आज गणेश चतुर्थी सिद्धविनायक व्रत है। आज से हमारे देश के अधिकांश भागों में गणेश महोत्सव प्रारम्भ हो गया है। सभी सनातन धर्मावलंबी प्रति वर्ष गणपति की स्थापना तो करते हैं लेकिन हममें से बहुत ही कम लोग जानते हैं कि आखिर हम गणपति क्यों बिठाते हैं ? आइये जानते हैं-
पंडित हर्षमणि बहुगुणा
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है। परन्तु लिखना उनके वश का नहीं था। अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपति जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की।
गणपति जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी तक पीना भी वर्जित था। अतः गणपति जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और “भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की”। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पार्थिव गणेश भी पड़ा। महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला। अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ।
व्यास जी ने देखा कि, गणपति का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया। इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए। तभी से गणपति बैठाने की प्रथा चल पड़ी। इन दस दिनों में इसीलिए गणेश जी को उनकी पसन्द के विभिन्न भोजन अर्पित किए जाते हैं।
गणेश चतुर्थी को कुछ स्थानों पर डंडा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि गुरु शिष्य परम्परा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारम्भ होता था। इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं। गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है। इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं।
“पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व”
अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति के लिए अलग-अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं। यथा —
1. श्री गणेश जी को मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती है !
2. हेरम्ब : गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है।
3. वाक्पति : भोजपत्र पर केसर के तिलक से श्री गणेश प्रतिमा का चित्र बनाकर पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती है*।
4. उच्चिष्ठ गणेश : लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता है घर में गृह क्लेश निवारण होता है*।
5. कलहप्रिय : नमक की डली या नमक के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओं में क्षोभ उत्पन्न होता है वह आपस ने ही झगड़ने लगते हैं।
6. गोबरगणेश : *गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में वृद्धि होती है और पशुओं की बिमारियां नष्ट होती हैं (गोबर केवल गौ माता का ही हो)।
7. श्वेतार्क श्री गणेश : सफेद आंक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता है*।
8. शत्रुञ्जय : कडूए नीम की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता है और युद्ध में विजय होती है*।
9. हरिद्रा गणेश : हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ट होती है और स्तम्भन होता है*।
10. सन्तान गणेश : मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।*
11. धान्यगणेश : सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य वृद्धि होती है अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती है।
12. महागणेश : लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी की प्रतिमा निर्माण कर के पूजन करने से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालिंका की शरणागति प्राप्त होती है।
” गणेश चतुर्थी पूजन “
–पूजन मुहूर्त–
“गणपति स्वयम् ही मुहूर्त हैं। सभी प्रकार के विघ्नहर्ता हैं इसलिए गणेशोत्सव गणपति स्थापन के दिन दिनभर कभी भी स्थापन कर सकते हैं। सकाम भाव से पूजा के लिए नियम की आवश्यकता पड़ती है इसमें प्रथम नियम मुहूर्त अनुसार कार्य करना हैं।
मुहूर्त अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा दोपहर के समय करना अधिक शुभ माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। मध्याह्न यानी दिन का दूसरा प्रहर जो कि सूर्योदय के लगभग 3 घंटे बाद शुरू होता है और लगभग दोपहर 12 से 12:30 तक रहता है। गणेश चतुर्थी पर मध्याह्न काल में अभिजित मुहूर्त के संयोग पर गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना करना अत्यन्त शुभ माना जाता है*।
पूजा की सामग्री
सामान्य पूजन सामग्री जो प्राय: पूजन में जरुरत पड़ती है के अतिरिक्त — लाल फूल, जल कलश , लड्डू व दूब आवश्यक हैं।
“सामान्य पूजा विधि “
सकाम पूजा के लिये स्थापना से पहले संकल्प भी अत्यंत जरूरी है। गणपति भगवान को घर पर पधारने का निवेदन करें और उनका सेवाभाव से स्वागत सत्कार करने का संकल्प लें।
गणेश जी की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष व संकट नाशन गणेश स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए और यह मंत्र उच्चारित करें —
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, मम कार्येषु सर्वदा।।