सुप्रभातम् : भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

Uttarakhand

आज दिसंबर का महीना और पच्चीस तारीख है। आज ईसाई धर्म के लोग विशेष रूप से ख्रीस्तजयन्ती अर्थात् ‘बड़ा दिन’ मनाते हैं। ईसाई लोग यह उत्सव 25 दिसंबर से 31 दिसंबर तक मनाते हैं। यह उत्सव 24 दिसंबर की आधी रात से प्रारम्भ हो जाता है और ईसाई धर्म के नव युवकों की टोली जिन्हें कैरल्स कहा जाता है, ईशु मसीह के जन्म से सम्बन्धित गीत प्रत्येक मसीही समुदाय के लोगों के घरों में जाकर गातें हैं तथा 25 दिसंबर की प्रात: गिरिजा घरों में विशेष आराधना की जाती है, जिसे ” क्रिसमस सर्विस ” कहा जाता है।

इस आराधना में धर्माचार्य ईशु के जीवन से सम्बन्धित प्रवचन करते हैं। आराधना के बाद मसीही समुदाय के लोग एक दूसरे का अभिवादन करते हुए बड़ा दिन मुबारक कहते हैं। (Wish you a happy Christmas) तथा एक दूसरे को उपहार स्वरूप कुछ न कुछ देते हैं, तथा घर आने वाले मेहमानों का स्वागत सत्कार करते हैं। आज के दिन से एक सप्ताह पहले मसीही समुदाय के लोग अपने रिश्तेदारों तथा परिचितों को क्रिसमस ग्रीटिंग कार्ड भी भेजते हैं। आज का दिन ईशु के जन्मदिन की याद दिलाता है। अगर उनकी नजर से देखा जाए तो यह पर्व मसीहियों का हृदय है। ये लोग प्रत्येक रविवार को गिरिजाघरों में सामूहिक आराधना करते हैं, जिसमें बाइबिल का पाठ, भजन एवं प्रार्थनाएं सम्मिलित हैं। आशीर्वचनों से आराधना समाप्त होती है। प्रत्येक मसीही पवित्र आत्मा का वरदान चाहते हैं । “चूंकि हम ईसाई नहीं हैं अतः एक दूसरे को इसकी बधाई तो नहीं दे सकते हैं परन्तु उस धर्म के विषयक जानकारी रखनी आवश्यक समझते हैं।”

सभी धर्मों में एक जैसी परम्परा है। कुछ लोग समर्पित भाव से अपने प्रभु से प्रार्थना करते हैं और उन्हें उनका आशीर्वाद अवश्य मिलता है। जब तक ईश्वर के प्रति आस्था और विश्वास नहीं होगा तब तक न उनका आशीर्वाद मिलेगा न भगवान की कृपा ही मिलेगी। ईश्वर सबके साथ है, सबको समान रूप से देखता भी है। आज के इस दिन को ईसाई धर्म के लोग मनाते हैं, परन्तु यह स्पष्ट है कि यह भारतीय संस्कृति की ही विशेषता है कि हमारे यहां प्रत्येक दिन उत्सव का है और विश्व के सभी धर्मों के लोगों ने हमसे ही अपने यहां उत्सव मनाने का निर्णय लिया है। भारत प्राचीन काल से ही धर्म प्राण देश रहा है और यहां का आध्यात्म दर्शन, संयम- नियम, व्रत पालन एवं धर्माचरण पर ही आश्रित है। यहां से ही समूचे विश्व में यह सुकर्म बांटा गया है। हमें जिस तरह से भी सम्भव हो, अपने धर्म के प्रति सदैव समर्पित, जागरूक व कृतज्ञ रहना चाहिए।

यहां एक बात विशेष रूप से विचारणीय है कि विश्व के सभी संप्रदायों और मतों का स्रोत वैदिक सनातन धर्म ही है। स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ जी के प्रवचनों में इसका स्पष्टरूप से उल्लेख मिलता है। तभी तो उन्हें जोर देकर यह भी कहना पड़ा कि यीशु के संदेश को यदि कोई सही अर्थों में समझना चाहता है तो उसे वेदान्त का अध्ययन करना होगा। यह अतिशयोक्ति नहीं है।

आज हिन्दू धर्म के लोग विश्व में पिछड़ते जा रहे हैं कारण यह है कि हम अपने वेद, उपनिषदों व पुराणों के प्रति आस्थावान कम हैं। स्मृतियों पर अटल विश्वास नहीं रख पाते हैं व उन्हें केवल उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं (घर की मुर्गी दाल बराबर)। तो आइए आज से ही हम अपने धर्म के प्रति निष्ठावान बनने का संकल्प लें।

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