, इसका कोई पसंदीदा नहीं है और यह निश्चित रूप से किसी को ‘वीआईपी ट्रीटमेंट’ भी नहीं देता है। कर्म मूल रूप से एक ही आधार या नियम पर संचालित होता है, आप जैसा बोएंगे, वैसा ही काटेंगे।

क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोगों का जीवन आसान क्यों होता है और कुछ लोग गुजारा करने के लिए कड़ी मेहनत क्यों करते हैं? बिना किसी विशेष कारण के किसी व्यक्ति के साथ दुनिया में कुछ भी नहीं होता है। ऐसा माना जाता है कि कुछ लोगों के लिए वर्तमान जीवन अधिक कठिन होता है, सिर्फ इसलिए क्योंकि वे अपने पिछले जन्म के कर्मों का खामियाजा भुगत रहे होते हैं।

इस जीवन में आप जो भी देखते हैं जिस भी स्थिति से गुजरते हैं वह पूरी तरह अतीत में किये गए कर्मों पर आधारित है। यदि आप इस समय कठिन समय से गुजर रहे हैं और यदि ऐसा लगता है कि आप चारों ओर से दुख को आकर्षित कर रहे हैं तो यह केवल आपके कर्मों के कारण है। आपके कर्मों में आपके वर्तमान जीवन को स्वर्ग या नर्क बनाने की शक्ति है। आपके कार्य और कर्म मूल रूप से हमारे अपने भाग्य के निर्माता हैं।

इसलिये इस बात को हमेशा समझना चाहिये कि यदि हमारे भविष्य की कुंजी है तो हमारे कर्म को सुधारने का भी एक तरीका होना चाहिए। बौद्ध धर्म के अंतर्गत यह स्वीकार किया गया है कि प्रेम, करुणा और शांति पूरी तरह से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यदि आप अपने कर्म में सुधार करना चाहते हैं तो आपको लोगों के साथ बेहतर व्यवहार करना शुरू करना होगा। एक बार जब आप भी ऐसा ही करना शुरू कर देंगे, तो आप देखेंगे कि जीवन अचानक बेहतर होने लगता है।

जब आप सोने वाले हों, तो अपने व्यवहार और दिन की घटनाओं की समीक्षा करने में पांच मिनट बिताएं। शुरुआत में यह थोड़ा कठिन लग सकता है लेकिन धीरे-धीरे आप समझ जाएंगे कि यह सरल व्यायाम आपको खुद को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर रहा है।

अपने कर्म को बदलने का एक और प्रभावी तरीका है प्रतिदिन ध्यान करने में समय व्यतीत करना। ध्यान हमें अपनी नसों और विचारों को शांत करने में मदद करता है जो बदले में हमें अहंकार आदि जैसी उलझनों को दूर करने में मदद करता है। जब हम क्रोध, दर्द या खुशी से भरे होते हैं तो इस समय शांत रहने से ही आप हमेशा बेहतर निर्णय ले पाएंगे।

कर्म तीन प्रकार के होते हैं :-

१. संचित, २. प्रारब्ध, ३. क्रियमाण 

(१) संचित कर्म :- जो दबाव में, बेमन से, परिस्थितिवश किया जाए ऐसे कर्मों का फल १००० वर्ष तक भी संचित रह जाता है। इस कर्म को मन से नहीं किया जाता। इसका फल हल्का धुंधला और कभी- कभी विपरीत परिस्थितियों से टकराकर समाप्त भी हो जाता है।

(२) प्रारब्ध कर्म :- तीव्र मानसिकता पूर्ण मनोयोग से योजनाबद्ध तरीके से तीव्र विचार एवं भावनापूर्वक किये जाने वाले कर्म। इसका फल अनिवार्य है, पर समय निश्चित नहीं है। इसी जीवन में भी मिलता है और अगले जन्म में भी मिल सकता है।

(३) क्रियमाण कर्म :- शारीरिक कर्म जो तत्काल फल देने वाले होते हैं। जैसे- किसी को गाली देना, मारना। क्रिया के बदले में तुरंत प्रतिक्रिया होती है।

काहू न कोउ सुख दुःख कर दाता।

निज निज कर्म भोग सब भ्राता 

मानव अपने सुख दुःख का कारण स्वयं ही होता है। धोखा देंगे तो धोखा खाएंगे दो मित्रों की कहानी। हमारी वर्तमान परिस्थितियाँ दुःख या सुख सबका कारण अंततः हम ही हैं। अतः इसके लिए किसी को दोष देना व्यर्थ है।

तीन प्रकार के दुःखः-

(१) दैहिक-शारीरिक, (२) दैविक-मानसिक, (३) भौतिक-सामूहिक आकस्मिक दुर्घटनाएँ दैवी प्रकोप आदि ।

दुःखों को हल्का करने का उपाय 

मन्त्र जप, ध्यान, अनुष्ठान, साधना उपासना से मानसिक व सूक्ष्म अन्त: प्रकृति व बाह्य प्रकृति का शोधन होती है। दुःखों, प्रतिकूलताओं को सहने की क्षमता बढ़ जाती है। दुःखों से घबराएँ नहीं, इससे हमारी आत्मा निष्कलुष, उज्जवल, सफेद चादर की भाँति हो जाती है।

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